अध्यात्म रामायण के अनुसार हनुमान जी बोले-
“देहदृष्टातुदसोऽहम् जीव दृष्टा त्वदम् सखा।”
देहदृष्टि से तो मैं। आपका दास हूँ, पर जीवदृष्टि से तत्वदृष्टि से आपका ही अंश हूँ। फिर मेरी इच्छा हो सकती है? अवतारी पुरुष श्रीराम को मात्र हनुमान ही गुरुरूप में पा सके। शेष सभी की तो अपनी-अपनी इच्छाएँ, आसक्तियाँ भी, अतः वह लाभ इन्हें नहीं मिला। कामनाओं का त्याग, उन्हें इतिहास में ऐसा स्थापित कर गया कि राम से अधिक हनुमान के मन्दिर आज है।