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November 1998

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अखण्ड ज्योति के लेख कागज पर काले अक्षर छाप देने मात्र की प्रक्रिया नहीं है वरन् उसकी एक-एक पंक्ति में एक दर्द, एक आग और प्रकाश भरा रहता है। आत्मिक अनुभूतियों के आधार पर उन्हें लिखा जाता है।

परमपूज्य गुरुदेव

हमारे लिखे साहित्य में कितनी आभा है, कितनी रोशनी है, कितनी मौलिकता है और कितनी शक्ति है, यह कहने की नहीं अनुभव करने की बात है। जिनने इन्हें पढ़ा, तड़पकर रह गए। रोते हुए आँसुओं की स्याही से जलते हृदय ने इन्हें लिखा है, सो इनका प्रभाव होना ही चाहिए, हो रहा है और होकर रहेगा।

विचारक्रांति के अस्त्र-शस्त्र अब हम अपने की हाथों बनाने से लेकर बेचने और चलाने से लेकर और बढ़ाने तक की सारी प्रक्रियाएँ स्वयं ही कर रहे है। रात में लिखते है और दिन में फैलाते है। पर है आखिर हम भी तो स्वाभिमानी। झोली ले दौड़ते, तो आखिर हम भी तो स्वाभिमानी। झोली ले दौड़ते, तो दूसरों की तरह भीख बहुत माँग लेते, पर अड़े इसी आन पर है कि हमारे व्यक्तित्व, वर्चस्व और कर्तृत्व में यदि अपने छोटे परिवार के लोगों तक में चेतना भरने की क्षमता नहीं, तो बाहर के लोगों से किस मुख से कुछ त्याग करने, सहायता देने की बात करें।

परमपूज्य गुरुदेव

इन दिनों हमारी उत्कट अभिलाषा है कि यह आंदोलन एक बार पूरी तीव्रता से, पूरी गत से, पूरी भावना से, पूरी सक्रियता से अपनी प्रौढ़ता प्रदर्शित करें। हमारा पक्का विश्वास है कि जो एक बार इस साहित्य को पढ़ लेगा, अपने भीतर एक अभिनव हलचल और प्रेरणा अनुभव करेगा। इसे लिखा ही ऐसी उच्च मनःस्थिति में जाता है कि प्रभाव उत्पन्न हुए बिना रह ही नहीं सकता। नवनिर्माण के लिए जिस प्रकार के तरंगित हृदय की आवश्यकता पड़ेगी, उसका सृजन यह साहित्य बहुत हद तक कर सकता है।

परमपूज्य गुरुदेव


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