मानवेत्तर प्राणियों का यह चित्र-विचित्र संसार

November 1998

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रहस्यमय! अलौकिक!! आश्चर्यजनक!!! ये विशेषण सामान्यक्रम में मानवजीवन का ही श्रृँगार बनते है। लेकिन कभी-कभी अन्य जीव जन्तुओं के ऐसे जीवन प्रसंग सामने आ जाते हैं, जब लगने लगता है कि उपर्युक्त विशेषण इनके साथ जुड़कर ही अपनी विशेषता और सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं उनके जीवन की विचित्रताएँ विशिष्टताएँ मनीषियों बुद्धिजीवियों के सामने अनेक मोहरूपमयी पहेलियाँ सुलझाने के लिए छोड़ जाती है, जिन्हें सोच-सोचकर वे रोमांचित एवं हतप्रभ होते रहते हैं।

बीकानेर के पास एक गाँव का बीस वर्षीय बकरा एक ऐसा ही अनूठा उदाहरण है। यह संभवतः भारत का सबसे अधिक आयु का बकरा हैं। इसके खान-पान के सही अंदाज और रहन-सहन व व्यवहार के विशिष्ट तौर तरीके स्वयं में एक दिलचस्प पहलू हैं गर्मी के मौसम में रोजाना दो किलो आम का रस पीना इस बूढ़े बकरे को खास पसन्द है। वह प्रातः ठीक नौ बजे घर के बाहर चौक पर सूर्य के सामने मुँह करके कुछ इस तरह बैठता है, मानो सूर्य की उपासना कर रहा हो। उसका यह क्रम भीषण धूप और लू में भी सायं चार बजे तक चलता रहता हैं। सायंकाल घर में घुसने से पहले वह अपने अगले पैरों से घर का कुंडा खटखटाता हैं घर में घुसने के बाद दो फीट ऊँचे नल को खेल कर स्वयं पानी पी लेता है।

गर्मी के दिनों में नीबू का शरबत अथवा बर्फ का ठण्डा दूध बड़े चाव से पीना इस बकरे का प्रिय शौक है। वह घर या सड़क पर पड़ी किसी भी खाद्य वस्तु को छूता तक नहीं। भूखे लगने पर रसोईघर से पन्द्रह फीट दूर चार इंच लम्बी जीभ निकालकर खड़ा हो जाता है। भोजन के क्रम में केवल देशी घी का पराठा सब्जी के साथ अपने मालिक साठ वर्षीय अब्दुल सत्तार के हाथों से ही खाता है। बर्तन में परोस कर दिये जाने पर वह खाने की तरफ नजर उठाकर देखता भी नहीं।

इस बकरे को पन्द्रह सीढ़ियाँ चढ़कर मकान की छत पर खुली हवा में सोना बहुत भाता है। उसके मालिक कहना है कि वह अब तक कभी ज्यादा बीमार नहीं हुआ है। लेकिन हलकी-सी हरारत होने पर भोजन त्याग देता है। घर के बाहर चौखट पर आजादी में दखल होने पर स्थान छोड़ देता है। उसकी मालकिन श्रीमती नसीबन अपने पाँच पुत्रों से भी बढ़कर उसे प्यार दुलार करते है। पशु चिकित्सकों द्वारा बीस वर्ष की आयु बताए जाने वाले इस बकरे की मालकिन इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराए जाने के लिए आतुर हैं। वर्तमान में बीस वर्ष की आयु में उसका वजन ७५ किलो है। वह घर के सदस्यों की तरह रहता है। घर के किसी भी शुभकार्य में उछल कूद मचाकर खुशी प्रकट करना उसकी सर्वप्रिय आदत है।

क्रूस दंपत्ति का बंदर भी अपनी विचित्र विलक्षण हरकतों के लिए चर्चित रहा है। वे इसे प्यार से विल कहकर पुकारते थे। वह प्रातः उठकर ब्रुश से अपने दाँत माँजता, टेबल पर बैठकर परिवारजनों के साथ नाश्ता करता था। उसे मुर्गी के माँस से बनी चीजें पसंद थी। उसका अपना शयनकक्ष था, जिसमें नन्हा पलंग और बिस्तर लगा रहता था। वहीं रंगीन टी. वी. सेट था, जिसे वह आम इनसानों की तरह देखा करता है। उसकी मृत्यु होने पर क्रूस दंपत्ति के घर का एक सदस्य कम हो गया। शोक सन्तप्त दंपत्ति ने उसके लिए स्थानीय गिरजे में प्रार्थना सभा भी करवाई। हालाँकि पादरी की इस बात के लिए काफी आलोचना हुई कि उन्होंने एक बंदर की आत्मशान्ति के लिए प्रार्थना होने दी।

