बोया और काटा का सिद्धांत (Kahani)

November 1998

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किसी को कुछ, किसी को कुछ देने के लिए लोग भगवान की निंदा कर रहे थे। उसे सुन रहे थे कोई दार्शनिक वे लोगों को साथ लेकर खेतों पर गए। एक में गुलाब बोया था, दूसरे में तम्बाकू। बदबू। दार्शनिक ने कहा-जमीन बहुत बुरी है। किसी को क्या, किसी को क्या देती है। उसका पक्षपात देखा।” लोग बोले-नहीं यह धरती का पक्षपात नहीं, बोने वालों के कृत्यों का फल है।” हँसते हुए ज्ञानवान ने कहा-भगवान की यह सृष्टि एक प्रकार का खेत है। उसमें कर्मों का जो जैसा बीज बोता है, वह वैसा ही काटता है।”


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