जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे

February 1997

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प्रश्न- “अखण्ड ज्योति” के शाँतिकुँज विशेषांक अगस्त 1996 में प्रकाशित लेख “क्या देखा-क्या पाया” पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें मात्र वरिष्ठ राजनेताओं -अभिनेताओं के ही विचार शामिल किए जाते हैं, वह भी सिर्फ प्रशंसाएं, उनके संकल्प मात्र ही। क्या ऐसा संभव नहीं कि आम जनता, टोली प्रचारक, शाखा केन्द्र के प्रतिनिधियों के विचार उसमें प्रकाशित हो सकें?

उत्तर:- शाँतिकुँज रूपी कल्पवृक्ष में, युगतीर्थ में अनेकानेक विशिष्ट, अति विशिष्ट व्यक्तित्व आते रहते हैं। ये सभी मंच से अपने क्षेत्र-विशेष से जुड़े विषयों पर उद्बोधन भी देते रहते हैं। इनमें कुछ राजनेता है, कुछ अधिकारीगण, कुछ समाजसेवी, पर्यावरणविद् एवं कुछ संतगण। सभी के मतों को जो विजिटर बुक्स में दिए गये हैं, सरसरी तौर पर छाँटकर कुछ को ही दिया गया है। अभिनेता मात्र एक हैं एवं एक ऐसे हैं जिनने रामायण सीरियल बनाकर अपनी पहचान संस्कृति क्षेत्र में करायी। संभवतः आपको इन दो पर एवं कुछ राजनेताओं के नामों पर ऐतराज हो। यह भी जान लेना चाहिए कि जो भी बहिरंग जीवन में जैसा भी है, वह शांतिकुंज नामक रूपी पारस का स्पर्श पाकर जो भी अभिव्यक्ति करता है, वह उसकी अकेले की नहीं, उन विचारों का है जो अभिव्यक्त किये गये हैं। आम परिजनों के विचार यदि नामों के साथ अखण्ड ज्योति में प्रकाशित हों तो पूरी पत्रिका में मात्र यही होगा। जिसका नाम नहीं होगा, वह नाराज होगा, जिसका होगा उस पर कइयों को ऐतराज भी हो सकता है। “प्रज्ञा अभियान” पाक्षिक के माध्यम से सत्प्रवृत्ति-संवर्द्धन, विद्या-विस्तार से प्रकाशित करते हैं ताकि औरों को प्रेरणा मिले। यहाँ तो हमने मात्र एक अंक में कुछ अग्रणी व्यक्तियों की, जिनमें कुछ मुस्लिम परिजन भी हैं एवं महात्मा आनन्द स्वामी जैसे आर्यसमाज के महान संत भी, अभिव्यक्ति दी है, वह भी शाँतिकुँज के बारे में परिजनों के विचार, सम्मतियाँ सदैव आमंत्रित हैं परन्तु प्रकाशन हेतु नहीं।

प्रश्न:- मई 1996 में प्रकाशित “विगत डेढ़ माह की आपबीती, कुछ अनुभूतियाँ” लेख में लिखा था कि संपादक को अपने कई प्रश्नों का जवाब इस डेढ़ माह की अवधि में मिला। वादा भी किया गया था कि प्राप्त ज्ञान संपदा को समय-समय पर आपस में बाँटते रहेंगे। पीड़ा के क्षणों की अनुभूतियों से हम सभी अवगत हो, अपने भी कष्टों का समाधान खोजने की विधा विकसित करना चाहते हैं। (यह प्रश्न अगणित व्यक्तियों ने पत्र द्वारा पूछा है, जवाब यहाँ दिया जा रहा है)

उत्तर:- आपकी और अधिक जानने की जिज्ञासा स्वाभाविक है। जो भी कुछ उन दिनों व बाद की अवधि में समय-समय पर अनुभूति के स्तर पर उपलब्ध हुआ है, उसे लिपिबद्ध कर किसी व्यक्ति विशेष नहीं, किसी भी साधक की जो कि लोकसेवा के मार्ग पर चलते हुए शारीरिक-मानसिक कष्टों का सामना करता है, अनुभूतियों के रूप में, लेख रूप में प्रकाशित किया जाता रहेगा। इससे लोकसेवा के मार्ग पर प्रवृत्त होने वालों को विशिष्ट आत्मबल भी प्राप्त होगा। गुरुसत्ता के सतत् सान्निध्य की अनुभूति कैसे किसी व्यक्ति को अपनी पीड़ा को भी सृजनात्मक आधार दे सकती हैं, यह जानकार सभी परिजन लाभान्वित होंगे।

प्रश्न:- ग्रामीण परिवेश से संबंधित लेख अखण्ड ज्योति में अधिक आना चाहिए। यह जन-जन की पत्रिका है। क्या आप यह नहीं सोचते कि इसे सत्तर प्रतिशत ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहिए?

