रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग

February 1997

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जाड़ों की गुनगुनी धूप सब ओर नर्म कालीन की तरह फैली हुई थी। समुद्र की मृदुल हिलकोरियों का मधुर कल-कल नाद उसके समूचे अस्तित्व को तरंगित कर रहा था। सागर की विशालता और गहराई, उर्मियों के उतार-चढ़ाव की महकता को उसने पहले भी निहारा था। आखिर उसका अपना भी देश तो समुद्र किनारे ही बसा है। फिर भी यहाँ कुछ खास ही अन्तर नजर आ रहा था। यहाँ और वहाँ के समुद्री किनारों में कुछ ,खास ही अन्तर नजर आ रहा था। यहाँ उसके अपने देश की तरह वैभव की चमक-दमक और वासना की विलास लीलाएँ नहीं, पवित्रता की सुगन्ध बिखर रही थी। भगवान जगन्नाथ के सान्निध्य ने पुरी के इस समूचे क्षेत्र को स्वर्गीय सौंदर्य से भर दिया था।

आज वह यूँ ही सागर तट पर घूमने आ निकला था। यद्यपि भारत आए उसे महीनों गुजर चुके थे पर पुरी आए हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे। उसकी इस यात्रा का मकसद जितना कौतूहलवर्धक था उतना ही रहस्यमय भी। वह भारत की खोज में भारत आया था। यूँ तो पश्चिमी दुनिया अब तक भारत से अनजान नहीं थी। वास्कोडिगामा ने काफी अर्से पहले यहाँ आकर दुनिया जहान को बता दिया था कि यह देश सोने की चिड़िया है। उसने यहाँ के बारे में यहाँ आने से पहले बहुत कुछ पढ़ा था। इस देश के वैभव-समृद्धि के बारे में अनेकों किम्वदन्तियाँ सुन रखीं थीं। पर उसे इन सबके प्रति कुछ खास आकर्षण का केन्द्र वैभव और धन-धान्य से समृद्ध भारत नहीं , ज्ञान -विज्ञान और रहस्यमयी क्षमताओं से भरा-पूरा भारत देश था। जो सामान्य दृष्टि वालों के लिए गुप्त था। उसके यहाँ आने का मकसद इसी गुप्त भारत को खोज निकालना था।

सागर तट पर टहलते- टहलते उसके मन में यही विचार स्पन्दित हो रहे थे। अचानक उसके पाँव किसी अज्ञात प्रेरणा से शहर की ओर मुड़ चले। रास्ते में अनजाने ही उसकी नजर एक ओर जा टिकी और वह सम्मोहित-सा खड़ा उस ओर देखने लगा। रास्ते के एक ओर भीड़ के बीच एक मदारी-सा आदमी खूब भड़कीली वेषभूषा में मजमा लगाए खड़ा है। अपने साफे और पायजामे के कारण वह मुसलमान लगता था। हिन्दुओं के तीर्थस्थानों में एक मुसलमान ? और उसका भी ऐसा रुतबा? यद्यपि हिन्दुओं की सहिष्णुता से काफी कुछ परिचित था, फिर भी इस परिदृश्य ने उसकी उत्सुकता जगा दी। बन्दर नचाने वाले इस साधारण से मदारी में उसे कुछ असाधारण लग रहा था।

उसे देखते ही मदारी ने अपने बन्दर से कुछ कहा, तो बन्दर भीड़ में से उछलता-कूदता उसके पास आया और एक अनोखी अदा से सलाम किया। सलाम करने के साथ ही बन्दर ने अपनी टोपी उतारी और कुछ इस ढंग से सामने बढ़ा दी जैसे भीख माँग रहा हो। आशय को भाँपते हुए उसने टोपी में कुछ पैसे डाल दिए। बन्दर उसे उठाकर अपने मालिक के पास चला गया। मदारी ने फिर बन्दर का अजीब-सा नाच दिखाया। जब नाच खत्म हो गया तो उसने अपने कम उम्र के शागिर्द से उर्दू में कुछ कहा ओर शागिर्द ने निकट आकर उससे प्रार्थना की कि वह उसके साथ पीछे के तम्बू में चले, क्योंकि उसका उस्ताद उससे कुछ खास बातें करना चाहता है।

