तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)

February 1997

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पड़ोस में एक वृद्ध की मृत्यु हो गयी। गाँव के ढेरों लोग इकट्ठे हो गए ओर लगे सब रोने। उनमें से कुछ ने कहा-भाई रोते क्यों हो आत्मा तो अमर है ? तभी किसी ने संसार की नश्वरता का बखान शुरू किया। इसी तरह कहने-सुनने में बात खत्म हो गयी।

तभी दूसरी बार गाँव में मृत्यु हुई। अब की बार आत्मा को अमर बतलाने वाले घर कोई मरा था। उसी तरह गाँव के लोगों ने इकट्ठे होकर रोना शुरू कर दिया और वही बाते फिर दुहराई जाने लगी-आत्मा अमर है, संसार नश्वर है।

तभी इनमें से किसी समझदार आदमी ने पूछ लिया- जब आप सब जानते हैं। कि आत्मा अमर है और संसार नश्वर तो फिर रोते क्यों हैं ? दूसरा बोला-हमें तो सिर्फ इतना मालूम है कि ये बाते किसी के मरने पर कहीं जाती हैं हम लोग तो इसी तरह आपस में एक दूसरे का व्यवहार चुकाते रहते हैं

समझदार आदमी को पता चल गया कि तोता रटन्त ज्ञान कितना बेकार होता है। वह यही सोचता हुआ आगे बढ़ गया कि सार्थक ज्ञान वहीं है, जो जीवन में उतार लिया जाय।


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