पिरामिडों में छिपे रहस्य व उनका संदेश

November 1998

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मानव द्वारा की गयी रचनाओं में पिरामिड सदैव ही रोमांचक एवं आश्चर्य का विषय रहे हैं इनमें गीजा का पिरामिड तो विश्व के महानतम सात आश्चर्यों के से एक माना जाता है। सदियों से इसकी कथा-गाथा इसकी वास्तुकला, ऐतिहासिकता चर्चा का विषय बनी रही है। यह पिरामिड सबसे बड़ा, सबसे भारी, सबसे पुराना, साथ ही गणित एवं ज्यामितीय दृष्टि से सबसे अधिक पूर्ण व समग्र हैं। यह महाद्वीप के केन्द्र में उत्तर दक्षिण अक्ष पर स्थित हैं समय के साथ उसके संदर्भ में नये-नये रहस्यों पर पर्दा उठता रहा है।

इस महान पिरामिड की सार्वभौम उपयोगिता का एक रहस्य अभी हाल में प्रकट हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार इस पिरामिड की आकृति उत्तर-दक्षिण अक्ष पर रहने की वजह से यह ब्रह्माण्ड में व्याप्त ज्ञात व अज्ञात शक्तियों को स्वयं में समाहित कर अपने अंदर एक ऊर्जा युक्त वातावरण तैयार करने में सक्षम हैं जो जीवित या मृत, जड़ व चेतन सभी तरह की चीजों को प्रभावित करता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए इन दिनों विज्ञानवेत्ता कुछ इंच से लेकर कई फुट तक के पिरामिड मॉडल तैयार करने में लगे है। इन घरेलू पिरामिडों का शुभारंभ फ्रांसीसी वैज्ञानिक मॉसियर बॉक्सि के प्रयोग के साथ हुआ। कई सालों पहले वह ग्रेट पिरामिड में गया था, वहाँ उसने बादशाह कक्ष में एक मरा कुत्ता देखा, जो सूखकर ममी बन चूका था, किंतु वह किसी तरह की सड़न या दुर्गन्ध से मुक्त था। इसे देखकर उसके मस्तिष्क में यह विचार कौंधा कि पिरामिड की आकृति में अवश्य कोई राज छुपा हुआ है। उसने ढाई फुट ऊँचा एक पिरामिड बनाया और बादशाह कक्ष के स्तर पर एक मृत बिल्ली को रखा, जो कि धरातल और शीर्ष के बीच एक तिहाई दूरी पर स्थित था। कुछ दिनों बाद वहाँ रखा बिल्ली का शव सूखकर ममी में बदल गया।

बॉक्सि के प्रयोग निष्कर्षों से प्रभावित होकर चैकोस्लोवाकिया के रेडियो इंजीनियर करेल डर्वल ने पिरामिड के कई छोटे-छोटे मॉडलों पर प्रयोग किए। जिसके आश्चर्यजनक परिणामों को शीला आस्ट्रेडर और लिन श्रोडर ने अपनी पुस्तक’ साइकिक डिस्कवरीज बिहाइण्ड द् आयरन कर्टेन’ में प्रस्तुत किया है। करेल डर्वल का निष्कर्ष था कि पिरामिड के अंदर के स्थान की आकृति व इसमें घटित होने वाली भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रिया में परस्पर घनिष्ठ संबंध हैं। इसके उचित उपयोग द्वारा हम क्रिया कोक तीव्र व धीमी कर सकते है। उपर्युक्त शोध के बाद इस विषय पर कई अनुसंधान व प्रयोग हुए हैं। ‘द् सीक्रेट पॉवर ऑफ पिरामिड’ में विपुल और एड पेरिट ने वृक्ष वनस्पति, ठोस द्रव पदार्थों, जीव जंतुओं व मानवीय चेतना पर पड़ने वाले इसके रहस्यमय व उल्लेखनीय प्रभावों का विस्तार से वर्णन किया हैं।

वैज्ञानिकों ने बीजों के अंकुरण व पौधे के विकास पर पिरामिड शक्ति का अद्भुत प्रभाव देखा है। उनके अनुसार पिरामिड में रखे गये बीज अधिक तीव्रता के साथ अंकुरित होते हैं। मैक्सग्रेथ ओर ग्रेग नेल्सन ने अपनी पुस्तक’ पिरामिड पॉवर’ में ऐसे ही प्रयोगों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि बागवानों ने पाया है, जो बीज बोये जाने से पूर्व पिरामिड में रखे गए थे, वे अधिक तीव्रता से अंकुरित हुए व इन्हें अन्य बीजों की अपेक्षा कम समय में अधिक स्वस्थ व सबल पौधों के रूप में विकसित होते देखा गया।

