अपनों से अपनी बात - साधना से विमुख होकर मनुष्यत्व को लाँछित न करें

December 1998

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इक्कीसवीं सदी की युगक्रान्ति अब अधिक दूर नहीं। आने वाले चार सौ से भी कम दिनों में हम एक दशक ही नहीं सदी ही नहीं, एक सहस्राब्दी पाकर सन् २००० में प्रवेश करेंगे। परमपूज्य गुरुदेव सहित अनेकानेक महापुरुषों के अनुसार नवयुग के फलितार्थ होने की सही अवधि यही समय है। आगामी चार सौ दिन और उसके बाद के चार सौ दिन हम सबके जीवन में एक बहुमूल्य अवसर बनकर आ रहे है। महाकाल की असीम अवधि में युग की, इतिहास की दृष्टि से सैकड़ों क्या, हजारों वर्षों का भी कोई महत्व नहीं होता। राजतंत्र से प्रजातंत्र की यात्रा में भी हजारों वर्ष लग गए। सभ्यता, शिष्टाचार, अनुशासन सीखने में भी हमें कम समय नहीं लगा। तब काल की गति धीमी थी। अब विकास-परिवर्तन जो भी कहें, तीव्रगति से हो रहा है। अब इसका प्रभाव किसी व्यक्ति, समुदाय या क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं, इससे समूचा विश्व-दृश्य व परोक्ष जगत भी प्रभावित होगा। इच्छा या अनिच्छा से विश्व के सभी निवासियों को प्रवाह के साथ बहने के लिए, समय के साथ चलने के लिए विवश होना पड़ेगा।

यदि हम समय के महत्व को समझते है, तो हमें बिना एक पल गँवाए इनसानियत का पुनः स्थापित करने हेतु मानवी-मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए साधना प्रधान प्रयासों में अभी से जुट जाना चाहिए। समय की गति को देखते हुए ये प्रयास अत्यधिक तीव्र गति से बड़े व्यापक स्तर पर होने चाहिए, तभी यह दार्शनिक क्रान्ति -वैचारिक क्राँति -विश्व के भावनात्मक कायाकल्प की भूमिका संपादित कर पाएगी। साधनात्मक पुरुषार्थ सामूहिक स्तर पर तीव्र होगा तो ही उन दैवी-प्रकोपों से वह मानवमात्र की रक्षा कर सकेगा, जो आने वाली अवधि में अपेक्षित है। यह चर्चा उस युगसंधि महापुरश्चरण के अंतिम चरण के सदी में की जा रही है, जिसमें देवात्मशक्ति-कुण्डलिनी शक्ति के विश्वस्तर पर जागरण की प्रक्रिया संपन्न करने का पुरुषार्थ संपन्न होने जा रहा है। साधनावर्ष जो वसंत पंचमी सन् १९९९ (२२ जनवरी) से वसंत पंचमी सन् २००० (१० फरवरी) तक सारे भारत व विश्व में मनाया जा रहा है, इस महापुरश्चरण का अंतिम तीव्र वेग वाला चरा है, जिसका समापन नवयुग के आगमन की वेला में महापूर्णाहुति के साथ होगा।

आज चारों ओर निगाह डालकर देखें तो दृश्य व परोक्ष दोनों ही स्तर पर अराजकता का साम्राज्य छाया दिखाई देता है। मनुष्य ने ही साधना का, आत्मसंयम का पथ छोड़ आज ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी है कि सारी मानवजाति का अस्तित्व संकट में दिखाई देता है।

विकृत बुद्धिवाद, असीम सुखोपभोग की लालसा एवं कामुकता के उन्माद ने आज जो स्थिति उत्पन्न की है, उससे लगने लगा है कि इनसानियत हैवानियत में बदल गई है। अन्ततः इसका मूल कारण एक ही नजर आता है-तात्कालिक वेला को प्रधानता देने वाले प्रत्यक्षवाद को लोकमान्यता मिल जाना-वहीं सब कुछ नजर आना एवं प्रकारान्तर से यही जीवनदर्शन बन जाना।

मानवीसत्ता के हर पक्ष में घुस पड़ी विज्ञान की प्रगति जन्य अराजकता से यदि लड़ा जा सकता है तो मात्र साधना के अमोघ हथियार से। परोक्ष को साधकर ही प्रत्यक्षवाद पर अवलम्बित इस दर्शन को उलटा जा सकता है। उलटे को उलट कर सीधा करना ही विचारक्रांति है। यही इस युग के महाकाल की युगप्रत्यावर्तन प्रक्रिया है।, जिसे युगसाधना के माध्यम से अगले दिनों संपन्न होना हैं

