राजा धनंजय (kahani)

November 1985

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इन्द्रप्रस्थ में राजा धनंजय के घर में एक बार बोधिसत्व ने पुत्र रूप में जन्म लिया था। उसकी न्याय निष्ठा तथा दानशीलता की ख्याति समस्त जम्बू द्वीप में फैल गई। उन्हीं दिनों अनावृष्टि के कारण कलिंग देश में अकाल पड़ा।

कलिंग के राजा प्रजा के दुःख को देखकर दुःखी हुये। उन्होंने विज्ञजनों को बुलाकर दुर्भिक्ष निवारण का उपाय पूछा− उन्होंने कहा− प्राचीन समय में राजा अपना समस्त राज कोष दान कर देते थे। एक माह घास पर सोते थे। राजा ने ऐसा ही किया परन्तु वर्षा न हुई।

दूसरी सभा बुलाई गयी। ज्योतिषियों ने कहा− कुरु देश के राजा के पास अंजन वसभ नामक माँगलिक हाथी है उसके यहाँ आने पर वर्षा हो जायेगी। मंगल गज आ गया पर वर्षा इससे भी न हुई। तीसरी सभा बुलाई गयी उसमें बोधिसत्व ने बुझाया कि अधर्म बढ़ जाने से दुर्भिक्ष पड़ा। सभा को बात जँच गयी राजा ने इन्द्रप्रस्थ में 8 ब्राह्मण भेजकर धर्माचरण के नियम मँगवाए। धर्माचरण की मोटी मर्यादा तो स्वर्ण पटल पर लिखी थी। उनका मर्म रहस्य यह है− ‘कि हर व्यक्ति अपने आचरण की गहरी समीक्षा करे, सुधार के लिए सचेष्ट रहे। विनम्र बने, अपनी अपेक्षा दूसरों को श्रेष्ठ माने।’ जैसे ही धर्माचरण का पालन आरम्भ हुआ वैसे ही विपुल वर्षा होने लगी। दुर्भिक्ष का स्थान सुभिक्ष ने ले लिया।


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