कोई व्यक्ति विश्वास करे अथवा नहीं। विलक्षण आसुरी शक्तियों के दुष्प्रभावों से बचा नहीं जा सकता। ब्राजील के नगर बेलम में 15 मार्च 1983 को इसी प्रसंग की एक घटना घटित हुयी। डौजैरिना मैरिया सैंतोस नामक 33 वर्षीय महिला ने दुर्भावना वश अपने पति, माता तथा दो बच्चों की हत्या कर दी।
सर्वप्रथम तो उसने एक लोहे की छड़ी से अपने सोते हुए पति की हत्या की तदुपरान्त 78 वर्षीय अपनी माँ को बड़ी नृशंसता से मार डाला और फिर अपने 2 वर्षीय बालक रुथ और सात महीने के डैनियल के गले को छुरा मारकर खत्म कर दिया। इसके उपरान्त सैंतोस ने अपने ऊपर अल्कोहल उड़ेलकर आत्म-हत्या की योजना बनायी ही थी कि पड़ौसियों ने उसकी जान बचा ली।
सैंतोस ने अपने कथन से स्पष्ट किया कि काफी दिनों से उसके ऊपर आसुरी शक्ति हावी होती चली आ रही थी। इसी का दुष्परिणाम यह निकला कि नित्य बाइबिल का पठन−पाठन करने वाली सैंतोस को अपनी सुसमाचार विभाग की सेवा से छुट्टी ही नहीं मिली। जेल में कड़ी सजा भी भुगतनी पड़ रही है।
अमेरिका के प्रसिद्ध नक्षत्र शास्त्री अलैक्जेण्डर वेयरिंग ने शिकागो में एक बिस्कुटी रंग की भव्य कोठी का निर्माण 1880 में कराया था। जिसका नाम ‘सिल्वर ओक’ रक्खा। बाद में वह अभिशप्त सिद्ध हुआ। उसमें एक एक करके बावन मौतें हुईं। अलैक्जेण्डर वेयरिंग स्वयं अपने घर में सात वर्ष बाद अक्टूबर 1887 में मृत पाया गया था। उपनगरीय बस्ती ‘अलवर्टो’ के नगर पालिका अध्यक्ष काल्विन सिंक्लेयर 192 सी एक चाँदनी रात को उस समय की गृह स्वामिनियों मिसेज एलिजावेथ और मिसेज जैकसन से मिलने गये थे परन्तु वे वहाँ से पागल होकर लौटे थे। ‘मैंने उसे देखा हैं’ बस यही असंबद्ध का प्रलाप वे करते थे। मिसेज एलिजावेथ और मिसेज जैकसन उसी रात को वहाँ मृत पाई गई थीं। सिंक्लेयर को पागलखाने भेजा गया।
जब सन् 1979 में उस बँगले के अन्तिम निवासी सूसन और एडवर्ड हुए तो एक रात को जो 13 दिसम्बर की एक मनहूस रात थी। एडवर्ड की लाश उसके उजाड़ और बेरौनक बगीचे में मिली थी जो क्षत−विक्षत थी और खून से नहाई हुई थी। ठीक इसके तीन दिन बाद 16 दिसम्बर 1979 को सूसन की भी मृत्यु ‘अलवर्टो’ के सिविल अस्पताल में हो गयी। आधी बेहोशी की दशा में अनर्गल सा प्रलाप करते हुए उसने जो बताया था, उसी के आधार पर लोगों ने उस घटना को जाना था। जून 1980 में शिकागो प्रशासन के एक निर्णय के अनुसार उस भव्य सुदृढ़ कहे जाने वाले बिस्कुटी रंग के बँगले को गिरवा दिया गया।
इस अभिशप्त बँगले ने एक सौ वर्ष की अपनी अवधि में 52 मानवों के जीवन से क्रूर हँसी हँसकर काल कवलित कर दिया। आज भी उस भूखण्ड से रुदन और अट्टहासों की ध्वनियाँ रात्रि में सुनी जाती हैं।
भारत पाक विभाजन के उपरान्त कराँची में अमेरिकी दूतावास के लिए जो भूमि चयन की गई, स्थानीय लोगों ने चेतावनी दी कि यहाँ एक पीर की मजार है उन्हें छेड़ने के परिणाम अच्छे न होंगे। और वैसा हुआ भी।
नींव खोदने पर नर कंकाल और जहरीले साँप निकले। जैसे तैसे एक मंजिल पूरी हुई तो दूसरी की छत गिर गई और सैकड़ों मजदूर दब मरे।
उद्घाटन समारोह के दिन एक अजनबी वृद्ध क्रोध में इधर−उधर घूमते देखा गया टोकने पर उसने एक कर्मचारी के ऐसा घूँसा मारा कि कर्मचारी घंटों बेहोश रहा। घूँसा मारकर वृद्ध देखते−देखते अदृश्य हो गया। तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खाँ ने मौलवियों से पीर को शान्त कराने के कितने ही उपाय किये किन्तु सभी निष्फल रहे। फलतः आज भी दूतावास की इमारत भूतघर बनी खाली पड़ी है।