पतझरों से बोलो, कोई क्या माँगेगा।
बनो वसंती ऋतु, जग को जीवन दे जाओ॥
देने में ही सार सत्व है, इस जीवन का।
कोई पाये, यह सर्वोत्तम सुख है मन का॥
ले लो यह सुख, धन, सागर,मधुबन बन जाओ॥
देने वाले को, संसार पूजता आया।
देने वाले का यश, इस धरती ने गाया॥
दो प्रकाश सा ज्ञान, चाँद सूरज कहलाओ॥
शब्द पुष्प सम हों, सुगन्ध वाणी से फूटे।
सबको बाँटो स्नेह, न कोई पीछे छूटे॥
कथा महामानवों, सन्त, शहीदों की दुहराओ॥
धरती प्यासी हुई आज, मीठे वचनों की।
जाने कहाँ खो गयी है, भाषा नयनों की॥
प्रिय, न करो अब देर, निकलकर घर से आओ।
बनो वसंती ऋतु, जग को जीवन दे जाओ॥
-माया वर्मा
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