अगला किस्सा है दो कुत्तों के प्रेम विवाह का। इसके पात्र है दूल्हे राज रॉकी और दुल्हन रानी डेजी। दोनों एक समारोह में मिलें, वहाँ दोनों की नजरें मिली और दोनों की भावनाएँ एक दूसरे से गहराई पूर्वक जुड़ गयी। फिर तो उनका साथ-साथ घूमना, एक दूसरे के बिना आँसू बहाना उन दोनों की ही दिनचर्या में शामिल हो गया। उन दोनों की प्रेम भावनाओं की इस प्रगाढ़ता के वशीभूत होकर दोनों के ही मालिकों ने उनकी शादी का फैसला किया। उनकी शादी बड़ी धूमधाम से मनाई गयी। दोनों को शादी की पोशाकों में सजाया गया। शादी समारोह में उनकी प्रजाति के सैकड़ों कुत्तों व उनके मालिकों ने भाग लिया। एक विशाल भोज की व्यवस्था भी इस अवसर पर की गयी यह अनोखी शादी न्यूयार्क में हुई। इस अवसर पर खुशी प्रदर्शित करने वाले तमाम कार्यक्रम भी हुए जिसमें वर-वधू ने बन-ठन कर अपने अपने पोज देकर फोटो खिंचवाए और शादी के बाद दूल्हे राजा दुल्हन को अपने घर ले गए।

अमेरिका के शहर लॉसएंजलिस के पुलिस विभाग में एक ऊँचे पद पर आसीन मिस्टर बयार्ड की आयु मात्र चार वर्ष है और उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस तक प्राप्त हैं सभी लोग इस आश्चर्य जनक पुलिस अफसर का लोहा मानते है, क्योंकि मिस्टर बयार्ड कोई व्यक्ति नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका में जन्मा एक नीले सुनहरे रंग का तोता है इसका काम बच्चों को सुरक्षित ढंग से साइकिल चलाने तथा स्केटिंग करने की हिदायत देना है। अपनी नन्हीं-सी पेट्रोलिंग कार को ये तोते साहब स्वयं ही ड्राइव करते हैं। २७ वर्षीय सिमेंसन उनका सहायक है, जो तोते की हिदायत लोगों को समझाता है। दोनों मिलकर स्कूलों तथा अनाथालयों के छोटे व पंगु बच्चों को दुर्घटना से बचने व सुरक्षित तरीके से

साइकिल चलाने की सीख देते रहते हैं टी. वी. के कार्यक्रमों में भी वे दर्जनों बार भाग ले चुके हैं। बच्चे बड़े उत्साह के साथ इस अफसर तोते की बातों को सुनते अनुपालन करते है।

अमेरिका के ही सेनफ्रांसिस्को नगर के पास स्थित रुयूजाल में महापौर का चुनाव खासा रोमांचक रहा। वहाँ के एक नागरिक ने उम्मीदवार के तौर पर अपने कुत्ते’ बाँस’ को खड़ा किया। चुनाव प्रचार व अन्य औपचारिक वार्ताओं के बाद जब मतदान हुआ तो चुनाव परिणाम और भी विस्मयकारी साबित हुआ। बाँस अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी से ३. के मुकाबले ७५ वोट पाकर जीत गया। यही नहीं उसने अपनी संवेदनशील सेवाओं से वहाँ मतदाताओं को प्रभावित भी किया।

अरिजोना में एक वैज्ञानिक आइरीनपीयरबर्ग के पास एक पालतू तोता है जिसे वे प्यार से ‘एलेक्स’ कहकर पुकारते है। वह कम से कम पचास चीजों का नाम बता सकता है। सौ तक गिनती गिनता है। जब थके हुए लोग घर आते है, तो एलेक्स तुरन्त पूछता है” ए मैन, क्या कुछ गड़बड़ है? इसी तरह जालंधर के संगीत प्राध्यापक अरुण मित्र के पास ‘सीता’ नाम की एक मादा तोता है। जो बिल्ली की म्याऊँ और कुत्ते की भौं-भौं की हू-ब-हू नकल करती है। घर आने वाले मेहमानों के साथ अंग्रेजी, हिन्दी व पंजाबी में सिखायी गयी बातों को बखूबी कहता है। स्लेटी रंग की यह तोता मूलतः अफ्रीका निवासी है, जिसे वहाँ ग्रे पैरेट के नाम से जाना जाता है। अपनी जबरदस्त संहारक शक्ति के कारण यह किसी भी भाषा में बोले गए शब्दों वाक्यों को बहुत जल्दी कंठस्थ कर लेती हैं। इसकी औसतन आयु भी ६. से ७. वर्ष के बीच होती है।

इंग्लैण्ड में एक मादा गोरिल्ला ने अंग्रेजी के एक हजार से अधिक शब्दों का अभ्यास किया है। जिनमें से पाँच सौ शब्द वह रोज बोलती है। यही नहीं वह बड़े मजे से मानवोचित शिष्टाचार को भी निभाती है। उसका भोजन भी आम इनसानों की भाँति है। अचरज की बात यह भी है कि उसे अपने गोरिल्ला होने पर गर्व है, जिसे वह अपने हाव-भाव एवं अंग्रेजी भाषा के माध्यम से प्रकट करती रहती है।

