भौतिक प्रगति के लिए बलिष्ठ शरीर, प्रशिक्षित मस्तिष्क, आकर्षक व्यक्तित्व, अभीष्ट उपार्जन, आवश्यक वातावरण एवं अनुकूल अवसर की अपेक्षा रहती है। यह साधन जिस किसी को भी जितनी परिमाण में मिल जाते हैं, वह उतनी ही लौकिक सफलता प्राप्त कर लेता है।
आत्मिक प्रगति का मूल्य-महत्व, सुख, प्रतिफल, भौतिक प्रगति की अपेक्षा सहस्रों गुना अधिक है। इतने पर भी उसके लिए दो ही साधन पर्याप्त हैं। एक भावनापूर्ण उपासना, दूसरा जीवन को उत्कृष्ट-अनुकरणीय बनाने की साधना। आत्म शोधन कर इन दोनों के लिए यदि स्थिर मति और प्रगाढ़ निष्ठ के साथ प्रयास किया जाय तो निःसन्देह आत्मिक प्रगति भी उसी तरह मिल सकती है, जैसी कि भौतिक प्रगति।
जीवन की महत्ता और सफलता उसकी आत्मिक प्रगति पर निर्भर है, यह विश्वास मन में रखना चाहिए व नित्य सुदृढ़ बनाना चाहिए। भौतिक सफलताएं तो उतनी ही देर आनन्द देती हैं, जब तक कि उनकी प्राप्ति नहीं हो जाती। मिलते ही आनन्द समाप्त हो जाता है व और अधिक के लिए व्याकुलता, बेचैनी आरंभ हो जाती है। जो मानव जीवन का श्रेष्ठतम सदुपयोग कर उस आनन्द की प्राप्ति के इच्छुक हैं, जिसके लिए यह जन्म मिला है, उन्हें आत्मिक प्रगति के लिए तत्पर होना चाहिए और उसके दोनों आधारों उपासना और साधना का अवलम्बन लेना चाहिए।