महाकाल की वाणी अधिकाधिक व्यक्तियों तक पहुँचाएँ श्रेय के अधिकारी बनें

November 1998

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अखण्ड ज्योति पत्रिका विद्या-विस्तार को मेरुदण्ड है। परमपूज्य गुरुदेव ने जीवनभर ज्ञान की ही आराधना की और जन-जन तक ज्ञानामृत बाँटा। अखण्ड ज्योति उसका एक माध्यम बनी और १९३७ से सतत् प्रकाशित इस ज्ञानगंगा ने लाखों-करोड़ों को जीवन जीने की राह दिखाकर उनका भविष्य मंगलमय बनाया है। भगीरथ ने राह बनायी और पतित-पावनी गंगा युगों-युगों तक के लिए अमर हो गयी। परमपूज्य गुरुदेव की वाणी, उनका हृदय, उनका अंत करण तीनों अखण्ड ज्योति में समाहित है। इस गंगोत्री का प्रवाह अनंतकाल तक प्रवाहित होकर जनमानस का परिष्कार करता रहेगा, इसमें किसी को रत्ती भर भी संदेह नहीं होना चाहिए। गंगा जितना आगे बढ़ती है, विराट रूप लेती चली जाती है॥ अखण्ड ज्योति के साथ भी यही हुआ है। आज उसकी पाठक संख्या प्रायः पच्चीस लाख से भी अधिक है। सहयोगी पत्रिका युगनिर्माण योजना (हिंदी), युगशक्ति गायत्री (गुजराती, उड़ीसा), बंगला अखण्ड ज्योति एवं तेलुगु व अंग्रेजी में प्रकाशित अखण्ड ज्योति के माध्यम से यह प्रकाश विश्व के कोने-कोने में पहुँच रहा है।

अखण्ड ज्योति मात्र छपे कागजों का पुलिन्दा नहीं, गुरुसत्ता की प्राणचेतना ही है। इसे महाकाल की वाणी मानकर नित्य परमपुरुष पूज्यवर के सत्संग के रूप में अंगीकार किया जाना चाहिए। स्वयं परमपूज्य गुरुदेव ने समय-समय पर उसके विषय में क्या लिखा है, इसे जरा ध्यान से पढ़ें, तो यह तथ्य समझ में आ सकेगा।

अख़बार अनेक निकलते है ओर अनेक रुचियों के पाठक इनमें से अपने अनुकूल साहित्य खरीदते और पढ़ते रहते है। धार्मिक-आध्यात्मिक पत्र भी अनेक निकलते है और उन्हें उस प्रवृत्ति के लोग मँगाते-अपनाते है। इस प्रक्रिया की तुलना अखण्ड ज्योति से नहीं की जा सकती। वह जानकारी मात्र देने का, पिसे को पीसने का, जो कहा जाता रहा है उसे दुहराने का ढर्रा अपनाकर किसी तरह विज्ञापन या दान के सहारे अपना जीवनक्रम चलाती रहने वाली पत्रिका नहीं है। इसका अपना ढंग, उद्देश्य, क्रिया−कलाप सबसे अनोखा व भिन्न है। नये युग की संदेशवाहिका के रूप में वह अवतीर्ण हुई है और नए व्यक्तित्व, नया समाज, नया विश्व बनाने के लिए अनवरत भगीरथ प्रयत्न कर रही है। जिनमें इस प्रयोजन के उपर्युक्त क्षमता देखी गई है, उन्हें ढूँढ़-ढूँढ़कर एक सूत्र में पिरोया है, उन्हें सोते से जगाया है, दिशा बताई है और लक्ष्य की ओर दृढ़ता के साथ चल पड़ने के लिए आवश्यक उत्साह एवं साहस प्रदान किया है।

निश्चित ही यह माना जाना चाहिए कि समय की विषमता कुछ ऐसी है कि अब मात्र यही एक उपचार ऐसा शेष रह गया है, जिससे मानवता उबर सकती है। अखण्ड ज्योति पत्रिका के पाठकों में जितनी वृद्धि होगी, उतना ही युगपरिवर्तन का मोर्चा विजय की दिशा में अग्रसर होता दिखाई पड़ने लगेगा। अखण्ड ज्योति जो वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का प्रतिपादन अपनी सरल शैली में सतत् करती चली आ रही है अब और भी अनूठे रूप में अगले दिनों पाठकों को पढ़ने को मिलेगी। आगामी दो अंक साधना-विशेषांकों के रूप में प्रकाशित हो रहें। दिसम्बर १८ का अंक युगसाधना के सैद्धान्तिक पक्ष के स्पष्ट करेगा, तो जनवरी २१ का अंक साधना के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालेगा।

इक्कीसवीं सदी के आगमन की प्रभावबेला में सवेरा बड़ा पुण्य-परमार्थ यही हो सकता है कि हम इस ज्ञान गंगोत्री का विराट विस्तार प्रदान करें, अखण्ड ज्योति पाठकों की संख्या में अधिकाधिक वृद्धि करें। वर्ष के समापन की बेला में सभी से एक भावभरा अनुरोध है कि प्रत्येक पाठक कम से कम दस अनुपाठक और तैयार कर ग्राहक संख्या बढ़ाएँ ताकि नवयुग के आगमन का समाचार कम से कम एक करोड़ व्यक्तियों के द्वारा विश्व-वसुधा को मिल सके। पत्रिका का वार्षिक चन्दा पिछले वर्ष के समाज ६. ही है, आजीवन ७५. विदेश के लिए ५. शीघ्र ही अपना व अपने साथियों का चंदा भेजकर इस पुण्य-प्रवाह को आगे बढ़ाने का श्रेय अर्जित करे। इस समय का यही महापुरुषार्थ है।


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