सूझ-बूझ तब काम करती है जब मनुष्य का सन्तुलन बना रहे। जब सूझ-बूझ काम करती है तो कठिनाइयों का हल भी निकल आता है। सूझ-बूझ का तात्पर्य है अनुशासन और मिलजुल कर काम करने का उत्साह। यदि उसमें कमी पड़ती है तो दुर्भाग्य आ धमकता है और जिस उपाय से दूसरों को लाभ हो जाता है उसे भी वे उठा नहीं पाते।
दुर्भिक्ष से पीड़ित एक परिवार गाँव छोड़ कर किसी सुभिक्ष वाले स्थान में जाने के लिए निकल पड़ा। बहुत दूर निकल जाने पर वे थक गये। एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे और भूख बुझाने का उपाय सोचने लगे।
परिवार में तीन लड़के थे। पिता ने एक को आज्ञा दी आग लाओ, दूसरे से कहा लकड़ी बीनो, तीसरे से कहा पानी लाओ। तीनों आज्ञा पाते ही चल पड़े और बताई चीजें कही से ढूंढ़ कर ले आये। बाप ने चूल्हा बनाया। चूल्हा जलने लगा।
पेड़ पर एक हंस बैठा यह सब देख रहा था। उसने पूछा- चूल्हा, तो जल गया पर भला तुम लोग पकाओगे क्या? सचमुच पकाने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था।
बाप बोला- तुझे ही पकड़कर पकायेंगे।
हंस डर गया। उसने कहा मुझे मत पकड़ो पकाओ। तुम्हें बहुत साधन दूँगा जिससे सुखपूर्वक जी सको। परिवार तैयार हो गया। हंस के पीछे-पीछे वे लोग गये। पक्षी ने एक स्थान बताया और कहा यहाँ खोदो बहुत धन है। खोदा तो भारी स्वर्ण भण्डार निकला। उसे लेकर वह परिवार अपने गाँव लौट गया और सुखपूर्वक रहने लगा।
इतना धन अकस्मात कैसे मिला, कहाँ से मिला- प्रश्न पड़ोस वासियों के मन में उठा। घटना क्रम जाना तो एक पड़ौसी ठीक वैसा ही करने लिए अपने परिवार को लेकर निकल पड़ा और चलते-चलते उसी पेड़ के नीचे डेरा लगाया- जहाँ पहले वाले लोग आये थे और धन लेकर गये थे।
घटनाक्रम उसी प्रकार दुहराया जाना था सो बाप ने लड़कों से कहा- जाओ लकड़ी, आग, पानी लाओ। पर उनमें से कोई भी न गया। एक दूसरे से लड़ने लगे और कहने लगे हम क्यों जायें, तू ही तीनों चीजें क्यों नहीं ले आता। झंझट में घण्टों बीत गये। तो लड़कों की माँ ने कहा- लो, मैं जाती हूँ और तीनों चीजें लाती हूँ। इस पर बाप आग बबूला हो गया। उसने कहा- ‘‘खबरदार पैर बढ़ाये तो डण्डे से तोड़ दूंगा। जब जवान लड़के ही नहीं जाते तो तुझे जाने की क्या गरज पड़ी है।”
सारा परिवार आवेश में भरा बैठा था, एक-दूसरे पर बेतरह बरस रहा था, पर कुछ करने को कोई तैयार न था। बाप की आज्ञा को किसी ने भी नहीं स्वीकारा।
पेड़ पर बैठा हंस यह सब देख रहा था। उसने कहा- “तुम लोग बड़े बेढब हो। भूखे प्यासे हैरान बैठे हो- खाओगे क्या?”
सबने मिलकर कहा- तुझे पकड़ेंगे और तुझे ही खायेंगे।
हंस ठठाका मार कर हँस पड़ा और बोला- तुम लोग आपस में ही एक-दूसरे को नहीं पकड़ सकते तो मुझे क्या पकड़ोगे?
हंस उड़कर दूर चला गया। उन लोगों को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। जो लोग परस्पर मिल जुलकर नहीं रह सकते उन्हें महत्वपूर्ण सफलताओं की आशा नहीं रखनी चाहिए।