रोटी का इन्तजाम (kahani)

November 1985

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प्रख्यात विभूति हातिम परदेश जाने लगे तो अपनी पत्नी से पूछ बैठे− ‘‘तुम्हारे लिए खाने−पीन का कितना सामान रख जाऊँ?”

“जितनी मेरी आयु हो”−कहकर स्त्री हँस पड़ी।

“तुम्हारी आयु जानना मेरे बूते की बात नहीं।”

“तब तो मेरी रोटी का इन्तजाम भी आपके बूते से बाहर है। यह काम जिसका है उसी को करने दीजिये।” पत्नी की आस्था पर मुग्ध होकर हातिम परदेश चले गये। तब एक पड़ौसन ने पूछा− तो उसे भी हातिम की पत्नी ने जवाब दिया− ‘‘बहिन हम सद्गृहस्थ हैं। इसमें रहते हुए साधना का लाभ लेना है तो हर समय उच्च आदर्शों को ध्यान में रखकर जीवन चलाना होता है। मेरे पतिदेव ईश्वर आस्था और पुरुषार्थ के बल पर अनजान स्थानों पर लोकहित के लिए चले जाते हैं और सफल होते हैं। हम अपनी ईश्वर निष्ठा और पुरुषार्थ की परीक्षा और पुष्टि का प्रयास ऐसे ही अवसरों पर तो कर सकती हैं।’’


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