भक्ति की महिमा (Kahani)

December 1998

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कुरुक्षेत्र में भव्य मेले का आयोजन था। भगवान कृष्ण भी द्वारिकावासियों के साथ मेले में आए थे। देवर्षि नारद भगवतदर्शन को धराधाम पर पधारे एवं श्रीकृष्ण की पटरानियों से कहा-तीर्थ में दिया गया दान अक्षय होकर शाश्वत रूप से प्राप्त हो जाता है। सत्यभामा के बात जम गयी। उनने सोचा भगवान श्रीकृष्ण से प्रिय कोई नहीं है। वे ही हमें अक्षय होकर प्राप्त हो जाएँ, इससे बड़ी क्या बात हो सकती है, किंतु जो प्रिय है उसे दान में कैसे दिया जाय? जिज्ञासा व्यक्त की गयी तो देवर्षि बोले-उसका मूल्य देकर उसे वापस लिया जा सकता है। अभिमानी सत्यभामा ने कहा- हम श्रीकृष्ण को दान देकर बराबर मूल्य देकर उन्हें वापस ले लेंगे व जन्म-जन्मान्तरों के उनके साथी बनेंगे।

दान दे दिया गया। अखिल ब्रह्मांडनायक श्रीकृष्ण एक तुलापट पर। दूसरे पर हीरे-चाँदी जवाहरात रख दिए गए। पलड़ा ज्यों-का-त्यों रहा। देवर्षि ने कहा-आप संकल्प करती जाएँ, रखती जाएँ। सभी वहाँ मौजूद थे। युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ का राज्य, उग्रसेन ने अपना राज्य संकल्पित कर रखा। पलड़ा यथावत रहा। श्री बलराम की माता वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी वहाँ पर थीं। वे बोली-यहाँ नन्दबाबा का भी शिविर लगा है। कन्हैया बिकेंगे तो भक्ति के मोल ही। यह धन सिर्फ ब्रज के लोगों के पास है। सभी वहाँ गए। राधिका जी से अनुरोध किया। उनने सहायता का आश्वासन दिया। सारे मुकुट-संकल्पादि उतार लिए गए। राधाजी ने "श्रीकृष्ण शरणं मम” कहकर एक तुलसीदल तुलापट पर रख दिया। रखते ही श्रीकृष्ण ऊपर व तुलसी दल वाला पलड़ा भारी होकर नीचे हो गया।

भक्ति की महिमा देखकर सभी उपस्थिति जन धन्य हो गए। राधाजी की भक्ति के आगे सारे ऐश्वर्य दो कौड़ी के हैं- यह कहकर सत्यभामा के अभिमान को चूरकर देवर्षि वह तुलसीदल रूपी प्रसाद लेकर संकीर्तन करते प्रस्थान कर गए। धन्य है ब्रज व उसकी भक्ति।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118