धौम्य ऋषि अपनी शिष्य मण्डली समेत कुरुक्षेत्र मार्ग से गुजर रहे थे तो रास्ते में गज घंट के नीचे अण्डे से निकला हुआ बच्चा दिख पड़ा। सभी भगवान की लीला को सराहने लगे।
धौम्य ने कहा− भगवान का काम पूरा हो चुका। अब मनुष्य का काम शुरू होता है। इस बच्चे को उठाओ और ऐसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाओ जहाँ वह आहार पा सके और अपने बलबूते उड़ने में समर्थ हो सके|बूँदें समुद्र में गिरीं और अपनी सत्ता लुप्त होते देखकर खेद मनाने लगीं। समुद्र बोला− महानता के प्रति समर्पण करके कोई घाटे में नहीं रहा|
समुद्र का पानी उड़कर बादल बन गया। स्वाति नक्षत्र में बरसा तो बूँद सीपी में पड़कर मोती बन गई।
बूँद को पुरानी खिन्नता और समुद्र की सान्त्वना स्मरण आई। उसने अनुभव किया कि महानता के प्रति समर्पण करना घाटे का सौदा नहीं है।