विचारक्रांति के तीन पक्ष है- बौद्धिक क्राँति से मनुष्य के चिंतन में परिवर्तन नैतिक क्राँति से मनुष्य के चरित्र में परिवर्तन एवं सामाजिक क्रान्ति से व्यक्ति के व्यवहार में आमूलचूल बदलाव। मनुष्य की सत्ता भी इन्हीं तीन हिस्सों में बँटी हुई है-चिंतन -चरित्र एवं व्यवहार। इन तीनों ही क्षेत्रों का साफ-सुथरी रहना समय की महती आवश्यकता है। एक में भी विकृतियों का समावेश हुआ तो सर्वनाश सुनिश्चित है। बौद्धिक क्रान्ति से चिंतन की अवांछनीयता, मनोविकारों, सनकों, अनगढ़ महत्त्वाकाँक्षाओं से जूझा जाता हैं चिंतन का ही प्रभाव चरित्र पर भी पड़ता है। चरित्रनिष्ठा ही नैतिकता है। मानवी गरिमा के अनुरूप दायित्वों का निर्वाह-शिष्टाचार-अनुशासन का परिपालन इन्हीं का समन्वय चरित्र का निर्माण करता है। ये मर्यादाएँ-अनुशासन बने रहें-वर्जनाओं का निर्वाह हो - इस व्रतशीलता के निर्वाह को नैतिक क्रान्ति नाम दिया गया है। ये दोनों ही क्रान्ति धर्मतंत्र के माध्यम से, युगसाधना के निर्वाह से जिसका विस्तार बड़े व्यापक क्षेत्र में है, संपन्न होती है एवं इस युग प्रत्यावर्तन की वेला में उसी तीव्रता संपन्न होने जा रही है जिस तीव्रता से अवांछनीयताओं का समावेश चिंतन व चरित्र में हुआ था।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी व्यक्तित्व का विकसित रूप ही समाज है। सामाजिक क्राँति व्यक्ति के व्यवहार की परिष्कृत व सुव्यवस्थित करती है। जैसे-जैसे विवेकशीलता, दूरदर्शिता, न्याय निष्ठा का विस्तार होता चला जाता है- धर्म धारण विस्तृत आकार लेकर सारे समाज व विश्व को प्रत्यक्ष व परोक्ष जगत को प्रभावित कर जन -जन के व्यवहार में नीतिमत्ता, उत्कृष्टता का संचार कर सतयुगी संभावनाएँ साकार बनाती चली जाती हैं

यदि हमारे अंदर समझदारी का थोड़ा-सा भी अंश विवेक-बुद्धि के रूप में, दूरदर्शिता के रूप में विद्यमान है, तो हमें समय की विषमता का समझना व आने वाले युग की पदचाप को परिवर्तन की आहटों को सुनने का प्रयास, करना चाहिए। यह लोभ-मोह के लिए खपने और अहंकार -प्रदर्शन के लिए खपने और अहंकार-प्रदर्शन के लिए ठाट-बाट बनाने की बात सोचने का समय नहीं है। यह असाधारण व आपदाधर्म के पालन वाला समय हैं सूक्ष्मजगत में साधनारत ऋषिगणों की तपश्चर्या के साथ जुड़ने की ठीक यही समय है। धरती के जीवन का भाग्योदय इन्हीं दिनों होने वाला है। दैवी प्रयास इतने तीव्र होने जा रहे है कि उसमें यदि हमारी साधना का सम्पुट लग भर जाय तो न केवल परिवर्तन शीघ्र होगा- हम उसके केन्द्र में एक भूमिका निभा रहे होंगे। आने वाले समय के अनुरूप हम सभी बन सकें- उसमें अपना जीना सुनिश्चित कर सके- उसके लिए हम सभी को अपनी तैयारी करनी होगी। बदलने जा रही-बनने जा रही दुनिया के अनुरूप हमें अपने आपको भी बदलना होगा एवं यह कार्य मात्र साधना के ब्रह्मास्त्र संभव हैं अब यह व्यक्ति ही नहीं, सामाजिक आवश्यकता भी बन गयी। इसी कारण सारे भारतवर्ष के चप्पे-चप्पे में, विश्व के कोने-कोने में अखण्ड जप-साधना के, उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना के ऐसे आयोजन संपन्न होने जा रहे है, जिनसे अभूतपूर्व शक्ति का उपार्जन होगा। इससे जो सुरक्षाकवच विनिर्मित होगा, वह निश्चित ही अंतर्ग्रही प्रभावों ग्रहों की युति के कारण संभावित प्रतिकूल परिस्थितियों से हमारी रक्षा कर सकेगा। प्रस्तुत साधना अंक में साधना प्रक्रिया के उसी तत्त्वदर्शन पक्ष को स्पष्ट किया गया है। आगामी अंक के व्यावहारिक प्रतिपादन से परिजन जान सकेंगे कि अगले दिनों उन्हें किस स्तर पर अपना साधना -पुरुषार्थ किन-किन रूपों में आगे बढ़ाना हैं यदि हम समय रहते जागकर, अपने जीवन की रीति-नीति को बदलकर, जीवन साधनामय बना सके तो हमसे अधिक सौभाग्यशाली कोई ओर नहीं होगा।