बैंकॉक में कुछ दिनों से एक कुत्ता खूब चर्चा में है। इसकी उदारता से प्रभावित होकर थाइलैंड की सार्वजनिक कल्याण परिषद ने इसे बतौर वेतन २५ हजार डॉलर प्रतिमाह उपलब्ध कराने का निर्णय किया है। यह कुत्ता अपनी माँ से बिछुड़े पिल्लों को विभिन्न ढंग से भोजन कराता है। इन आठ पिल्लों की माँ जब जहर खाकर मर गयी तब जोंग नामक इस कुत्ते ने भोजन के रूप में अपना खाना उगल-उगल कर एक सप्ताह खिलाकर उन्हें माँ के दूध के अभाव में मरने नहीं दिया। पिल्लों ने माँ के मरने के बाद किसी तरह भोजन नहीं किया था। उसकी सेवा का यह क्रम अन्यों के लिए भी जारी है।

जानवरों की इन विशेषताओं के कारण जापान में पालतू जानवरों के योगाभ्यास के केन्द्र खोले जा रहे हैं। ताकि शहरी जीवन के तनाव भरे वातावरण में भी शारीरिक एवं मानसिक रूप से वे स्वस्थ रह सके। इस अभियान की निदेशक शिगेनारी मासूदा का मानना है कि छोटे-छोटे फ्लैटों में अधिक समय तक रहने से जानवरों के पंजे कमजोर हो जाते हैं तथा वे निराशा व मोटापे के शिकार होने लगते है। इससे बचने के लिए उन्हें बाकायदा योगाभ्यास कराने की बात सोची जा रही हैं।

कंबोडिया के दक्षिणी भाग में स्थित एक छोटे से गाँव में दो साँड़ इन दिनों अच्छे खासे चर्चा का विषय बने हुए है। ये दोनों अपनी बिरादरी के सिद्ध पुरुषों से कम नहीं है। लोग दूर-दूर से इनका आशीर्वाद लेने आते हैं और इनका प्रसाद ग्रहण कर धन्य हो जाते हैं। इनके प्रसाद को हर मर्ज की दवा बताया जाता है। इनके आशीर्वाद से मरणासन्न व्यक्ति भला-चंगा हो जाता है। अंधा देखने लगता है, रोगी स्वास्थ्यलाभ पाता है। इन साँडों को अपना पेट पालने के लिए कोई श्रम नहीं करना पड़ता। लोग स्वयं ही इनकी सेवा में तत्पर रहते है। वे इन्हें ताजी हरी घास व फल सब्जियाँ खिलाकर प्रसन्न रखते है। इनकी कृपा हो तो ये व्यक्ति के हाथ पर जीभ फेरकर उसके कष्टों का निवारण करते है।

यदि किसी को इनकी सेवा का अवसर नहीं मिलता तो वे इनके गोबर मूत्र को ही प्रसाद रूप में ग्रहण करके अपने भाग्य पर संतोष कर लेते हैं। ऐसा ही प्रसाद ग्रहण करने वाली एक महिला बताती है कि वह १७५ किलोमीटर की यात्रा करके वहाँ आयी। उसने ७. अमेरिकी सेन्ट में गोबर मूत्र की दो थैलियाँ खरीदी। हेमनान नामक इस महिला ने बताया कि इस प्रसाद के सेवन से उसके सिरदर्द और दौरों की समस्या हमेशा के लिए ठीक हो गयी है। गाँव वालों का कहना है कि इन दोनों साँडों का सौभाग्य है कि ये दोनों कसाई के हाथों कटने से बच गए। साँडों के मालिक ने इन्हें कसाई के हाथों बेच दिया था। रात को देख एक स्वप्न ने उसे इन्हें वापस लाने के लिए विवश किया। स्वप्न में मालिक को ये दोनों साँड कंबोडिया के सिद्धपुरुष प्रीहाकोओ और प्रीहाकीओ के रूप में दिखाई दिए। वह किसान दूसरे ही दिन साँडों को खरीद कर वापस घर ले गया। रास्ते में एक साँड ने एक लँगड़े व्यक्ति को अचानक चाटा तो उसका मर्ज देखते-देखते दूर हो गया। इस घटना के बाद दोनों साँडों की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी।

ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण है, जो अन्य मानवेत्तर प्राणियों की रहस्यमयता एवं विचित्रता को उजागर करते हैं मानवेत्तर प्राणियों का यह रोचक संसार एक ही संदेश देता हुआ प्रकृति के अनुदान हमें भी कम नहीं मिले। आखिर हम भी आप से कम तो नहीं।


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