भारत का भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वल है।

March 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

स्वतंत्रता मिलने के समय से ही भारत को संत्रस्त करने और चिन्ता में डालने वाली समस्या वेष बदल-बदल कर सामने आती रही है। उनने क्षति भी कम नहीं पहुँचाई और वातावरण को विषाक्त बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इतने पर भी भगवान को धन्यवाद ही देना होगा कि किसी भी समय ऐसी स्थिति नहीं आई जो काबू से बाहर हो गई हो और जिसने जीवन भर का संकट खड़ा किया हो।

अभी भी वे उलझनें कम नहीं हैं और यह नहीं कहा जा सकता कि विग्रहों से निवृत्त होकर अपनी सूझबूझ और साधन-सम्पदा को प्रगति प्रयासों में पूर्णरूपेण लगाया जा सकेगा। यह परिस्थितियाँ अभी कुछ दिन और विपन्न रहेंगी। पर इतना निश्चित है कि उपद्रवों और गुत्थियों का रूप ऐसा विकराल न हो सकेगा जिनसे ऋषियों के गौरव इस राष्ट्र की क्षमता और प्रतिष्ठ पर आँच आये।

उलझनें आती और सुलझती रही हैं। यदि भीतरी और बाहरी विग्रहों की गणना करें तो वे बहुत हो जाती हैं और उस सब का भार इतना हो जाता है जिनसे लम्बी गुलामी से छूटी और अनुभवहीन जनता को असाधारण क्षति पहुँचती, पर ऐसा हुआ नहीं। घटाएँ आईं, गरजीं और तेज हवा के सामने पैर न टिका सकीं, अपने रास्ते चली गई।

यह भूतकाल की चर्चा हुई, वर्तमान भी कम विपन्न नहीं है। घर के साँप-बिच्छू और बाहर के बाघ, भेड़िये अपनी-अपनी घात लगाने में कमी नहीं छोड़ रहे हैं। पर महत्चेतना को यह विश्वास है कि ऐसा कोई अनिष्ट न होने पावेगा जिसे नवोदित देश की सहनशक्ति से बाहर कहा जाय और जिसकी क्षति पूर्ति न हो सके।

इन बचावों में राष्ट्रीय क्षमताओं ने समय-समय पर उपयोगी योगदान दिया है। इसके साथ ही ऐसी दैवी कृपा भी रही है जो नाव को भँवरों में से उबरते हुए किनारे तक ले आई। डूबने का कोई हादसा नहीं हुआ।

इन दिनों जो संकट एवं विग्रह सामने हैं, अलगाववाद एवं विखण्डन का खतरा ही सामने आ खड़ा हुआ है, उनके संबंध में मनीषियों का पूरा और पक्का विश्वास है कि यह सभी समस्याएँ हल हो जायेंगी। लड़ मरने के उतारू लोगों के मध्य रहकर भी राष्ट्र की एकता बीच बचाव करने और साथ ही अपनी सुरक्षा बनाये रहने में भी समर्थ रहेगी। भयंकरतायें दीखती भर रहेंगी, पर राष्ट्र का बाल बाँका न कर सकेंगी।

उस समय के आगमन में देर नहीं है जिसमें जनमानस में घट जमाए बैठीं भीतरी दुर्बलताएँ दूर हो जायेंगी। अधिकारी कर्तव्य पालन करने के लिए बाधित होंगे और लोकसेवियों की नई पीढ़ी इस प्रकार उभरेगी जो शोषक तत्वों से, उद्दंडताओं से, अपराधों से समाज को क्रमशः मुक्ति दिलाती चलेगी और सर्व साधारण का ध्यान और प्रयास उस दिशा में जुटेगा जिससे संव्याप्त पिछड़ेपन से, आलस्य, प्रमाद और अनाचार से छुटकारा पाया जा सके।

भारत का भविष्य उज्ज्वल है। उत्साह और उल्लासवर्धक समय आने में थोड़ी देर है, पर यह सुनिश्चित है कि भारत की गरिमा बढ़ेगी ही नहीं, स्थिर भी रहेगी। जबकि इन दिनों आसमान पर अन्धड़ की तरह छाये हुये लोग या देश धूलि चाटते दृष्टिगोचर होंगे। समय की प्रतिकूलता उनके दर्प को चूर-चूर कर देगी, पर भारत इन कटीली झाड़ियों के बीच भी गिरेगा नहीं, उठता ही रहेगा। भले ही उस उठाव की गति धीमी रहे।

भारत पर अभी उन ऋषि-तपस्वियों की छत्र छाया है जिनके प्रयास से निष्ठुर पराधीनता से पीछा छूटा। इन दिनों वे भीतर से उद्भूत और बाहर के प्रहार से बचाने में अपनी शक्ति लगाये हुए हैं। अनर्थ तक स्थिति न पहुँच पावे, इसके निमित्त संरक्षण दे रही है। इन उपलब्धियों को भी कम नहीं माना जाना चाहिए।

प्रगति पथ पर तेजी से अग्रसर होने और राष्ट्र के सुसम्पन्न और सुसंस्कृत होने का दौर कुछ ही दिनों में चल पड़ेगा। अभी जो कुछ हो रहा है, उसे भी उत्साह वर्धक नहीं तो संतोषजनक भी नहीं कहा जा सकता इतने पर भी भारत का अभ्युदय सुनिश्चित है। यह महाकाल का स्रष्टा का स्वनिर्धारित सत्य है। इस तथ्य की पुष्टि करते हुए महर्षि रमण, योगी अरविंद, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द जैसे महा तपस्वियों ने भी समय-समय पर अपने-अपने उद्गार व्यक्त किये हैं। यह एक सर्वविदित तथ्य भी है कि इन महान तपस्वियों की भारत को स्वतंत्र कराने और उसके पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

