विस्तार-रहस्य को भली प्रकार समझा (Kahani)

March 1991

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सर मेगनियर विलियम अँग्रेजी के एक प्रसिद्ध लेखक हैं। उन्होंने ‘बुद्धिज्म’ नामक पुस्तक में लिखा है।

ईसाई धर्म ईसा के बिना कुछ नहीं। मुस्लिम धर्म हजरत मुहम्मद के बिना कुछ नहीं। बुद्ध धर्म महात्मा बुद्ध के बिना कुछ नहीं। ये ही पुरुष इन धर्मों के ध्येय अथवा प्राण पुरुष है। परन्तु मुझे यह सत्य बात कहने में कोई संकोच नहीं यद्यपि मैं ईसाई हूँ, कि हिन्दुओं का ध्येय मंत्र गायत्री ऐसा है जो बिना किसी ऋषि-मुनि या महान पुरुष के बिना ही जीवित रह सकता है। हिन्दू धर्म का आधार किसी विशेष पुरुष पर नहीं है। इस मंत्र के द्वारा हर एक मनुष्य सीधा परमेश्वर से ज्ञान प्राप्त कर सकता है।”

अन्यान्य धर्मों में अपने-अपने सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक-एक ही प्रमुख मंत्र है। भारतीय धर्म का भी एक ही उद्गम स्त्रोत है-गायत्री। उसी के विस्तार रूप में पेड़ के तने, टहनी, पत्ते, फल-फूल आदि के रूप में वेद, शास्त्र, पुराण, उपनिषद्, स्मृति, दर्शन, सूक्त आदि का विस्तार हुआ है। एक से अनेक और अनेक से एक होने की उक्ति गायत्री के ज्ञान और विज्ञान से सम्बन्धित अनेकानेक दिशाधाराओं से सम्बन्धित साधनाओं की विवेचना करके विभिन्न पक्षों को देखते हुए विस्तार-रहस्य को भली प्रकार समझा जा सकता है।


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