अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?

February 1997

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*अखण्ड-ज्योति मात्र एक पत्रिका नहीं, छपे कागज का पुलिन्दा नहीं, अपितु युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की प्राणशक्ति का एक अंश है, जो आप तक प्रत्यक्ष मार्गदर्शक के रूप में पहुंचा है

*1937 से आरम्भ हुआ यह शक्ति का प्रवाह जो लेखनी संजीवनी के माध्यम से कुछ सौ व्यक्तियों से आरम्भ होकर अब प्रायः दस लाख व्यक्तियों तक पहुँचाता है, एक ऐसा अमृत है जिसका पान करके आप स्नेह सम्वेदना की गंगोत्री से सीधे जुड़ जाते हैं।

सामान्य व्यक्ति से लेकर साधना विज्ञान की गूढ़तम गहराइयों में जाने वाला व्यक्ति भी इसके माध्यम से व्यक्तित्व के परिष्कार, परिवारों में सुसंस्कारिता -सम्वर्धन एवं समाज के नवनिर्माण का व्यावहारिक मार्गदर्शन प्राप्त करता है।

पारस एवं कल्पवृक्ष की उपमा प्राप्त यह पत्रिका अनेकों व्यक्तियों के जीवन का कायाकल्प कर, उन्हें सही राह पर चलने का शिक्षण दे पाने में समर्थ हो पायी है, अनेकों को अपने वर्तमान व भविष्य सम्बन्धी परोक्ष संरक्षण उसके द्वारा प्राप्त हुआ है।

सरल , सुगम शैली में अध्यात्म के तत्वज्ञान को विज्ञान की , तर्क तथ्य प्रमाण की कसौटी पर कसते हुए हम पत्रिका ने नास्तिकवाद से जमकर मोर्चा लिया है एवं करोड़ों व्यक्तियों को आशावाद की संजीवनी का पान कराया हैं

जीवन जीने की कला का व्यवहारिक अध्यात्म के माध्यम से शिक्षा इस पत्रिका की विशेषता है सरल चुभने वाले दृष्टांतों एवं आदर्श वाक्यों से अनेकों व्यक्ति नित्य प्रेरणा लेते व उल्लास भरे जीवन का शिक्षण प्राप्त करते हैं।

नरपशु से देवमानव बनने की विधा को कैसे जीवन का अंग बनाया जाय , यह इस पत्रिका की मूल धुरी है। गायत्री महाविद्या ओर या ऊर्जा का तत्वज्ञान सद्ज्ञान व सत्कर्म के रूप में उतारने का शिक्षण इस पत्रिका की एक अनूठी विशेषता है।

क्या सद्गृहस्थ रहकर भी जीवन-साधना करते हुए ऋद्धि सिद्धियों का भाण्डागार हस्तगत किया जा सकता है। हाँ, यह पत्रिका अपने लेखों द्वारा यही मार्गदर्शन देती है।

किसी साहित्य की, कथोपकथन की शैली को सरस-रोचक बनाते हुए आदर्शवादी सिद्धान्तों को जीवन में उतारा जाना कैसे सम्भव है, यह शिक्षण आप इस पत्रिका द्वारा प्राप्त करते हैं।

संयमशीलता को उभारकर मनोबल की शक्ति से कैसे प्रतिकूलताओं में बदला जाय, इसका एक समर्थ साकार रूप इस प्राणऊर्जा के प्रवाह में परिलक्षित होता है।

बिना किसी विज्ञापन के, बिना किसी एजेण्ट के “न लाभ न नुकसान” की नीति पर चलते हुए आदर्शों का प्रतिपादन करने वाली एक आध्यात्मिक पत्रिका कैसे सफलतापूर्वक इतनी लम्बी यात्रा पार कर सकती है, इसका एक प्रत्यक्ष जीवन्त उदाहरण अखण्ड-ज्योति है।

आज यह पत्रिका अपने 6 लाख ग्राहकों एवं सहयोगी पत्रिकाओं सहित 10 लाख पाठकों के माध्यम से पचास लाख से अधिक नर-नारियों का मार्गदर्शन कर रही है।

यदि आप अभी तक उसके सदस्य नहीं है, जो आज ही बन जाइये। यदि आप पूर्व सदस्य रहे है, तो देव संस्कृति दिग्विजय अभियान को गतिशील बनाने के लिए न्यूनतम नये पाँच व्यक्तियों को उस पुण्य प्रक्रिया के साथ जोड़कर श्रेय के भागी बनिए।


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