गायत्री चालीसा पाठ अनुष्ठान

November 1985

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प्रातःकाल सूर्योदय के समय गायत्री मंत्र की एक माला वातावरण संशोधन का अनुष्ठान पहले से ही चल रहा है। इसकी पूर्ति ठीक प्रकार से हो रही है। कुछ छोड़ बैठते हैं तो कुछ नये आ जाते हैं। इस प्रकार प्रतिदिन 24 करोड़ जप करने का क्रम प्रज्ञा परिजनों द्वारा ठीक प्रकार चलाया जा रहा है। आशा की जानी चाहिए कि यह उपक्रम युग संधि के शेष 15 वर्षों में भी ठीक प्रकार चलता रहेगा। जिस संगठन के 24 लाख सदस्य हों और वे अपना न्यूनतम कर्तव्य निबाहें, उस निर्वाह का लेखा-जोखा ठीक तरह लिया जाता रहे, कमीवेशी को पूरा करते रहने का नियंत्रण रहे तो व्यक्ति के लिए छोटी किंतु समाज के लिए अतिशय उच्चस्तरीय प्रभाव उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया का सही रूप में चलते रहा कठिन क्यों होना चाहिए?

हीरक जयंती में उपरोक्त अनुष्ठान के समतुल्य ही एक दूसरा अनुष्ठान प्रारंभ किया जा रहा है वह है ‘गायत्री चालीसा पाठ’। इसमें समय का भी बंधन नहीं है। अनेेकों भावनाशील ऐसे हैं जो साधना तो करना चाहते हैं, पर प्रातःकाल सूर्योदय के समय का निर्वाह नहीं कर पाते। जिन लोगों की नौकरी रात में ड्यूटी देने की है, ऐसे लोगों की कमी नहीं। वे काम पर से लौटते ही सो जाते हैं और नींद पूरी करके देर में उठते हैं।

जिन घरों में देर में रोटी खाने देर तक रेडियो सुनने, टी.वी. देखने का प्रचलन है वे भी सवेरे देर तक सोते हैं। बच्चों को नींद देर तक आती है और जगाने पर कुड़कुड़ाते हुए जगते हैं। जगने पर नित्य कर्म की बात पहली है। पूजा-पाठ की दूसरी।

ऐसे लोगों के लिए गायत्री चालीसा पाठ का क्रम सर्व सुलभ समझते हुए किया गया है। गायत्री मंत्र का उच्चारण तो शुद्ध ही होना चाहिए। इसके लिए शिक्षित होना आवश्यक है। अपने देश में दो-तिहाई लोग बिना पढ़े हैं। वे गायत्री मंत्र का जप कैसे कर पायें ऐसे लोगों को भी इस महान उपासना में साथ लेकर चलने की बात सोची गई है। वह माध्यम है- गायत्री चालीसा का पाठ। इसे किसी भी समय पढ़ा जा सकता है। यथासंभव जितनी शुद्धि रखी जा सके उतनी उत्तम है, पर उसके लिए कोई अनिवार्य प्रतिबंध नहीं है।

जो नितांत अशिक्षित हैं। उनके लिए यह तरीका उत्तम है कि एक शिक्षित व्यक्ति एक चौपाई पढ़े। दूसरे पास बैठे हुए बिना शिक्षित बालक, वृद्ध, महिलाएं उसे दुहरायें। इस प्रकार शिक्षितों के साथ अशिक्षितों की साधना भी चल पड़ती है। कुछ दिनों में तो वह बिना शिक्षितों के भी मौखिक रूप मे कंठस्थ हो जाता है।

यदि इसके साथ वाद्य यंत्रों का भी समावेश किया जा सके तो अच्छा खासा कीर्तन, भजन, संगीत हो जाता है और उससे सारे घर का वातावरण प्रतिध्वनित हो उठता है।

गायत्री चालीसा का महत्व इसलिए भी अधिक है कि उसके सहारे पाठ करने वाले को महात्म्य विदित होता है और श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा ही साधना का प्राण है। जो कार्य जप से नहीं हो पाता वह माध्यम से पूरा हो जाता है।

गायत्री चालीसा छपाई कागज के हिसाब से एक रुपये की पांच पड़ती हैं। पर 24 लाख गायत्री चालीसा घर-घर पहुंचाने की दृष्टि से उन्हें एक रुपये में बीस प्रसाद रूप में केंद्र से दिया जा रहा है। जहां भी कोई सम्मेलन आयोजन हो वहां धार्मिक प्रवृत्ति वालों को इन्हें पांच-पांच पैसे से भी कम में बेचा जा सकता है। घाटा वितरण करने वाले उठायें। हीरक जयंती वर्ष से प्रतिदिन 24 लाख गायत्री चालीसा पाठ का नया प्रयोग आरंभ हो रहा है।


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