मरने के बाद भी आत्माएँ धरती वासियों से सम्बन्ध रखे रहती हैं।

November 1985

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वियेना के प्रख्यात चित्रकार जोसेफ आयनगार−के पीछे−पीछे मौत का साया फिरता था। जाने−अनजाने उसे कई बार मौत ने घेरा, पर उसका अदृश्य एवं अपरिचित सहायक उसे हर बार बचाता रहा। सन् 1880 में बुडापेस्ट में उसने फाँसी लगा कर आत्म हत्या की। बचाने के लिए वही अदृश्य सहायक पहुँचा और रस्से से नीचे उतार लिया। सन् 1848 में क्रान्तिकारी के रूप में शासन ने उसे मृत्यु दण्ड दिया। तब भी उस अपरिचित यूनियन भिक्षु ने राजा से मिलकर प्राणदण्ड रद्द कराया। अन्ततः उसने 68 वर्ष की आयु में अपने सीने में आप गोली मार कर आत्महत्या कर ली। अन्तिम संस्कार कराने के लिए भी वही भिक्षु उपस्थित रहा।

सन् 1563 की बात है। फ्राँसीसी ड्यूक डिगाइज की हत्या के अपराध में जानपाल ट्रीट नामक एक व्यक्ति को मृत्यु दण्ड दिया गया। मारने का तरीका यह निश्चित किया गया कि उसके दोनों हाथ दोनों पैर चार अलग−अलग मजबूत घोड़े से बाँध दिये जाँय। घोड़े एक साथ दौड़ाये जाँय ताकि अपराधी के चार टुकड़े हो जाँय। नियत व्यवस्था के अनुसार सेना के बलिष्ठ घोड़ों को घुड़सवारों द्वारा दौड़ाया गया पर आश्चर्य यह है कि घोड़े आगे बढ़ न सके। कैदी इतना मजबूत था कि उसका कोई अवयव न तो उखड़ता था न ढीला पड़ता था। घोड़े तीन बार बदले गये। बारहों घोड़े जब असफल रहे तो उसे रिहा कर दिया गया। उसका कहना था कि इस कार्य में उसके पूर्वजों ने अदृश्य रूप से सहयोग दिया।

मैसूर के राजा ने नई तोप के उद्घाटन के अवसर पर उस क्षेत्र के एक प्रख्यात साधु से आशीर्वाद माँगा। इनका किये जाने पर राजा बहुत क्रुद्ध हुआ और साधु को उसी तोप की नली से बाँधकर उड़ा देने का हुक्म दिया। वैसा ही किया भी गया। पर साधु मरा नहीं। पहली बार जब उसे बारूद भरी नली ने उड़ाया तो 800 फुट ऊँचाई पर उछल कर बहुत दूर खड़े हाथी की अम्बारी पर जा गिरा। पकड़कर लाया गया और दुबारा फिर उसे उसी प्रकार तोप से कसा और उड़ाया गया। इस बार वह एक दूरस्थ झोंपड़ी के छप्पर पर जा गिरा। और साफ बच गया। तीसरी बार उसे फिर नहीं बाँधा गया।

सन् 1919 में लिवरपूल में जेम्स नामक एक व्यक्ति के साथ जो बहुत पहले कभी फौज में रह चुका था एक घटना घटित हुई। लड़ाई के दौरान तोपों की भयंकर गर्जना के कारण उसके कान के पर्दे फट गये और वह बहरा हो गया था। पेंशन पर आ जाने के बाद एक रात उसने स्वप्न में देखा कि वह लिवरपुल के पवित्र सेंट विनिफ्रेड कुएँ के पास खड़ा होकर उसमें से जल निकाल कर स्नान कर रहा है जैसे ही पानी शरीर पर पड़ा कि शीत की−सी कंपकंपी लगी और इसी क्षण उसकी नींद टूट गई। वह हड़बड़ाकर उठ बैठा। पास में सो रहे उसके घर वालों ने पूछा−कौन! यह शब्द सुनते ही उसके जीवन में नया प्रकाश आ गया उसने आश्चर्यपूर्वक बताया− मैं हूँ जेम्स पर यह क्या हुआ, कैसे हुआ− जिस बहरेपन को डाक्टर नहीं ठीक कर पाये वह एक स्वप्न ने ठीक कर दिया।