उत्तर:-परमपूज्य गुरुदेव ने “अखण्ड ज्योति” को व्यक्ति निर्माण से समग्र समाज व विश्व निर्माण हेतु, “युग निर्माण योजना” मासिक को परिवार एवं समाज निर्माणपरक प्रमुखतम शिक्षण हेतु तथा “प्रज्ञा अभियान पाक्षिक” को कार्यकर्ता, मार्गदर्शिका व मिशन की प्रवृत्तियों से सभी को अवगत कराने का निमित्त बनाकर प्रकाशित करते रहने का निर्देश दिया था। इस कुछ समय पूर्व तक पालन किया जाता रहा है। किन्हीं कारणवश “युग निर्माण योजना” मासिक में वह पक्ष जो ग्रामीण परिवेश के नव-निर्माण, परिवार-समाज निर्माण संबंधी, बहुविधि गतिविधियों संबंधी साहित्य हम दे नहीं पाए। अब इसे “अखण्ड ज्योति” में ही समाहित कर इसी में समग्र चिन्तन देने का प्रयास विगत कुछ अंकों से कर रहे हैं। इसी तत्व-दर्शन का एक व्यावहारिक पक्ष “युग निर्माण योजना” पत्रिका में आता रहेगा। दोनों ही पत्रिकाओं के प्रधान लेखों को गुजराती युग शक्ति गायत्री, बंगाली, उड़िया व मराठी पत्रिकाओं में अनूदित कर प्रकाशित किया जाता रहा है।

प्रश्न:-क्या यह संभव नहीं कि अन्यान्य पत्रिकाओं की तरह “अखण्ड ज्योति” पत्रिका में भी शीर्षक या विषयवस्तु से जुड़े चित्र भी प्रत्येक लेख के साथ दिए जाएँ। इनसे एक नया आकर्षण तो आएगा ही, लोगों को अध्यात्म प्रधान विषय सरलता से समझ में आ सकेगा।

उत्तर:-बिल्कुल संभव है, किंतु वर्तमान बजट में नहीं। अभी पत्रिका “न नफा न नुकसान” नीति पर चल रही है, तब भी अनेकों प्रेमी परिजनों के नाम पड़ी उधार राशि और अधिक कष्ट दे जाती है फिर भी हम पूरी तरह निराश नहीं हैं। परिजन-पाठकगण अपनी ओर से चन्दा नियमित रूप से भेजते रहें तो हम एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं। लाइन चित्रों के माध्यम से समझाने का हम प्रयास करेंगे कि लेख की विषयवस्तु क्या है।

प्रश्न:-रोचक कथानक या दृष्टान्त प्रधान पैनेल्स या बाक्स में दी गयी सूक्तियाँ अब पत्रिका में कम देखने में आती है। यदि इन की संख्या बढ़ायी जा सके तो बहुत से नये पाठक जो पहले इन्हीं को पढ़ते हैं, लाभान्वित हो सकते हैं।

उत्तर:- हमारा प्रयास है कि हम इनकी संख्या बढ़ायें। कभी-कभी लेखों की लम्बाई उन्हें स्थान नहीं लेने देती। चूँकि पत्रिका लिखी शांतिकुंज ब्रह्मवर्चस हरिद्वार में जाती है तथा छपाई मथुरा होती है, पेजमेकिंग प्रक्रिया व संपादन में एक “गैप” सी आ जाती है। उसे दूर करने का प्रयास अब उसी आकार में शाँतिकुँज के डी.टी.पी. विभाग में कम्पोज व पेजमेकिंग में कर यहीं से पैनेल्स लगाकर भेजने की व्यवस्था के रूप में किया जा रहा है। संभवतः उससे पत्रिका को और आकर्षक बनाया जा सकेगा। कार्यभार अत्यधिक होने के बावजूद भी यह अब संभव हो सकेगा क्योंकि कम्प्यूटर्स ने यह प्रक्रिया सरल कर दी है।


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