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March 1991

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इस तरफ है शिखर, उस तरफ खाइयाँ,

सोचना है कि, किसका करें हम चयन?

आज हम उस, तिराहे खड़े हैं जहाँ,

सिर्फ दो मार्ग हैं, आमने-सामने,

एक अध्यात्म-उत्कर्ष का मार्ग है,

दूसरे में खड़ा, नाश कर थामने,

सोच लें, जागकर हम, सृजनरत रहें,

या कि विध्वंस की, गोद में हो शयन?

मुट्ठियां बन्द है, किन्तु है एक में,

स्वर्ग की शक्तियाँ, दूसरी में नरक,

इस कदर रुग्ण मन, हो गया है कि हम

हित-अहित में न कर पा रहे है फर्क,

अब समय है कि हम, स्वार्थ की पट्टियां,

फेंक दे और खोले, मुँदे जो नयन।

हैं दिशाएँ बहुत भ्रम भरी, इसलिए,

सावधानी यहाँ है, जरूरी बहुत,

एक जैसे पतन और उत्थान के,

रास्ते हैं, न है शेष दूरी बहुत,

यह महाक्रांति का है समय, इसलिए,

अब करें पूर्ण दायित्व का हम वहन।

-शचीन्द्र भटनागर


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