आरिगन की मनःचिकित्सक टेनीहेल का दावा है कि उसने एक पौधों का कटा हिस्सा पिरामिड ऊर्जा में रखा, जो पाँच दिनों तक जीवित रहा। जबकि इसका दूसरा हिस्सा बाहर पानी में रखने पर आधे घंटे में ही मुरझा गया। इतनी ही नहीं पिरामिड में एक सप्ताह या अधिक समय तक रखे गए जल द्वारा सींचे जाने पर पौधों की विकास गति भी अधिक तीव्र देखी गयी। इसी के अंतर्गत एक प्रयोग के तहत टमाटर की पौध को खेत में रोपे जाने से पूर्व दो सप्ताह तक पिरामिड में रखा गया। इन पौधों का विकास सामान्य टमाटर के पौधों की अपेक्षा बहुत अच्छा देखा गया व इनकी उत्पादन क्षमता भी असाधारण रही। इस क्रम में अलग-अलग क्षेत्रों में पौधों के विकास पा पड़ने वाले भिन्न-भिन्न प्रभावों को जानने के लिए भी प्रयोगों की एक श्रृंखला आयोजित की गयी। इन प्रयोगों में पिरामिड के शीर्ष पर तीव्रतम गति से पौधों को विकसित होते देखा गया, जबकि फर्श पर रखे गये पौधे सबसे धीमी गति से बड़े हुए।

प्रयोगकर्ता ने द्रवपदार्थों पर भी पिरामिड शक्ति के पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। एक प्रयोग के अंतर्गत ताजा दूध को दो समान के बर्तनों में भरा गया। एक बर्तन को पिरामिड के अंदर रखा गया और दूसरे को उसी के समान वायु, ताप वक प्रकाश की परिस्थितियाँ में रखा गया। छह दिन के बाद पिरामिड के अंदर वाले दूध में दही की परतें जमना शुरू हो गयी थी। जबकि बाहर के दूध में जम रही दही की सतह पर फफूँद जमने लगी थीं। एक दिन बाद इसमें और भारी फफूँदी जम गयी थी और इसे फेंकना पड़ा। छह सप्ताह बाद प्रयोग पूरा हुआ व पिरामिड में रखा दूध ठोस मलाईदार चिकने पदार्थ में बदल गया, जो दही की तरह दिख रहा था व स्वाद में भी वैसा ही था। इस पर किसी तरह की फफूँदी के कोई भी निशान नहीं थे। इस विशेषता को देखते हुए फ्राँस की एक कम्पनी ने दही बनाने के लिए पिरामिड आकार के उपकरण बर्तनों को पेटेंटीकरण करा लिया है। इटली की एक कम्पनी भी दूध के लिए पिरामिड आकृति के कार्बन प्रयोग में ला रही हैं।

आकहामा के एक रसायनविद् ने एक प्रयोग में पाया कि बैक्टीरिया संक्रमित दूध को पिरामिड में रखने पर दस दिनों के अंदर १६ प्रतिशत बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। पिरामिड के अंदर चार सप्ताह तक रखा गया जल, सामान्य जल की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से वाष्पित होता हैं २५. ग्राम जल पर पिरामिड के अंदर एवं बाहर कई प्रयोग किए गये। प्रत्येक बार पिरामिड में रखा हुआ जल, पन्द्रह दिन के अंतराल में

बाहर रखे गये जली की अपेक्षा २१ ग्राम अधिक वाष्पित हो रहा था।

विशेषज्ञों के अनुसार पिरामिडीय जल को कटे व जले हिस्से पर लगाने से घावों को शीघ्र ठीक होते देखा गया है। इनके अनुसार प्रतिदिन एक गिलास जल पाचनतंत्र को अधिक सशक्त करता है इससे अपच शीघ्र ठीक होती हैं और पेट अच्छे ढंग से साफ होता हैं। श्रीमती पेटिट ने पिरामिड द्वारा आवेशित जल को पाँच सप्ताह तक त्वचीय लोशन के रूप में प्रयोग करने पर सौंदर्य में निखार आते हुए देखा है। द्रवपदार्थों के अतिरिक्त ठोस खाद्य पदार्थों पर भी पिरामिड ऊर्जा के प्रभाव देखे गये है। माँस को पिरामिड में तीन सप्ताह तक रखने पर इसके भार में ६६ प्रतिशत की कमी तो अवश्य आयी परंतु यह खराब नहीं हुआ।

