ईश्वरीय अनुकम्पा (Kahani)

December 1998

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बुल्लेशाह बगदाद के खलीफा थे। सात मंजिल का उनका महल था। वे महत्त्वाकाँक्षाओं, कामनाओं वाली जिन्दगी जी रहे थे। एक दिन एक आवाज ऊपर से आयी। पता लगाओ कि ऊपर से कौन बोल रहा है। कौन बिना इजाजत ऊपर चला गया। एक फकीर को पकड़कर लाया गया। पूछा क्या कर रहे थे ऊपर सातवीं मंजिल पर। बोले-ऊँट खो गया था, ढूँढ़ रहा था। खलीफा बोले-ऊँट वहाँ कैसे जा सकता है। वहाँ कैसे मिलेगा। फकीर बोले- तो तुम्हें भगवद्ज्ञान क्या मंजिलें-महल खड़े करने से, कामनाओं का जाल बढ़ाते चलने से मिल जाएगा। हम तो तुझे संदेश देने आए थे कि क्या करने आया था, क्या करने में लग गया। इतना कहकर फकीर गायब हो गए। उसी दिन बुल्लेशाह फकीर बन गए। गुरु को पहचाना, तप में लीन हो कैवल्य ज्ञान को प्राप्त किया। ईश्वरीय अनुकम्पा गुरु के माध्यम से समय-समय पर ऐसा ही संदेश देने आती है।


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