काल के अनन्त प्रवाह में बह रही जीवन धारा का प्रेत योनि एक नया मोड़ मात्र है। हमारे सीमित बोध जगत के लिए भले ही वह जीवन धारा खो गई प्रतीत होती हो, पर वह सर्वदा अविच्छिन्न रहती है और हमार संस्कार क्षेत्र मरणोत्तर जीवन में भी सक्रिय रहता है, अन्तःकरण चतुष्टय मृत्यु के उपरान्त भी यथावत बना रहता है। अशान्त, विक्षुब्ध मनःस्थिति भी अपना स्वभाव उस रूप में ही बनाये रखती है। दुष्ट और दुरात्म जीवन क्रम की यह स्वाभाविक परिणति जीवात्मा को जिस अशांत दशा में रहने को बाध्य करती है उसका ही नाम प्रेत दशा है। अपनी दुर्दशा से सामान्यतः प्रेतों को दुःख ही होता है, पर अत्यन्त कलुषित अनाचारी व्यक्तियों की हिंस्र मनोवृत्तियाँ प्रेत जीवन पाकर भी अपनी क्रूर आकाँक्षाओं की पूर्ति करना चाहती हैं और लोगों को अनायास सताती रहती हैं पर अपना आतंक वे उन्हीं पर जमा पाती हैं, जिनका आत्मबल अविकसित हो। इसके विपरीत पितर शान्त सहयोग सतत देते रहते हैं।

डा. सी. डी. ब्रोड समेत अनेक वैज्ञानिक−मनोवैज्ञानिकों ने ‘मीडियम’ (प्रेत प्रभावित व्यक्ति) के बारे में एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि मस्तिष्क की संरचना जटिल है। वह शरीर के सम्मिलित संयोग का उत्पादन है, जिसमें एक अभौतिक तत्व भी सम्मिलित है, जिसे वे ‘साइकिक फैक्टर” कहते हैं। जब व्यक्ति मरता है, तो उसका शरीर रूपी यह संयोग बिखर कर नष्ट हो जाता है। इस प्रकार उस शरीर में अवस्थित मस्तिष्क का भी अस्तित्व समाप्त हो जाता है। किन्तु “साइकिक फैक्टर” कोई भौतिक द्रव्य (मैटर) नहीं है, अतः वह विनष्ट नहीं हो सकता। यह अवशिष्ट “साइकिक फैक्टर” इधर−उधर भ्रमण करता रहता है। फिर ऐसे व्यक्ति के मस्तिष्क को पाते ही वह प्रविष्ट हो जाता है जो इन परिव्राजक साइकिक फैक्टर्स के प्रति ग्रहणशील हो। ऐसे ही व्यक्ति “मीडियम” प्रेत वाहन बना करते हैं। “साइकिक फैक्टर” कोई व्यक्ति तो होते नहीं, वे पूरे मस्तिष्क के भी प्रतिनिधि नहीं होते। अपितु मस्तिष्क के पदार्थ से परे एक अंश विशेष होते हैं। अतः ‘साइकिक फैक्टर’ एक पूर्ण मस्तिष्क की तरह काम नहीं कर सकते।

इस संदर्भ में एक नया पक्ष और भी है। वह यह है कि जीव सत्ता अपनी संकल्प शक्ति का एक स्वतन्त्र घेरा बनाकर खड़ा कर देती है और जीवन को अन्य जन्म मिलने पर भी वह संकल्प सत्ता उसका कुछ प्राणांश लेकर अपनी एक स्वतन्त्र इकाई बना लेती है। और इस प्रकार बनी रहती है मानो कोई दीर्घजीवी प्रेत ही बनकर खड़ा हो गया हो। अति प्रचण्ड संकल्प वाली ऐसी कितनी ही आत्माओं का परिचय समय−समय पर मिलता रहता है। लोग इन्हें ‘पितर’ नाम से देवस्तर की संज्ञा देकर पूजते पाये जाते हैं।

पदार्थ का प्रेत ‘प्रति पदार्थ’ विश्व का प्रेत ‘प्रति विश्व’ छाया पुरुष की तरह साथ−साथ विद्यमान रहता है। उसकी चर्चा विज्ञान जगत में इन दिनों प्रमुख चिन्तन का विषय बनी हुई है। मनुष्य का प्रेत होता है, यह भी जाना और माना जाता रहा है। अब यह नया तथ्य सामने आया है कि महत्वपूर्ण घटनाओं के−महत्वपूर्ण पदार्थों के और प्रचण्ड संकल्प सत्ताओं के भी प्रेत हो सकते हैं। स्थूल के नष्ट हो जाने पर भी सूक्ष्म का अस्तित्व बना रहता है।

सर ओलीवर लाज ब्रिटेन के माने हुए वैज्ञानिक रहे थे, उन्हें कई विश्व विद्यालयों की मूर्धन्य डिग्रियाँ और स्वर्ण पदक प्राप्त थे। वे ब्रिटिश एसोसियेशन के प्रधान थे। उनका पुत्र रेमण्ड प्रथम विश्व युद्ध में मारा गया था। मृतात्मा के साथ संपर्क बनाने और उसके माध्यम से अनेकों ऐसी अविज्ञात जानकारियाँ प्राप्त करने में सफल हुए जो परखने पर पूर्णतया सत्य सिद्ध हुईं। उनके एक समकालीन वैज्ञानिक सर विलियम कुकस ने अपने प्रेतात्माओं सम्बन्धी निष्कर्षों का विवरण ‘रिसर्च इनन्टेफेनोमिनम आफ स्प्रिचुअलिज्म’ में प्रकाशित कराया है। उसमें सर ओलिवर लाज के शोध कार्यों का भी उल्लेख हुआ है।