खास बातें और एक अपरिचित विदेशी से, उसे कुछ अजीब-सा लगा। परन्तु तभी उसे अपना मकसद ध्यान में आया। आखिर वह यहाँ अजीब और रहस्यमय की ही खोज में तो आया है। इस विचार के दिमाग में गूँजते ही उसने शागिर्द की बात मान ली। वह चलने को तैयार हो गया। बढ़ते कदमों के साथ वह उस्ताद के साथ तम्बू में दाखिल हो गया। भीतर प्रवेश करने पर उसने देखा कि तम्बू में कोई छत नहीं थी। चारों ओर चार खम्भे गाड़ दिए गए थे और उनके चारों ओर एक मोटा परदा बाँध दिया गया था। उसके घेरे के बीचों-बीच एक सादी ओर हल्की-सी मेज रखी थी। मेज से थोड़ी दूर पर एक छोटा-सा मूढ़ा था। जिसकी ओर इशारा करते हुए उसने कहा-”तशरीफ रखिए मि0 ब्राण्टन।”

एक अजनबी-अपरिचित व्यक्ति के मुख से अपना नाम सुनकर उसे ताज्जुब हुआ। उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। इस-भाव मुद्रा को पढ़ते हुए वह मदारी नुमा व्यक्ति मुसकराया। उसकी यह मुसकान हल्की-सी स्मित रेखा लगते हुए अपने में अनगिनत रहस्यों को समेटे थी। मुँह से कुछ न बोलते हुए उसने एक कपड़े में लिपटे दो-दो अँगुल के कई खिलौने निकाले। उन खिलौनों के सिर रंग-बिरंगे मोम के बने थे और उनके पैर कुछ कड़े तिनकों के। पैरों के नीचे लोहे के चपटे टुकड़े ठुके हुए थे। उसने सभी खिलौनों को मेज पर खड़ा किया और स्वयं मेज से एक गज की दूरी पर खड़ा हो गया। वह खिलौनों को उर्दू में हुक्म देने लगा। एक या दो मिनट में सब खिलौने मेज पर उछलते-कूदते हुए नाचने लगे।

डस अनोखे व्यक्ति के हाथ में छोटी-सी एक छड़ी थी। उस छड़ी की गति के अनुसार वे खिलौने नाच रहे थे। कोई भी उनमें से भूलकर भी नीचे नहीं गिरा। दोपहर की खुली रोशनी में वह यह खेल देख रहा था। अब कुछ स्पष्ट था, मेज के नीचे भी कोई नहीं था, जिससे चालाकी की उम्मीद की जाती। फिर भी उसे लगा कि चालाकी के लिए शायद कोई और तरीका अपनाया गया हो। अतः वह मेज के बिल्कुल पास आया ओर गौर से निरीक्षण-परीक्षण करने लगा। अपने हाथ से मेज के ऊपर और नीचे भी टटोलकर देखा कि नहीं कोई चुम्बकीय पदार्थ तो नहीं है अथवा कहीं कोई पतला धागा या बाल तो नहीं बँधा है, लेकिन वहाँ ऐसा कहीं कुछ नहीं था।

अब उसका शक उस छड़ी पर गया जो तमाशा दिखाने वाले व्यक्ति ने अपने हाथों में पकड़ रखी थी। जिसका इशारा पाकर खिलौने नाचने लगते थे। लेकिन छड़ी को हर तरह से उलट-पुलट कर देखने पर भी उसमें कोई बात न लगी। फिर भी तमाशा दिखाने वाले व्यक्ति ने शक को बेबुनियाद करने के लिए छड़ी एक ओर रख दी, और अब उसने इशारे से समझाते हुए कहा कि वह मेज के किसी भी भाग की ओर अपनी अँगुली से इशारा करे और आश्चर्य, जब उसने वैसा किया तो सभी खिलौने ठीक उधर ही आ जाते, जिधर अँगुली से इशारा किया जाता। जिधर अँगुली दिखाई जाती, वे उधर ही आकर नाचने लगते।

फिर उस आश्चर्यजनक व्यक्ति ने अपनी जेब से एक रुपए का सिक्का


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