परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी

February 1997

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(बसंत पर्व 8 फरवरी, 89 पर दिया गया वीडियो संदेश)

गायत्री मंत्र मारे साथ-साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों, भाइयों! संसार के इतिहास में दो प्रमुख बड़ी क्रांतियां हुई हैं। एक क्रान्ति आज से हजारों वर्ष पूर्व राम-रावण के समय हुई थी। उस चारों ओर रावण का आतंक फैला हुआ था। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची थी। इस आतंक से जनता को बचाने और उसे साँत्वना देने के लिए एक ऐसा समय आया, जिसने सारे वातावरण को बदल दिया। सोने की लंका, एक लाख पूत, सवा लाख नातियों वाले रावण के राक्षस साम्राज्य को राम ने समाप्त कर दिया। उस समय रामराज्य की स्थापना हुई। अपने समय की यह सबसे बड़ी क्रान्ति थी।

दूसरों एक और बड़ी क्रान्ति हुई। उसे महाभारत का काल कहते हैं। उस समय भी जरासंध, कंस, चाणूर से लेकर दुर्योधन तक का आतंक सारी दुनिया में फैला हुआ था। उस समय के आतंक को समाप्त करने की हिम्मत किसी साधारण व्यक्ति में नहीं थी, तब एक शक्ति, एक क्रान्ति आयी और उस समय के दुर्दान्त जरासंध, कंस एवं दुर्योधन जैसों का कहीं ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद ही कृष्ण भगवान की भारत को महान भारत बनाने की कल्पना सार्थक हो सकी थी। इसके बाद चाणक्य के सान्निध्य में चन्द्रगुप्त ने भी कोशिश की थी। हम यह कह सकते हैं कि इसमें भी भगवान का योगदान था, अन्यथा महाभारत-निर्माण का काम साधारण नहीं था। एक महान शक्ति के सहयोग से ही यह कार्य हो सका। इन दोनों क्रान्तियों के बारे में आपने रामायण में और महाभारत में पढ़ा होगा। इस पर आजकल टी. वी. सीरियल भी बनाया गया है।

एक तीसरी क्रान्ति इस समय आयी है जिस समय में हम और आप रह रहे हैं। रामायण की क्रान्ति एवं महाभारत की क्रान्ति आपने देखी नहीं है, केवल टी. वी. पर देखी है, सुनी है, तथा किताबों में पढ़ी है। परन्तु यह क्रान्ति रामायण एवं महाभारत से भी ज्यादा बड़ी है। आप चाहें तो इसे अपनी आँखों से भी देख सकते हैं।

बीसवीं सदी इसी परिवर्तन को लेकर आयी है। दो हजार वर्षों से हमारे देश में विदेशी शासन था। धर्म का कोई स्थान ऐसा नहीं बचा था जहाँ मंदिरों, तवद्या केन्द्रों को तोड़ा नहीं गया था। मुसलमान आये, अंग्रेजों से हम कैसे आजाद हो गये, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। जिसका साम्राज्य सात समुद्रों तक फैला था, उसका शासन कैसे समाप्त हो गया था भारत कैसे स्वतंत्र हो गया? यह प्रश्न सोचने-विचारने योग्य है। इसके पीछे भगवान की शक्ति काम करती रही है। चाहे यह काम गाँधी ने किया हो या किसी और ने किया हो, परन्तु यह काम शक्ति का था व्यक्ति का नहीं। व्यक्ति की सामर्थ्य उतनी नहीं हो सकती है कि इतनी बड़ी ताकतवर सत्ता को उखाड़कर फेंक दे। इस सदी में यह एक बहुत बड़ी क्रान्ति आयी।