विज्ञान वेत्ताओं द्वारा पिरामिडों के अंदर किया गया आहार परीक्षण, मृत शरीर का ममी बनना और निर्जलन की उच्च दर यह स्पष्ट करते है कि पिरामिड में सक्रिय ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय स्पैक्ट्रम के सूक्ष्म हिस्से की ओर से हैं लेकिन इसमें चुम्बकीय गुण भी है, जिसके प्रभाव से रेजर के ब्लेड की धार को तीखा होते देखा गया है ऐसी ही एक ब्लेड से ५. से २... तक शेव करते देखा गया हैं। अच्छे स्तर की सटी से बेहतर परिणाम पाए गये। इससे यह स्पष्ट होता है कि जितना अधिक धातु रूप में गैरलौहतत्व इसमें विद्यमान होता है उतना ही पिरामिड ऊर्जा कस धातु के परमाणुओं पर प्रभाव कम पड़ता है।

पेड़ पौधों, खाद्य-पदार्थों धातु आदि पर पिरामिड ऊर्जा के प्रभाव के साथ इसका मनुष्य शरीर व चेतना पर पड़ने वाले प्रभावों का भी व्यापक अध्ययन हुआ है। पिरामिड के अंदर कटे अंग, जख्म व खरोंच आदि शीघ्र ठीक होते देखे गये हैं। ‘द् सीक्रेट पॉवर ऑफ पिरामिड ‘ के सहलेखक एड पेरिट ने अपने स्वयं के अनुभव का उल्लेख पुस्तक में किया है। उनके प्रोस्टेट रोग के लक्षण उभर आए थे इसी दौरान प्रयोग के तौर पर पेरिट ने सप्ताह में दो तीन रातें पिरामिड में सोना प्रारंभ किया। साथ ही नियमित रूप से पिरामिडीय जल का प्रयोग करते रहे। छह माह के अंतराल में प्रोस्टेट की तकलीफ छूमंतर हो गयी। जाँच करने पर इसके कोई भी लक्षण नहीं नजर आए।

‘पिरामिड पॉवर’ के लेखक मैक्सटॉय और ग्रेगनेलसन ने ऐसे लोगों का भी उल्लेख किया है। जो पिरामिड के समीप सोने भर से ठीक हुए। कुछ लोगों ने पिरामिड मॉडल को अपने बिस्तर या कुर्सी के समीप रखा। पिरामिड के सान्निध्य में कई रात की नींद या कई दिनों तक साथ बैठने भर से लोग के लक्षण एकदम विलुप्त हो गये या बहुत कुछ ठीक हो गये। विशेषज्ञों के अनुसार पिरामिडीय ऊर्जा मनुष्य की कायचेतना ही नहीं उसकी मनः चेतना को भी प्रभावित करने में सक्षम हैं। प्रयोगकर्ता वैज्ञानिकों ने कई ऐसे लोगों पर प्रयास किए, जिन्हें पिरामिड की कोई खास जानकारी नहीं थी। उन्हें पिरामिड के अंदर बैठने के लिए कहा गया और उनके अनुभवों का संग्रह किया गया। जिसके सर्वमान्य निष्कर्ष थे, संसार नीरवता एवं शांति की अनुभूति, संसार से अधिक अनासक्ति व भौतिक सुख भोगों में कम रुचि। ध्यान से परिचित लोगों ने बताया कि वे अधिक सरलता से मन को एकाग्र कर पा रहे थे। सभी विश्रांति का अनुभव कर रहे थे। व स्वयं को ऊर्जा द्वारा आवेशित पा रहे थे। नियमित रूप से पिरामिड ढाँचे में ध्यान का अभ्यास करने को कहना है कि उन्होंने ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के साथ एकात्मकता का अनुभव किया। कुछ लोगों को तरह-तरह की आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हुई व कुछ लोगों ने अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं को जाग्रत पाया।

आँरीगन की अतीन्द्रिय क्षमता संपन्न महिला टेनी हेल ने एक सप्ताह तक पिरामिड के अंदर किए गये गहन ध्यान व उपवास से अपने अंदर अद्भुत परिवर्तन अनुभव किया। उनकी पूर्व विद्यमान अतीन्द्रिय क्षमताओं में और निखार आ गया। ध्यान के बाद पिरामिड से बाहर आते ही उनके मस्तिष्क में दैवी संदेशों की बाढ़-सी आ जाती हैं। एक बार तो उन्होंने टाइपराइटर के पास बैठकर इसी स्थिति में लगभग सौ अलग-अलग तरह की भविष्यवाणियाँ कर डाली, जिनमें अधिकांशतः समय की कसौटी पर सही निकली।