महाकवि विलियम ब्लैक के बारे में कहा जाता है कि वे माइकेल एजिलो−मोजेज−क्लीओ पेट्रा की स्वर्गीय आत्माओं के साथ रात्रि के एकान्त में वार्तालाप करते थे। वे आत्माएँ आकर उनके साथ महत्वपूर्ण विषयों पर वार्त्तालाप करती थीं।

घटना 1956 की है, भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर सपरिवार जार्जिया के एक पुराने मकान में रहने लगे थे। वह मकान पुराने ढंग का था और चारों ओर लम्बे वृक्ष लगे हुए थे। कहा जाता है कि उस मकान का निर्माण सौ वर्ष पहले 1860 में हुआ था। जिमी कार्टर सन् 1956 से 1960 तक इस मकान में रहे। एक रात्रि उन्होंने मकान के एक कमरे में किसी की चीख सुनी। कौन चीखा था? यह जानने के लिए कार्टर और उनकी पत्नी ने घर का कोना−कोना छान मारा परन्तु कहीं कुछ नहीं मिला। कुछ दिनों बाद उस मकान में और भी किरायेदार आये। एक दिन एक किरायेदार के कमरे से मध्य रात्रि में उसका बिस्तर ही गायब हो गया। वह तो सोया का सोया ही रहा किन्तु उसके नीचे का बिस्तर इस तरह गायब हो गया जैसे उसने बिस्तर बिछाया ही न हो। यह देखकर सब आश्चर्य चकित रह गये। यदि कोई चोर आया भी था तो वह बिस्तर कैसे ले गया? और बिस्तर ही क्यों ले गया? जबकि अन्य कीमती सामान छुए तक नहीं गये थे। यह गुत्थी किसी तरह नहीं सुलझ सकी।

महाकवि विलियम ब्लैक के बारे में कहा जाता है कि वे माइकेल एंजिलो−मोजेल क्लीओ पेट्रा की स्वर्गीय आत्माओं के साथ रात्रि के एकान्त में वार्त्तालाप करते थे। वे आत्माएँ आकर उनके साथ महत्वपूर्ण विषयों पर वार्त्तालाप करती थीं।

कोई बीस वर्ष पूर्व इंग्लैण्ड के पोर्टस् साउथ रोड इशर कस्बे के पास से जो भी मोटर गुजरती उसमें बन्दूक की गोली इस तरह लगती कि शीशे, छत या दरवाजे पर एक इंच का छिद्र साफ, गोल और व्यवस्थित होता मानो किसी मशीन से किया गया हो। ऐसी घटना लगातार होती रहीं। क्षेत्र में आतंक फैल गया।

पुलिस की छानबीन तथा स्काटलैण्ड यार्ड की वैज्ञानिक जाँच इस घटना का सुराग न लगी सकी। यहाँ तक कि नगरपालिका ने पुलिस के विरुद्ध पास किया कि पुलिस जाँच करने में असफल रही है। सुरक्षायें की गईं किन्तु वे बेकार रहीं। आवागमन ठप्प होने लगा।

इंग्लैण्ड के सुप्रसिद्ध मनोविज्ञानी और दार्शनिक सी. ई. एम. जोड ने बी. बी. सी. पर एक संवाद में भाग लेते हुए कहा था− मैं भूतों पर विश्वास नहीं करता था, पर एक दिन जब मेरे ऊपर प्रयोगशाला में बैठे−बैठे चारों ओर से साबुन की टिकिया बरसनी आरम्भ हो गईं और खोज करने का उसका कोई आधार नहीं सूझ पड़ा तो मेरा विश्वास बदल गया और में अब भूतों के अस्तित्व को मानता हूँ।

कैंब्रिज विश्व विद्यालय में प्रेतात्माओं सम्बन्धी शोध कार्य करने के लिए एक विशेष विभाग ही खुला हुआ है। अमेरिका की “साइकिकल रिसर्च फाउंडेशन” द्वारा अनेक वैज्ञानिकों और बुद्धि जीवियों के सहयोग से सुनियोजित शोध कार्य चल रहा है। आशा है इसके परिणाम शीघ्र ही सामने आएँगे। अदृश्य जगत ऐसा विषय है जिसे स्थूल आयामों की परिधि में नहीं देखा जा सकता। उपकरण भी इसमें अधिक मदद नहीं कर सकते। दार्शनिक अनुसन्धान के इस क्षेत्र में किए जा रहे अमृत मंथन के परिणाम निश्चित ही शुभ होंगे।


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