परतंत्रता की लम्बी अवधि में, विशेषकर इस सदी में भारतीय संस्कृति प्रायः मृतप्राय हो गयी थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक दूसरी क्रान्ति-बौद्धिक, नैतिक एवं साँस्कृतिक क्रान्ति की हुई। भारतीय धर्म अध्यात्म का नया स्वरूप बतलाया गया। संस्कृति की जानकारी लोगों की मिली, लोगों ने प्रयास किया तो भारतीय संस्कृति का सार, वेदों का ज्ञान घर-घर जा पहुँचा। आपने सुना होगा कि अस्तेय नामक एक ऋषि थे, जो समुद्र के अत्याचार को देखकर समुद्र के सारे जल को पीने के लिए उद्यत हो गये थे। ठीक उसी प्रकार इस युग में भी एक साधनहीन व्यक्ति सारे वेदों का सार घर-घर पहुँचाने में समर्थ हो गया। आपको इन बातों पर विश्वास नहीं हो सकता कि इसने हमारी संस्था भी एक है, जिसको प्रारंभ हुए अभी केवल पचास वर्ष हुए हैं, इतने समय में क्या सभी काम पूरे हो गये? कदापि नहीं। अभी तो भारतीय संस्कृति की जानकारी केवल भारत के लोगों को मिली है, बाकी विदेश के लोगों को इसका ज्ञान भी नहीं है इसे उन तक पहुँचाने का कार्य शेष है, उसे भी पूरा करना है। राम-राज्य की स्थापना-सतयुग की स्थापना करना बाकी है। कुछ कठिनाइयों का निवारण तो हुआ है, किन्तु अभी ढेरों काम बाकी है, जिसे पूरा करना है

टाप जिस समय यहाँ बैठे तथा इस महापुरश्चरण में भाग ले रहे हैं, उसे युग संधि का समय, युग परिवर्तन का समय कह सकते हैं। इस-युग परिवर्तन के समय महाकाल का संदेश हर बसंत पंचमी पर आता रहा है। इस प्रकार हमारे जीवन में 65 बसंत पर्व क्रमशः आते चले गये और हर बसंत पंचमी पर एक कान का आदेश आता चला गया तथा वह पूरा होता चला गया। इस प्रकार 65 बसंत पंचमी में महत्वपूर्ण कार्य होते चले गये। अगर इसे हम देखें तो यह देश, समाज और संस्कृति के लिये उतनी ही बड़ी क्रान्ति हुई जितनी कि रावण काल में हुई थी, जिसे भगवान राम ने सम्पन्न किया था। अभी जितना काम हो गया है, उससे भी कहीं ज्यादा काम अभी बाकी हैं अभी युग संधि का बहुत बड़ा काम भगवान को, हमको और आपको मिलकर पूरा करना है। ये बारह वर्ष जो आज बसंत पंचमी से प्रारम्भ होते हैं, अगले दिनों सन् 2000 तक चलते रहेंगे। इसमें बहुत बड़े-बड़े काम होंगे, बड़े-बड़े परिवर्तन होंगे जो लोगों को बाद में दिखाई पड़ेंगे। राम को तथा बन्दरों को भी 12-14 वर्ष का वनवास हुआ था। आपको भी सन् 2000 तक यानी 12 वर्ष का वनवास होगा।

वनवास क्या होता है? वनवास वन होता है जिसमें व्यक्ति को मात्र अपना लक्ष्य याद रहता है और बाकी चीजें गौण हो जाती है। रामराज्य की स्थापना के समय भी हर व्यक्ति जो उसमें सहयोगी था, अपनी घरेलू समस्या को भूल गया था, राम, सीता और लक्ष्मण सब कामों को भूल गये थे और उस एक महत्वपूर्ण कार्य में लग गये थे। पाण्डव भी इसी प्रकार अपना व्यापार, काम-काज भूल गये थे और भगवान के कामों में लग गये थे। अतः हम सबको भी बारह वर्षों के लिए अपने अन्य तमाम कामों छोड़कर भगवान के काम में लग जाना है। इसके बाद क्या होना है? इसके बाद आप देखेंगे कि जिसे हम इक्कीसवीं सदी कहते हैं, उसमें विशाल भारत, जो महाभारत काल में बना था, उससे भी ज्यादा विशाल एवं विख्यात भारत बनकर सामने आयेगा। जिस प्रकार रावण के मरने के पश्चात् रामराज्य की स्थापना हुई थी, उसी प्रकार की कल्पना आप इक्कीसवीं सदी में कर सकते हैं। अगले दिनों इतिहास में एक बहुत बड़ा समय आने वाला है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यह समय महत्वपूर्ण एवं अनोखा होगा। इस समय आपको क्या-क्या करने होंगे? कौन-कौन से काम करने होंगे? इक्कीसवीं सदी में क्या-क्या चीजें समाप्त होने जा रही हैं तथा क्या-क्या होना वाला है? इस पर एक पुस्तक लिखी जा रही है, जिसे आप देखकर सब बातें समझ सकते हैं।