साधना प्रशिक्षण के भारतव्यापी सत्र

युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में विगत दिनों ३१ अक्टूबर, १ नवम्बर की तारीखों में संपन्न विशेष सत्र में साधनावर्ष हेतु व्यापक मंथन कर प्रारंभिक प्रशिक्षण सत्रों का स्वरूप निर्धारित कर ४८ स्थानों का चयन कर उनकी तिथियों का निर्धारण कर दिया गया। प्रशिक्षणों का प्रारूप पूर्व निर्धारित ५ दिवसीय आयोजन के स्थान ढाई दिवसीय ही रखा गया हैं एक दिसम्बर से प्रायः जनवरी के तीसरे सप्ताह तक चलने वाले इन क्षेत्रीय प्रशिक्षण सत्रों के नाम व उनकी तिथियाँ इस प्रकार है-

उत्तर प्रदेश - (१) आँवलखेड़ा १५ से १७ जनवरी (२) बस्ती १८ से २० दिसम्बर (३) बरेली २५ से २ दिसम्बर (४) बुलन्दशहर १३ से १५ दिसम्बर (५) झाँसी १५ से १७ जनवरी (६) नोएडा ११ से २१ जनवरी (७) शुक्लागंज-उन्नाव १ से ३ जनवरी (८) सुल्तानपुर २९ से ३१ दिसम्बर (९) वाराणसी १३ से १५ दिसम्बर (१०) अल्मोड़ा (तिथि निर्धारण बाद में)।

बिहार- (११) बोकारो ३ से ५ जनवरी (१२) जमशेदपुर १० से १२ जनवरी (१३) कटिहार २३ से २५ दिसम्बर (१४) मुजफ्फरपुर २७ से २९ दिसम्बर (१५) पटना ३१ दिसंबर से २ जनवरी।

मध्यप्रदेश- (१६) भिलाई ११ से २९ जनवरी (१७) भोपाल ३० दिसम्बर १ जनवरी (१८) चित्रकूट ११ से १३ जनवरी (१९) बिलासपुर ३ से ५ जनवरी (२०) उज्जैन २६ से २८ दिसम्बर (२९) जबलपुर ७ से ९ जनवरी।

राजस्थान- (२२) बाड़मेर १३ से १५ जनवरी (२३) चूरु १० से १२ दिसम्बर (२४) जयपुर १८ से २० दिसम्बर (२५) कोटा २२ से २४ दिसम्बर (२६) राजसमन्द ८ से १० जनवरी।

उड़ीसा- (२७) भुवनेश्वर २ से ४ जनवरी (२८) केराकापूत २९ से३१ दिसंबर (२९) सम्बलपुर ६ से ८ जनवरी।

गुजरात-३० अहमदाबाद २५ से २७ दिसम्बर (३१) अमरेली १५ से १७ जनवरी (३२) भुज ६ से ८ जनवरी (३३) डीसा २ से ४ जनवरी (३४) कायावरोहण-बड़ोदरा ११ से २१ दिसम्बर (३५) नवसारी ५ से १७ दिसम्बर (३६) मेहसाणा २९ से ३१ दिसम्बर (३७) राजकोट १० से १२ जनवरी (३९)सारसा २२ २४ दिसम्बर।

महाराष्ट्र- (३९) भुसावल ८ से १० दिसम्बर (४०) नागपुर ४ से ६ दिसम्र (४१ पुणे १२ से १४ दिसम्बर) (४२) हिंगोली १७ से १९ दिसम्बर।

अन्य प्रान्त- (४३) तिनसुकिया १४ से १६ जनवरी (४४) कलकत्ता ८ से १० जनवरी (४५) चण्डीगढ़ ५ से ७ दिसम्बर (४६) कुरुक्षेत्र ९ से ११ दिसम्बर (४७) शिमला १ से ३ दिसम्बर (४८) हैदराबाद २४ से २६ दिसम्बर।

एक केन्द्र बैंगलोर का कार्यक्रम वसंत पंचमी के बाद प्रस्तावित है।

उपर्युक्त कार्यक्रमों के लिए वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की चार टोलियाँ ३ नवम्बर से प्रस्थान कर गयी है।


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