महायोगी अरविंद ने अपने दिव्य दर्शन के आधार पर कहा है कि भारत अपनी महान भूमिका में पुनः जाग्रत हो रहा है। प्रस्तुत समय उसके लिए पुराने युग की समाप्ति और नये युग का प्रारंभ सूचित करता है। इसका महत्व अपने लिए ही नहीं, वरन् एशिया एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए भी है, क्योंकि यह राष्ट्रों की बिरादरी में एक नवीन शक्ति के प्रवेश का द्योतक है जिसमें अवर्णनीय संभाव्य शक्तियाँ सन्निहित हैं। उसे मानव जाति के राजनीतिक, सामाजिक, साँस्कृतिक एवं आध्यात्मिक भविष्य के निर्धारण में एक महती भूमिका निभानी है।

भारत केवल अपने भौतिक हितों की सिद्धि के लिए, विस्तार, महानता, शक्ति और समृद्धि पाने के लिए नहीं उठ रहा, यद्यपि इनकी भी उसे उपेक्षा नहीं करनी होगी, और निश्चय ही वह दूसरों की तरह अन्य देशों पर आधिपत्य जमाने के लिए भी नहीं उठ रहा, वरन् वह उठ रहा है समूची मानव जाति के सहायक और नेता के रूप में परमेश्वर और जगत हितार्थाय जीने के लिए भारत अपनी महान भूमिका में पुनः प्रतिष्ठित होगा। एशिया पुनरुत्थान तथा स्वातंत्र्य उसका मुख्य लक्ष्य होगा। इसके साथ ही साथ सम्पूर्ण मानव समुदाय के लिए एक नये, अधिक महान, उज्ज्वल और श्रेष्ठ जीवन का उदय होगा जो अपनी सम्पूर्ण चरितार्थता के लिए बाहरी तौर पर राष्ट्रों की पृथक् सत्ता के अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण पर आधारित होगा। भारत उन्हें सुरक्षा और सुदृढ़ता प्रदान करेगा, साथ ही उन्हें एक दूसरे के सन्निकट लाकर एक सार्वभौमिक एकता प्रदान करेगा। वह अपने आध्यात्मिक ज्ञान का और जीवन को आध्यात्मिक बनाने के साधनों का सारे मनुष्य समुदाय को दान करेगा और इसी क्रम विकास में एक और नया कदम चेतना को उच्च स्तर पर उठा कर जीवन की उन अनेक समस्याओं का हल करना आरंभ कर देगा जिन्होंने मनुष्य जाति को तभी से हैरान और परेशान कर रखा है जब से उसने वैयक्तिक पूर्णता और पूर्ण समाज के विषय में सोचना और स्वप्न देखना शुरू किया था।

श्री अरविन्द के अनुसार मानव जाति का एकीकरण प्रगति के पथ पर है, चाहे वह अभी अधूरा आरंभिक स्तर पर ही क्यों न हो, वह संगठित किया जा चुका है और भारी कठिनाइयों के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है। परन्तु उसमें बल और वेग है और यदि इतिहास के अनुभव को मार्गदर्शक माना जा सके तो, वह अनिवार्य रूप से बढ़ता चला जायगा और अन्त में विजयी होगा। इस कार्य में भारतवर्ष की ऋषि सत्ताओं ने सक्रिय रूप से प्रमुख भाग लेना प्रारंभ कर दिया है। विश्व को उनका अजस्र आध्यात्मिक अनुदान मिलना प्रारंभ हो ही चुका है। भारत की आध्यात्मिकता यूरोप और अमेरिका में नित्य बढ़ती हुई मात्रा में प्रवेश कर रही है। यह आन्दोलन बढ़ेगा। प्रस्तुत काल की विपन्नताओं-विपदाओं के बीच अधिकाधिक लोगों की आंखें आशा के साथ भारत की और मुड़ रही हैं और न केवल उसकी शिक्षाओं का, वरन् उसकी अन्तरात्मिक और आध्यात्मिक साधना का भी अधिकाधिक आश्रय लिया जा रहा है।

उज्ज्वल भविष्य का निर्धारण परम इच्छाशक्ति का निर्धारण है और तदनुरूप ही उच्च स्तरीय आदर्शवादी विचारक्रान्ति का श्रीगणेश भी हो चुका है। इस महा अभियान ने भारत सहित समूचे पाश्चात्य जगत के दूरदर्शी विचारकों-मनीषियों को अपने वश में करना शुरू कर दिया है। इस मार्ग में यद्यपि अन्यान्य मार्गों की अपेक्षा जबर्दस्त कठिनाइयाँ हैं फिर भी समय रहते वे सभी निरस्त होंगी। अगले दिनों जो भी विकासक्रम घटित होने जा रहा है वह आत्मा और अंतर्चेतना की अभिवृद्धि द्वारा ही होगा। उसका शुभारंभ भारतवर्ष करेगा और वही आन्दोलन का केन्द्र होगा, तथापि इसका कार्यक्षेत्र विश्वव्यापी होगा। भारत का भविष्य उज्ज्वल है इस सुनिश्चितता पर सबको विश्वास करना चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118