वसंत (kavita)

February 1997

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हर वसंत ने लिस जीवन के, नये-नये शृंगार किये। उसके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये॥

उसके जीवन में वसंत की परिभाषा साकार हुई। उसकी’जीवन को जीने की कला’ वसंत-बहार हुई ॥

उसने वासंती-चिंतन को भी, अनुपम आकार दिये। उसके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार’ दिये॥1॥

मानवीय चिंतन, चरित्र के उपवन में पतझर देखा। भावों के बिरवे मुरझाये देख, खिंची चिंता-रेखा॥

स्नेह और संवेदन रस से, सूखे बिरवे सींच ये। उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥2॥

जीवन भर ही वासंती-बलिदानों का बाना पहिना। वासंती-व्यक्तित्व निखारा, पहिन तितीक्षा का गहना॥

जन-जन को मुस्कानें बाँटीं, खुद पीड़ा के घूँट पिये। उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती -उपहार’ दिये ॥3॥

‘गायत्री-परिवार’ बनाया अपने प्राण पिला कर के। पाला-पोषा बड़े प्यार से माँ ने स्नेह लुटा कर के ॥

माँ की छाती, हृदय पिता का, थे कितने अरमान लिये। उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार ‘ दिये ॥4॥

बार-बार आत्मचिंतन को, पर्व-वासंती आता है। बलिदानी-जीवनी से जोड़ा, किसने ? कितना ? नाता है॥

या उनके प्राणों को पीकर, उन प्राणों को त्रास दिये। जिनके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥5॥

उनके अरमानों की बगिया, कहीं न हम ही मुरझा दें। अहंकार की, राग-,द्वेष की लपटे, उसे न झुलसा दें॥

हर वसंत ने चेताने को, हमें यही निर्देश दिये। उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार- दिये॥6॥

उनके जन्मदिवस पर, अपने मन को संकल्पित कर दें। अहंकार का शीश काटकर, चरणों में अर्पित कर दें॥

ताकि उन्हें विश्वास हो सके, उनके ही अनुरूप जिये। जिनके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥7॥

-मंगल विजय ‘विजय वर्गीय’

*समाप्त*


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