दूसरों के छिद्र देखने से पहले अपने छिद्रों को टटोलो। किसी ओर की बुराई करने से पहले यह देख लो। कि हममें तो कोई बुराई नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर करो। दूसरों की निंदा करने में जितना समय देते हो उतना समय अपने आत्मोत्कर्ष में लगाओ। तब स्वयं इससे सहमत होंगे कि परनिंदा से बढ़ने वाला द्वेष को त्याग कर परमानंद प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हो।
कोई भी काम करते समय अपने मन को उच्च भावों से और संस्कारों से ओत-प्रोत रखना ही सांसारिक जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। हम जहाँ रह रहे हैं उसे नहीं बदल सकते पर अपने आपको बदल कर हर स्थिति में आनंद ले सकते हैं।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य