अपनी प्रतिभा को कैसे जगायें?

March 1991

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मनुष्य में जो असीम एवं अपरिमित शक्तियाँ भरी पड़ी हैं उनके अस्तित्व में विश्वास करने और तद्नुरूप उन्हें हस्तगत कर लेने की योग्यता-क्षमता को प्रतिभा के नाम से जाना जाता है। यह न तो जन्मजात उपलब्धि है और न किसी का दिया हुआ वरदान-आशीर्वाद। भाग्यवश मिला हुआ आकस्मिक संयोग-सुयोग भी नहीं कहा जा सकता। वह स्व उपार्जित ऐसी विलक्षण सम्पदा है, जिसके सहारे जीवन की प्रतिकूल दीखने वाली परिस्थितियों को अनुकूल बनाया जा सकता है।

जिन व्यक्तियों ने अपनी प्रसुप्त प्रतिभा को उपयोगी दिशा में लगाया है, उसके सत्परिणाम उन्हें हाथों हाथ मिलते देखे गये हैं। परिस्थितियाँ कितनी विपन्न और विषम क्यों न बनी रही हों, पर धुन के धनी लोगों ने जीवन की महत्वपूर्ण सफलताएँ अर्जित कर दिखाई हैं।

फ्राँस में जन्मी मैडम क्यूरी अपने युवा काल में एक धनी परिवार के बच्चों की देख भाल करने में ही लगी रहती थी। उसने धैर्य का परिचय देते हुए पेरिस विश्व विद्यालय में पहुँच कर विज्ञान की कक्षा में प्रवेश पा लिया। आर्थिक अभावग्रस्तता के कारण क्यूरी को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा, यह सर्वविदित है, पर उसने निराशा को पास में नहीं फटकने दिया और अपने मनोयोग और तत्परता का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए रेडियम के आविष्कार से विज्ञान जगत का नक्शा ही बदल डाला।

अमेरिका के ख्यातिलब्ध मनोविज्ञानवेत्ता पादरी नार्मन विन्सेंट पील ने एल्युमिनियम के बर्तन बेचने से अपना कार्य आरंभ किया। उनके अंतर्मन में इतना विश्वास था कि एक कुशल ‘सेल्समैन’ की प्रतिभा के बीज उनमें विद्यमान हैं, पर परिस्थिति और वातावरण की प्रतिकूलतावश वह उभर कर बाहर नहीं आ पा रहे है। प्रारंभ में तो उनको लोगों की उपेक्षा, उपहास का शिकार बनना पड़ा फिर भी अपनी लगन निष्ठ के बल पर वे लक्ष्य को प्राप्त करके ही रहे।

श्री नारमन पील ने जो अन्ततः पादरी बने, जीवन काल में कई ऐसी पुस्तकें लिखी हैं जिनको पढ़कर जीवन विरोधी परिस्थितियों से जूझने और सफलता अर्जित कर सकने की प्रेरणा मिलती है। “एन्थुजीआज्म मेक्स द डिफरेंस” नामक पुस्तक में उनने ग्यारह शब्दों का एक फार्मूला सुझाया है ‘एव्री प्रोबलेम कन्टेन्स विदिन इटसेल्फ द सीड्स ऑफ इट्स ओन सौलूशन’ अर्थात् प्रत्येक समस्या स्वयं में समाधान के बीज रखती है। उन्हें अंकुरित और विकसित करने की जिम्मेदारी मनुष्य की होती है कि वह अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु संकल्पबद्ध प्रयास करे।

जीवन को प्रगतिशील दिशा देने वाली प्रतिभा को सुविकसित करने हेतु स्वतः स्वर्णिम सूत्र भी उनने सुझाये हैं, जो इस प्रकार हैं-

(1) मस्तिष्क से असफल होने के विचारों को निकाल फेंके और अपनी अन्तर्निहित क्षमताओं को समझें।

(2) स्व-सहानुभूति को पृथक करके अपने दोष दुर्गुणों अथवा दुर्बलताओं को निरीक्षण-परिक्षण करें।

(3) अपने ही स्वार्थ के विषय में सोच-विचार बन्द करें, दूसरों की सेवा-सहायता को भी सोचें और कार्य रूप में परिणत करें।

(4) ईश्वर-प्रदत्त इच्छा शक्ति का सही समुचित प्रयोग करें। उसकी दिशा धारा को व्यर्थ-निरर्थक न बहने दें।

(5) जीवन लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही जीवनचर्या का निर्धारण करें।

(6) मानसिक ऊर्जा को नियंत्रित करके उपयोगी दिशा में नियोजित करें। चिन्तन की दिशा को सदैव सृजनात्मक बनाए रखें।

(7) जीवन के प्रत्येक दिन सुबह और शाम उस परब्रह्म की समर्थसत्ता के साथ संपर्क-

(8) सान्निध्य बिठाने का अभ्यास किया जाय, जो असंभव दिखने वाले कार्य को भी संभव बना सकने की शक्ति प्रदान करती है।

(9) ये वे महत्वपूर्ण सूत्र हैं जिनका अवलम्बन लेकर हर कोई अपनी प्रतिभा को कुण्ठित होने से बचा कर स्वयं को प्रगति के परम शिखर तक पहुँचा सकता है। प्रतिभा ही तो सफलता का बीज है।


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