फ्लोरिडा के दो अतीन्द्रिय शोधकर्ता रॉन आस्टर्ब्रो और श्रीमती रोज स्टीमन लकड़ी से बने एक विशाल पिरामिड में रहते हैं। वे मात्र फलों का रस लेते हैं और अधिकांश समय ध्यान में लगाते हैं। एक माह के बाद इस दंपत्ति ने शारीरिक कष्टों में हलकेपन का अनुभव किया। उन्हें जीवन का स्वरूप व मूल उद्देश्य अधिक स्पष्ट हो गया और दैवी संदेश भी आने लगे। स्वप्न अधिक स्पष्ट व सजीव हो गये। कई लोगों का कहना है कि पिरामिड ऊर्जा का नियमित सेवन एकाग्रता को बढ़ाता है विद्यार्थियों ने इसके द्वारा अपनी पढ़ाई लिखाई में आशातीत सुधार होते देखा। पिरामेडीटेशन के प्रधान व पिरामिडगाइड के संपादक गैरीस्टोप ने अपने प्रयोगों में पाया कि पिरामिड में ध्यान करने वालों की मस्तिष्कीय तरंगों की सक्रियता में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी होता है। करेलडर्वल पिरामिड को कॉस्मिकएंटीना की संज्ञा देते है, जो उनके अनुसार ब्रह्माण्ड में व्याप्त गहन स्तर के ऊर्जा स्रोत से ट्यूनिंग करता है और इसे केन्द्र में फोकस करता है। उनके अनुसार शायद इसी कारण प्राचीनकाल में मिश्र के धर्मपुरुष सूर्यदेवता की उपासना में पिरामिडीय टोप का उपयोग करते थे। इसके द्वारा उनका उद्देश्य सूर्य की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा को मस्तिष्क में केंद्रित कर ग्रहण करना था।

मिश्र के गेट पिरामिड के अन्दर चेतनात्मक परिवर्तन के अलौकिक अनुभवों की कुछ ऐतिहासिक घटनाएँ उल्लेखनीय है। १९७८ में नेपोलियन बोनापार्ट ने मिश्र पर विजय पा ली थी। व मिश्र के महान पिरामिड में भी पधारे और बादशाह कक्ष में प्रवेश करने पर कुछ समय एकाकी रहने का आग्रह किया।’ सीक्रेट ऑफ ग्रेट पिरामिड’ पुस्तक में पीटर हाॅपकिन घटना का उल्लेख करते हुए लिखते है कि बाहर आने पर नेपोलियन को बहुत पीला और प्रभावित होते देखा गया था। जब एक सहायक ने विनोदात्मक स्वर में पूछा कि क्या कोई रहस्यात्मक दर्शन हुए है? तो बोनापार्ट ने रूखे स्वर में कहा था कि इस घटना की दुबारा चर्चा न की जाए। बस उन्होंने मात्र इतना संकेत किया कि उन्हें अपनी नियति का पूर्वाभास हो गया है।

१९३. के दशक में दार्शनिक लेखक डॉ. पाल ब्रंटन की पिरामिड में बितायी गयी एक रात का घटनाचक्र भी अलौकिक रहस्यों का उद्घाटन करता है। उनसे एक सौ वर्ष पूर्व व उसके बाद आज तक शायद ही कोई गीजा के पिरामिड में पूरी रात ठहरा हो। विशेष अनुरोध पर ही उन्हें अनुमति दी गयी थी। संकल्प के धनी ब्रंटन महोदय पिरामिड में निहित सत्य की खोज के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने एक रात केन्द्रीय कक्ष में खुद अंधेरे में बितायी। वहाँ वह मन शांत व स्थिर करके बैठ गए। धीरे-धीरे अदृश्य जगत के जीवन दर्शन शुरू होने लगे। एक कालप्रेत उनकी ओर बढ़ा और धमकी भरी मुद्रा में उसने अपने दोनों हाथ उनकी ओर उठाए मानो वह उन्हें भयाक्रान्त करना चाहता हो। ऐसे अनेक प्रयास और हुए। अंत में इसका चरमोत्कर्ष आया। भयावह भूत की घटनाएँ निम्न जगत की शैतानी दहशत उनके चारों ओर इकट्ठा होती गयी।

इस घटनाचक्र का अंत सनसनीखेज आकस्मिकता के साथ हुआ। वहाँ सब कुछ शांत हो गया। पुनः एक नई उपस्थिति अनुभव हुई। भयावह, दुष्ट व शैतानी वातावरण अब पवित्रता व सात्विकता से भर गया। डॉ. ब्रंटन ने कई दोस्ताना व शुभचिंतक आत्माओं को अपनी ओर आते देखा। वे लम्बे थे और सफेद वस्त्र पहने थे। वे मनुष्य से अधिक कुछ देवतुल्य लग रहे थे। कुछ देर तक उन्हें देखते रहने के बाद इसमें से एक बोला कि ब्रंटन महोदय तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था। लेकिन जब उन्होंने अपनी अडिगता का संकल्प दुहराया, तो देवपुरुष बोला ऐसा ही हो! तुम्हें चुन लिया गया, अपने संकल्प को निभाना अलविदा!