मित्रों, यहाँ पर हम इक्कीसवीं सदी की बात न करके युग संधि पर विशेष चर्चा करेंगे। यह 12 वर्ष बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। जिस प्रकार लक्ष्मणजी ने 14 वर्ष ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए राम एवं सीता को सहयोग देकर पूरा-पूरा क्रान्ति में सहयोग दिया था, आपको भी लक्ष्मण की तरह होना चाहिए। बड़े काम के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ती है। शादी-ब्याह के समय, मकान बनाने के समय, किसी शत्रु देश से लड़ाई हो जाने पर बड़ी तैयारी करनी पड़ती है। उसी प्रकार इस समय आपको बड़ा काम करना है और इसके लिए आपको बड़ी तैयारी करनी चाहिए। क्या तैयारी करनी चाहिए? आपको मालूम होना चाहिए कि बड़ी शक्तियां, दैवी शक्तियां पर कार्य हेतु अपने ढंग से काम करेंगी, परंतु आपको भी गिलहरी, रीछ-बन्दर, ग्वाल-वालों की तरह अपने जिम्मे का काम करना होगा। आप छोटे हैं तो क्या हुआ? आपको अपने हिस्से का काम करना है।

क्या करना है? इस बार बारह वर्ष के लिए भगवान की यह प्रेरणा आई है कि इन बारह वर्षों में हम सबों को ज्यादा से ज्यादा समय लोकमंगल के लिए देना चाहिए। भगवान का कार्य करना चाहिए। अपना ज्यादा से ज्यादा श्रम, समय, अक्ल भगवान के कार्य में लगाना चाहिए, ताकि हम लोग अधिक से अधिक भगवान का कार्य कर सकें। अगर आप यह समय न भी लगाये तो भी यह कार्य महाकाल का है, जो पूरा होकर ही रहेगा, इसमें राई-रत्ती भर संदेह नहीं है। परन्तु एक बात यहाँ आपको बतला देना आवश्यक है कि आपको तो निमित्त मात्र बनना है। राम और कृष्ण में इतनी शक्ति थी कि वे सारा काम अकेले कर सकते थे, परन्तु उसमें उन्होंने छोटे-छोटे लोगों का सहयोग लिया था। इस कारण से वे लोग भी धन्य हो गये थे।

महाभारत में एक कथा आती है कि भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बार-बार कह रहे थे कि देख दुर्योधन को तथा विरोधियों को हमने पहले ही मार दिया है। हम तो तुम्हें केवल श्रेय देना चाहते हैं। उठ और युद्ध कर। उस पर भी अर्जुन नहीं उठे तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें परुँसक तक कह डाला और बोले अगर मुझे श्रेय नहीं लेना तो दूसरे ले लेंगे, परंतु तू मुझे यह बता कि युद्ध में छेय लेने में तुझे आपत्ति है?

मित्रों, ऐसे अवसर कभी-कभी ही आते हैं जब लोगों को श्रेय मिलता है। पिछले दिनों आजादी की लड़ाई के बाद जो भी काँग्रेस के टिकट पर चुनाव में खड़े हो गये, वे चाहे गरीब आदमी रहे हों या पिछड़े आदमी रहे हो, वे जीत गये और एम.एल. ए., एम. पी. बन गये, मिनिस्टर बन गये। उस समय काँग्रेस की धाक थी। भगवान की प्रेरणा तथा लोगों की श्रद्धा उसके साथ थी। उस समय आजादी की लड़ाई में जो भी लोग सम्मिलित हुए, वे लाभ में रहे हैं। एक बात हम आपको यह बतलाना चाहते हैं कि यह जो क्रान्ति होने वाली है, बीसवीं सदी का मापन होने वाला है, इक्कीसवीं सदी आने वाली है, उसमें भी कुछ भी इसी प्रकार का होने वाला है। इस क्रान्ति में यदि आप सम्मिलित रहे तो हम आपको यकीन दिलाते हैं कि आप नफे में रहेंगे। आप श्रेय और यश के भागीदार होंगे। भगवान के काम में जो भी व्यक्ति हाथ बँटाता है, वह नफे में रहता है। हम भी तो नफे में रहे है, यह आप देख ही रहे हैं। हमने अपना शरीर भगवान के काम में लगाया तो हम कमजोर नहीं हुए। हमारा अस्सी वर्ष का शरीर अभी भी बारह घंटे काम करता रहता है। हमारा शरीर तथा मन अभी भी कमजोर नहीं हुआ है। अगर हमने अपना शरीर भगवान के काम में नहीं लगाया होता तो हम नहीं कर सकते कि हम जिन्दा रहते या नहीं। जब हम पीछे की ओर मुड़कर देखते हैं तो पाते हैं कि हजारों लोग जो हमारी उम्र के थे वे मर गये। किसी को कैंसर हो गया, किसी को मधुमेह आदि की बीमारी हो गयी, पर हम पूर्ण स्वस्थ है।

