धर्मप्रेमियों ने हदीसी धर्मगुरु बालशेम से प्रार्थना की-गुरुदेव! अपने शिष्य मिखाल को आप ही समझाइए कि अब वह योग्य हो गए हैं, उन्हें धर्मगुरु का पद स्वीकार कर लेना चाहिए।
धर्मगुरु बालशेम ने मिखाल को बुलाकर कहा-तुम्हें अपनी जिद छोड़ देनी चाहिए और जनमत एवं मेरे आदेशों का पालन कर गुरुपद स्वीकार कर लेना चाहिए। किन्तु गुरुदेव! मैं जिस पद के योग्य नहीं हूँ, उसे स्वीकार कर लोगों को कैसे गुमराह करूं। मेरी आत्मा तो ऐसा करने की कतई इजाजत नहीं देती।
काला कौआ रोज मुंडेर पर आ बैठता और काँव-काँव करता रहता। छोटे बालक ने अपनी माता से पूछा-माँ! यह कौआ काला क्यों होता है और इतनी जल्दी सुबह-सुबह आकर क्या कहता रहता है?
माँ ने कहा-बेटा! सुबह-सुबह आकर यह सबको सावधान करता है। आओ, सब लोग मुझे ध्यान से देखो और सुनो। भक्ष्य-अभक्ष्य खाने और बिना उचित-अनुचित विचार किए कुछ भी करते रहने से मेरा शरीर कितना काला-कुरूप हो गया है। यही शिक्षा देने यह सबेरे-सबेरे आ जाता है। जिससे पूरे दिन आदमी बुरे काम ओर खान-पान से बच सके।
दमिश्क में एक बार अकाल पड़ा। लोग बेमौत मरने लगे। जो जिन्दा थे वे भी सूखकर पिंजर हो रहे थे। इन्हीं दिनों एक अमीर की सन्त शेख शादी से भेंट हुई। वह भी औरों की तरह सूख रहा था।
शेख सादी ने पूछा, भला आपके पास किस बात की कमी है, आपके यहाँ तो सभी सुख-साधन और पर्याप्त खाने को है फिर आप क्यों चिन्तित लगते हैं?
अमीर ने कहा-महोदय! क्या वह कभी तंदुरुस्त हो सकता है जिसकी बगल में पड़ा बीमार आदमी कराहता है। आस-पास के लोग मुसीबतों से घिरे हों। तो कितना भी निजी सुख हो, जहर बन जाता है।