जब प्रथम आकृति चली गयी, तब फिर दूसरी समीप गयी और बोली मेरे पुत्र! गुह्यशक्तियों की समर्थ सत्ता ने तुम्हें अपने हाथों में ले लिया हैं। इसी के साथ उन्हें पत्थर की शवपेटिका पर लेटने के लिए कहा गया। उनका सारा शरीर धीरे-धीरे सुन्न पड़ गया। इसके बाद जैसे वह अज्ञात में कूद पड़ा। शरीर के बाहर एक बोतल उन्हें पिरामिड के अन्य भाग में ले गया, जहाँ उन्हें शिक्षण दिया गया। जिसकी चर्चा ब्रंटन महोदय ने नहीं की। ’द् विज्डम ऑफ ओवरसेल्फ’ नामक अपनी रचना में उन्होंने पिरामिड रहस्यों का सार प्रकट करते हुए लिखा है। पिरामिड का रहस्य वास्तव में मनुष्य के अपने और पुरातन दस्तावेज संग मानवीय प्रकृति में विराजमान है।”

पिरामिड के रहस्यों की खोज में अभी मनुष्य के कई प्रश्न अनुत्तरित है। पिरामिड में अभी और क्या ज्ञान छिपा है? इसमें विद्यमान ऊर्जा का स्वरूप क्या है? इस ज्ञात व अज्ञात ऊर्जा का मूल श्रोत क्या है? पिरामिड में और क्या-क्या रहस्यों का उद्घाटन होना है? लगता है कि मानवीय चेतना का समग्र अनुसंधान किए बिना यह खोज अधूरी ही रह जाएगी।

पूर्व अंतरिक्षयात्री एडगर मिचैल के अनुसार हम अज्ञात की खोज में अपनी क्षमता की बाह्य सीमाओं की बुलन्दियों को छू रहे हैं। इस खोज को और आगे बढ़ाने के लिए हमें इनके अन्वेषणकर्ता का भी अध्ययन करना होगा। यदि ज्ञान और ऊर्जा के सभी मार्ग चेतना की ओर जाते है, तो हमें अंत इसे भी समझना होगा, अन्यथा यात्रा लक्ष्य से भटक जाएगी। यह भी मनुष्य के पिरामिड का संदेश प्रतीत होता हैं। जो कभी आरेकल ने दिया था कि ऐ मनुष्य! स्वयं को जान।

आखिर ब्रह्माण्ड में विद्यमान समस्त आकृतियों और संरचनाओं में मनुष्य ऊर्जा का उत्पादन, अभिवर्द्धन व उपयोग करने वाला सबसे जटिल और सक्षम माध्यम हैं। उसके अन्दर सारा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। ज्ञान-विज्ञान और शक्ति की सारी संभावनाएँ उसमें बीज रूप में विद्यमान है। प्रत्येक प्रयोग में इसके अभिन्न रूप से जुड़े होने के कारण कोई भी प्रयोग या खोज इसके प्रभाव से अछूती नहीं रह सकती। पिरामिड के अध्ययन व रहस्योद्घाटन में भी मानवीय चेतना की प्रभावोत्पादक क्षमता व उसकी हिस्सेदारी एक महत्वपूर्ण घटक है। इसके रहस्यों की कुँजी मानवीय चेतना के रहस्यों में छिपी है उस गति से हम मानवीय चेतना के विविध आयामों से अवगत होंगे, उतना ही अधिक हम पिरामिड में निहित रहस्यों का समझ पाएँगे। डॉ. पाल ब्रंटन का यह कथन करता प्रतीत होता है। कि बाहर के पिरामिड को जानने से पूर्व अंदर के पिरामिड का साहचर्य भी हमें इसी ओर प्रेरित करता और सहायक सिद्ध होता है। दैनिक जीवन से लेकर आत्मिक जीवन तक पिरामिडों का सहयोग हम सबके लिए वरदान से कम नहीं।


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