मैत्री आदर्शों की कीमत पर निभाई नहीं जा सकती। यदि किसी ने कोई परोपकार किया है तो उसके बदले में अनीति पूर्वक कोई माँग आए तो, आदर्शनिष्ठ व्यक्ति उसे ठुकरा देते हैं। चाहे उन्हें कृतघ्न ही क्यों न कहना पड़े।
एक सज्जन त्रिवेणी नहा रहे थे। पैर फिसला और डूबने लगे। एक दूसरे शिक्षित व्यक्ति ने तैर कर निकाला। डूबने वाले ने अपना कलकत्ता का पता दिया। “कभी उधर आना हो तो कोई काम बतावें।” जिन्हें बचाया गया था, वे प्रसिद्ध बंगाली पत्र प्रवासी के सम्पादक थे। वे सज्जन थोड़े पढ़े लिखे थे, एक कविता बनाकर लाये। अपना डूबने निकालने वाला परिचय देते हुये कहा− यह कविता “प्रवासी” में छाप दें कविता छपने काबिल न थी सो उनने कहा यह छप न सकेगी, भले ही आपने जहाँ से निकाला था पुनः मुझे वहीं उठाकर पटक दें। लेकिन अपने उपहार के बदले में ऐसी अपेक्षा मुझसे न रखें जिससे मुझे अपनी आत्मा से समझौता करना पड़े।