मन की परतों में छिपी विलक्षणताएँ

March 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अवचेतन तन मन को यदि मनुष्य तनिक साध-सुधार, और परिष्कृत विकसित कर ले, तो वह न सिर्फ अपना, वरन् अन्य अनेकों का कल्याण उससे कर सकता है।

घटना सन् 1914 की जनवरी माह की है। एक व्यक्ति अपने सीने से चिपकाये एक किशोर को लिये बेतहाशा दौड़ा चला जा रहा था और किशोर बुरी- तरह चीखता चिल्लाता जा रहा था। अलबामा नदी तट पर स्थित सेल्मा शहर के मिनोटा मुहल्ले की खिड़कियाँ और उनके दरवाजे खड़खड़ा कर खुलने लगे, यह देखने के लिए कि आखिर बात क्या है। उस मुहल्ले में रहने वाले डॉ. यूजिन भी जिज्ञासावश निकल पड़े, तो पता चला कि एक व्यक्ति अपनी गोद में एक बालक को लेकर दौड़ रहा है जो कि जल गया है। पीछे-पीछे वे भी अस्पताल पहुँच गये। वहाँ पहले से ही भीड़ इकट्ठा थी। उन्होंने बालक को देखा तो पता चला कि उसका चेहरा बुरी तरह झुलस गया है। यह सब कैसे हुआ? उसके जवाब में पिता ने संभावना व्यक्त की कि “फोटो फ्लैश का पाउडर फर्श पर बिखरा पड़ा था। अनुमान लगाया जाता है कि मेरी अनुपस्थिति में किशोर ने उसे इकट्ठा किया और माचिस जलायी होगी। इससे ज्वलनशील पाउडर में आग लगने और विस्फोट होने से इसका चेहरा जल गया।”

बालक को अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में लाया गया और उपचार आरंभ कर दिया गया। जब पिता पुत्र को लेकर अस्पताल के कमरे में पहुँचे, तो बाहर खड़ी भीड़ में से किसी ने उन्हें पहचानते हुए कहा कि ये सम्मोहन विद्या के विशेषज्ञ विलक्षण क्षमता सम्पन्न विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति एडगर केसी हैं और बालक उनका पुत्र हगलीन।

चिकित्सालय में अवलोकन कर विशेषज्ञ डाक्टरों के दल ने अनुमान लगाया कि बालक को तो निस्संदेह बचाया जा सकता है, पर उसकी आँखों को बचा पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव भी है। चिकित्सा चलती रही। एक सप्ताह बाद एक आँख में तेज दर्द आरंभ हुआ। डाक्टरों ने विचार विमर्श कर एडगर केसी से कहा कि बच्चे की एक आँख निकालनी पड़ेगी, अन्यथा स्थिति काबू से बाहर हो सकती है। किसी प्रकार यह बात बालक को ज्ञात हो गई, तो उसने चिकित्सकों का विरोध करते हुए कहा “नहीं आप ऐसा नहीं कर सकते। हमारे पिता स्वयं आध्यात्मिक चिकित्सक हैं। उन्होंने कइयों का सफल उपचार किया और गंभीर रोगों से उन्हें मुक्ति दिलायी है।”

आप कृपया इस संदर्भ में उन्हें अपनी चिकित्सा करने की अनुमति प्रदान करें। “चिकित्सकों ने किशोर की प्रार्थना स्वीकार कर ली और एडगर केसी से अपना उपचार आरंभ करने को कहा। एडगर केसी बैंच में बैठे और थोड़ी ही देर में स्वसम्मोहन द्वारा गहन तन्द्रा की स्थिति में चले गये। पत्नी को इसके बाद क्या करना है, इसे उसने पहले ही समझा दिया था।

पत्नी ने एडगर की बतायी प्रक्रिया आरंभ की। उसने पति के सम्मोहन अवस्था में प्रश्न करने प्रारंभ किये। इसी क्रम में एडगर ने बताया कि हगलीन की नेत्र ज्योति समाप्त नहीं हुई है। क्षति तो थोड़ी पहुँची है, पर उपचार द्वारा उसे पूर्व स्थिति में लाया जा सकता है। उनने आगे कहा कि डॉक्टर जो दवा चला रहे हैं, वह ठीक है, पर उसमें तनिक टेनिक एसिड भी स्वल्प मात्रा में मिलाना आवश्यक है। ऐसा ही किया गया। यद्यपि चिकित्सकों को विश्वास नहीं था कि नेत्र-दृष्टि लौट सकेगा, किन्तु सोलह दिनों के उपरान्त जब आँखों से पट्टी हटायी गयी, तो बालक उत्फुल्लता से चीख पड़ा “मैं देख सकता हूँ “और यह कह कर डाक्टरों को अचम्भे में डाल दिया।

एक सामान्य सा व्यक्ति नेत्र-विशेषज्ञ की वैज्ञानिक जानकारी से भी अधिक गहराई में कैसे प्रवेश कर सका? यह प्रश्न इस घटना के बाद से अनेकों के मन में उभरा, जिसका समाधान स्वयं एडगर केसी ने यह कहते हुए किया कि जिन्हें अवचेतन मन की विलक्षण क्षमता का थोड़ा भी ज्ञान है, उनके लिए यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। यदि मन को परिष्कृत कर उसकी उस सामर्थ्य को जाग्रत किया जा सके, तो ऐसा करतब हर कोई कर दिखा सकता है। यह माना हुआ तथ्य है और एक सत्य भी।

मधु-संचय


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118