समस्याएँ मिटेंगीं, इस तरह नवयुग में

March 1991

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इंग्लैण्ड स्थित “मैकडोनल्ड डगलस“ वेधशाला के निदेशक थियोडोर जे. गोर्डन एक भविष्यवक्ता भी है। उनकी अब तक की अस्सी प्रतिशत भविष्यवाणियाँ सत्य सिद्ध हो चुकी हैं। “उन्होंने भविष्य के बारे में भी अपने सहयोगी ओलाफ हेल्मर के साथ अनुमान लगाते हुए कहा है कि आने वाला समय मानवी इतिहास में ऐसा होगा, जिसे अभूतपूर्व कहा जा सके, ऐसा जिसका अब तक मात्र अनुमान ही लगाया जाता रहा है।

श्री गार्डन ने 1968 से 7 के बीच ऐसी गैसों का प्रयोग होने का संकेत दिया था, जिससे मनुष्यों को परेशानी तो होगी, किन्तु लोग मरेंगे नहीं। जो सत्य सिद्ध हुआ और आंसू गैस आदि का प्रयोग युद्ध में होने लगा। 1969-1970 के मध्य ही उन्होंने मनुष्य द्वारा चन्द्रमा पर विजय की भविष्यवाणी की थी, जो पूर्णतः सत्य सिद्ध हुई। 1970 से 1983 के मध्य पारिवारिक संख्या नियंत्रण के लिए नई विधा विकसित होने का उल्लेख उनने किया था, जो समय आने पर परिवार नियोजन की एक नूतन विधा के रूप में सामने आया।

उन्होंने सन् 2000 के सम्बन्ध में लिखा है कि विश्व की जनसंख्या छह अरब होने पर सबसे बड़ी समस्या संकट के रूप में सामने आयेगी, किन्तु सामूहिक श्रम एवं विशेष क्षमता वाली कृषि व्यवस्था अपनाने पर इसका सहज समाधान निकल आवेगा। तब समूचा विश्व एक हो जावेगा और अधिक उत्पादन के लिए सामूहिक प्रयास चलेंगे। जिन राष्ट्रों के पास जमीन है,किन्तु उत्पादन करने की क्षमता एवं साधन उनके पास नहीं हैं, उनका उपयोग सम्मिलित रूप में किया जायगा और खाद्य पदार्थों का उत्पादन इतने बड़े पैमाने पर होगा, जिससे अन्न संकट दूर हो जायेगा।

विदेशों में प्रयुक्त हो रहे माँस का स्थान सोयाबीन एवं दूसरे प्रकार के वानस्पतिक पदार्थ लेंगे। इनके द्वारा ही समूचे विश्व में भोजन की समस्या का समाधान होगा और माँस उत्पादन का क्रम बंद हो जायेगा। पशु पालन माँस उत्पादन का स्थान लेगा और समुन्नत कृषि में पशुओं के उपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा।

कृषि क्षेत्र में वास्तविक क्राँति तब होगी,जब ऐसे हानिरहित बैक्टीरिया की खोज कर ली जायेगी, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाने से उसकी उर्वरता बढ़े और अन्न-उत्पादन में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हो। तब विशेष रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किये बिना ही अधिकतम उत्पादन का क्रम चल पड़ेगा और अन्न संकट का सहज समाधान हो जायेगा।

तब प्रदूषण समस्या का भी हल उपलब्ध हो जायेगा, क्योंकि विज्ञान की शक्ति सृजनात्मक कार्यों एवं प्रदूषण-समाधान के उपाय खोजने में लगेगी, फलस्वरूप ऐसे नये-नये तरीके सामने आयेंगे, जिनसे न सिर्फ प्रदूषण को टाला जा सकेगा, वरन् उसके अतिरिक्त लाभ भी मनुष्य और समाज को मिलेंगे।

दृष्ट विद्वानों का मत है कि अगली शताब्दी की प्रथम दशाब्दी तक ऐसी आध्यात्मिक विधा हाथ लग चुकी होगी, जिससे लोग मनचाहे गुणों वाली संतान पैदा कर सकेंगे। तब अभिमन्यु जैसे पराक्रमी और अष्टवक्र जैसी उद्भट विद्वान संतान गर्भ में ही विकसित हो जाना कोई असंभव या अचम्भा नहीं रह जायेगा।

उस काल की सबसे बड़ी विशेषता यह होगी, लोग सूर्य ऊर्जा को सीधे सूक्ष्म आहार के रूप में लेने की विधा सीख जायेंगे। जिस प्रकार वृक्ष-वनस्पति सूर्य किरणों द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार तब अधिकाँश मनुष्य सूर्य किरणों द्वारा अपनी आहार संबंधी समस्या का हल ढूँढ़ लेंगे। किन्तु यह एक अति उच्च आध्यात्मिक प्रयोग होगा, जिसे आत्मबल संपन्न व्यक्ति सम्पन्न कर सकेंगे। अरविंद के “नास्टिक बीइंग“ इकबाल के “नायबे इलाही“ की ही तरह हरमन कान्ह ने ऐसे अध्यात्मजीवी लोगों का नाम “सुपरनेचुरल बीइंग“ रखा है। तब का मनुष्य और समाज सचमुच ऐसा बन सके, जिसे देख कर स्वर्ग की कल्पना साकार हो उठे, अभी से ही उसकी तैयारी की जानी चाहिए।


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