समर्थ रामदास विवाह मण्डप से ‘सावधान’ सुनते ही भाग निकले। उन्होंने गोदावरी के किनारे टाकली गाँव में एक गुफा खोद डाली। उसी में बैठकर रात्रि में व दिन में कमर भर पानी में खड़े रहकर गायत्री मंत्र जप करते थे। पानी में खड़े रहने से उनकी त्वचा सफेद पड़ गयी थी। जाड़ा-धूप पानी सभी मौसम में यही विधान उनका रहता था। इसी मंत्रजप के चमत्कार से उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन हुए। लोककल्याण शक्ति संचार हेतु परिव्रज्या का आदेश मिला। घूमते-घूमते माँ के पास भिक्षा लेने पहुँचे। माँ ने अपने बेटे नारायण (समर्थ का पूर्व नाम) की आवाज सुनी तो भागी-भागी चली आयीं। पुत्रवियोग में वे आँखों की ज्योति खो बैठी थी। जब पुत्र की आवाज सुनी-” हम राम के दास हैं-रामदास तो तुरन्त चिल्लायी-तू-नारायण है क्या? तुरन्त समर्थ ने माँ को प्रणाम किया एवं स्पर्श किया। तत्क्षण ही उनकी आँखों की ज्योति लौट आयी। समर्थ के अनेकानेक चमत्कार सिद्धियाँ है। गायत्री की बारह वर्ष तक की गयी साधना व श्रीरामनाम जप ने ही उन्हें यह नाम दिलाया।