साथियों हमने अपना शरीर भगवान के काम में लगाया और भगवान ने हमारे भीतर अपना शरीर लगा दिया। और क्या हुआ? हमने जो बोया वह हजार गुना हो गया। हमने बोया और काटा है। हमने अपना सारा का सारा जीवन भगवान के लिए लगा दिया है। जहाँ हमारा जन्म हुआ था, उस भूमि पर आज इंटर कालेज बना है। एक गायत्री कुँड बना हुआ है, जिसमें बारहों महीने पानी भरा रहता है। आँवलखेड़ा छोड़ने के बाद भगवान की कृपा से न जाने क्या-क्या होता चला गया। हमने चौबीस सौ गायत्री शक्तिपीठें बनायी है। इसमें कितनी लागत लगी है, इसका आप अनुमान कर लेवें। यह कहाँ से आ गया? हमने जो बोया है, उसे काटा है। धन के साथ में हमने अपनी अक्ल बुद्धि, चिन्तन, वाणी, लेखनी सभी कुछ केवल भगवान के लिए लगाया, तो आपने देखा न कि हमारी बुद्धि, लेखनी का कितना विकास हुआ। यह सारा भगवान को सौंपने के कारण हुआ है। हमने तो एक साधारण परिवार में जन्म लिया, परन्तु भगवान ने हमें न जाने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया। आज संसार भर में लोग हमें एक महापुरुष के रूप , एक महान व्यक्ति के रूप में जानते हैं। हमारे विचार अभी सात भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। पाँच लाख ग्राहक तथा पच्चीस लाख पाठक हमारी पत्रिका के हैं। अगर हम किसी स्कूल-कॉलेज में पढ़े होते तो किसी तरह से हमारी बुद्धि का विकास इतना संभव नहीं होता जो आज हो रहा है। यह सारा भगवान के लिए, समर्पित होने का लाभ है तथा समय की माँग के अनुसार कार्य करने का है

किन-किन ने समय को पहचाना और समय की माँग के अनुरूप अपने को समर्पित किया? हनुमानजी की मूर्तियाँ आपने देखी हैं। उन हनुमानजी ने समय को माँग को देखा तथा राम के कार्य लिए समर्पित हो गये। जामवंत ने कहा “रामकाज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भये पर्वताकारा।” इसका नतीजा यह हुआ कि हनुमानजी जो एक बन्दर थे और उन्होंने जब संकल्प कर लिया कि “रामकाज कीन्हें बिनुख् मोहि कहाँ विश्रज्ञम” तब वे भगवान हो गये। सारे जगहों में आज उन्हीं की पूजा होती है। उन्होंने सीता का पता लगाया, लंकादहन किया, समुद्र को लाँघ गये। पर्वत को उखाड़ जाये तथा संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी प्राण बचाये। यह सारे कठिन एवं असंभव कार्य वे कैसे कर पाये। यह सभी कार्य केवल भगवान को समर्पण करने के कारण ही वे कर पाये, अन्यथा किसी भी हालत में एड़ी-चोटी एक करने के बाद भी नहीं कर पाते। हमने अपनी सारी जिन्दगी में एक ही चीज ढूँढ़ी है कि जो व्यक्ति समय की माँग को समझता है तथा भगवान के कार्य में अपनी अक्ल, श्रम, समय, धन−संपदा लगा देता है, वह महान बन जाता है उसकी शक्ति बढ़ जाती है। जो समय के महत्व को समझता है, वह धन्य हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “तू खड़ा हो जा।” तो वह खड़ा हो गया और निहाल हो गया। हनुमान को भगवान राम ने कहा था कि तू खड़ा हो गया और निहाल हो गया। हनुमान को भगवान राम ने कहा था कि तू खड़ा हो जा तो वे निहाल हो गये॥ हमारे गुरु ने हमसे कहा था कि तू खड़ा हो जा, तो उसने हमें निहाल कर दिया।

