हम प्रगतिशील बनें

November 1998

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प्रगतिशीलता का अर्थ है-एक नवचेतना, एक जागरूक विवेक, जिसके आधार पर कोई हित-अहित ठीक तरह से देख-समझ सके। जो राष्ट्र गुण-दोष हानि-लाभ के दृष्टिकोण से किसी बात का निर्णय करके अपने लिए मार्ग निर्धारित करते हैं, वे राष्ट्र प्रगतिशील ही कहे जाएँगे। जो अपनी अहितकर कुरीतियों, प्रथाओं एवं परम्पराओं को छोड़ने के लिए और उनके स्थान पर नई, उपयोगी एवं समयानुसार प्रथा-परम्पराएँ प्रचलित करने के लिए खुशी-खुशी तैयार रहते हैं, वे समाज जाग्रत चेतना के पुँज कहे जाएँगे।

इसके विपरीत जो समाज अथवा राष्ट्र अपने संस्कारों और पिछड़ेपन को कसकर पकड़े हुए किसी गलत रास्ते पर इसलिए चलते जाते हैं कि उस पर वे बहुत समय से चले आ रहे हैं, प्रगतिशील समाज नहीं कहे जाते। अहितकर प्रथा-परम्पराओं को गले लगाए रहना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि अमुक समाज पिछड़ा हुआ समाज है।

बहुत कुछ प्राचीन होने पर भी प्रगतिशीलता की दृष्टि से हमारे भारतीय राष्ट्र की गणना अभी नवोदित राष्ट्रों में ही है। उसने अभी केवल राजनैतिक स्वतंत्रता ही उपलब्ध की है। उन्नति एवं विकास के नाम पर अभी उसे कुछ खास उपलब्धियाँ नहीं प्राप्त हो सकी हैं। यह बात ठीक है कि देश की उन्नति के प्रयत्न चल रहे हैं, किन्तु उन सब प्रयत्नों की पृष्ठभूमि केवल आर्थिक ही है। मात्र आर्थिक उन्नति से ही कोई राष्ट्र समुन्नत राष्ट्र नहीं बन सकता। किसी राष्ट्र की वास्तविक उन्नति तो उसकी सामाजिक उन्नति में ही निहित रहती है।

इस कटु सत्य को स्वीकार करने पर किसे आपत्ति हो सकती है कि हमारा समाज प्रगतिशीलता के नाम पर बिल्कुल निकम्मा बना हुआ है। इसका अस्तित्व अभी भी जातीय द्वेष, साम्प्रदायिक बैर के पंक में डुबा है। अब तक उसमें स्वतंत्र चिंतन और नवचेतना नहीं आ सकी है किन्तु यदि अपने भारतीय राष्ट्र को शक्तिशाली बनना है, अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना है, तो उसे अपनी उन आंतरिक दुर्बलताओं को दूर करना ही होगा, जो उसकी वास्तविक प्रगति के पथ में अवरोध बनी हुई है।

सारा संसार जानता है कि भारतीय समाज के पास न तो बुद्धि की कमी है, न विद्या की और न वीरता की व बलिदान की। यदि उसमें कोई कमी है तो केवल उस प्रगतिशीलता की, जिसकी आज के युग में बहुत आवश्यकता है। आज जब अपने समाज, अपने राष्ट्र को अग्रगामी बनाने के लिए संसार के सारे लोग प्रयत्नशील हो रहे हैं, तब क्या कारण है हम भारतीय ही अपने पिछड़ेपन से पीछा छुड़ाकर प्रगतिशीलता के पथ पर आगे न बढ़े?


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