तिनके की तरह विनम्र, पेड़ की तरह सहन करने की शक्ति, स्वयं मान की इच्छा न हो, दूसरों को मान दें तथा सदैव हरि का स्मरण करते रहें यही साधक के लिए अनिवार्य हैं। -चैतन्य महाप्रभु