मित्रों, आज सन् 1989 के बसंत पंचमी के दिन आपके लिए भी ऐसा ही संदेश आया है कि आप भी खड़े हो जाइये। आप लोग यह नहीं सोचें कि हमारा पेट कैसे भरेगा? हमारी औलाद का क्या होगा? हम आपको पूर्ण विश्वास दिलाते हैं कि आपका पेट भी भरेगा तथा आपकी औलाद भी ठीक रहेगी। हमारा पेट भी भर रहा है तथा हमारी लाखों औलादें भी बड़े आनन्द में हैं और फल-फूल रही हैं। अगर इस बसंत पंचमी के दिन आप अपनी संकीर्णता को निकाल दें तथा भगवान के कार्य के लिए आगे आवें तो आप, हम और भगवान-तीनों धन्य हो सकते हैं।

हमने आपको भगवान के छोटे-छोटे काम सौंपे हैं। आप छोटे-छोटे संगठन बनायें। आप पाँच आदमियों का प्रज्ञामंडल बनायें। सत्संग, हवन प्रारंभ कर दें, ताकि आपके माध्यम से हमारी विचारधारा, युग परिवर्तन की विचार-धारा जो अगले समय में होने वाला है, आपके माध्यम से घर-घर पहुँच जाये। आप अपनी भूमिका अदा करें। आप अपना समय, साधन, श्रम एक अंश युग परिवर्तन के लिए निकालने का प्रयास करें। हम चाहते हैं कि आप प्रज्ञामंडल के माध्यम से युग परिवर्तन का संदेश पहुँचाने का प्रयास करें। हम चाहते हैं कि किसी जमाने में दुर्गाजी शक्ति संगठन के रूप में प्रकट हुई थी- आप भी उसी प्रकार की शक्ति अपने प्रज्ञामंडल द्वारा युग परिवर्तन के लिए इकट्ठा करें। आप भगवान के कार्य में सहयोग देने के लिए आगे आवें। इसके द्वारा ही यानी कि इस संगठन के द्वारा ही युग की समस्या का समाधान हो सकता है। अतः इस महान अवसर पर आपका आह्वान किया जा रहा है।

आज हमने 65 बसंत पूरे कर लिये। हमारी अखण्ड ज्योति की साधना अनवरत रूप से चल रही है। हमने हर बसंत पर्व पर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है तथा उसे पूरा किया है। इस बसंत पर भी हमने तीन कार्यों के लिए कदम बढ़ाया है। पहला प्रज्ञा-मंडल का गठन, दूसरा साप्ताहिक दीप यज्ञ-सत्संग की शृंखला प्रारम्भ करना। तीसरा है- बुराइयों का, दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन करना। इसके द्वारा ही हम इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। युग संधि की वेला में बुराइयों का उन्मूलन अनिवार्य है, ताकि जो कुछ भी आपको खेत में बोना है, वह सुगमता के साथ फलता-फूलता है रहे और इक्कीसवीं सदी में नई फसल आवे। इक्कीसवीं सदी नये फल-फूलों से लदी हुई आवे। इसके लिए अब केवल बारह वर्ष रह गये हैं। आप लोग अधिक से अधिक अपना समय, श्रम, अकल, धन जब तक आप जिन्दा रहें, लगाते रहें। हम चाहते हैं कि आप इन चीजों को भगवान के खेत में बोयें एवं लाभ प्राप्त करें। जैसे कि लाभ और चमत्कार हमारी जिन्दगी में आये, आपके जीवन में भी वैसे ही लाभ और चमत्कार आयें।?

मित्रों, आपसे हमारा निवेदन है कि आप हमारे हाथ से हाथ, कन्धे से कन्धा, पैर-से-पैर मिलाकर चलें। जिस रास्ते पर हम चले हैं तथा लाभ प्राप्त किया है, उसे आप भी प्राप्त करें। यह इतना बड़ा व्यापार है जितना कभी भी इस संसार में नहीं हुआ। यह बारह वर्ष समर्पण करने, त्याग करने, बीज बोने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यदि आप यह कर सके, तो हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि भावी पीढ़ियाँ श्रद्धावनत हो आपको याद करेंगी। इस बसंत पंचमी के पावन अवसर पर हमें आपसे जो करना था, हमने आपको बतला दिया। अब प्राप्त करेंगे। क्या करना है, आप सोचें व शीघ्र निर्णय लें। यह समय अब बार-बार आने वाला नहीं है। आशा है आप हमारी अंतः की हूक को पीड़ा को समझेंगे। हमारी बात समाप्त।


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