स्वप्नों के पीछे सन्निहित तथ्य

May 1985

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सपनों में अनेकानेक ऐसी घटनायें फिल्म रूप में उपस्थित रहती हैं जो कि स्वप्नदर्शी के लिए आगम भविष्य के लिए संकेत या संदेश के रूप में होती हैं। अपने इन स्वप्नों की फिल्म का वह स्वयं ही दर्शक और अभिनेता दोनों एक साथ होता है। वह अपनी स्मृतियों से प्रभावित रहता है, वह ऐसी घटनायें देखता है जो कि भूत, वर्तमान में अभी तक कभी भी घटित नहीं हुई हैं, उसमें वह काल्पनिक स्थान भी देखता है। कल्पना पर आधारित होने पर भी सपने स्पष्ट भावनामय तथा नियन्त्रण से परे होते हैं। वे प्रतिदिन के जीवन की तरह वास्तविक न होते हुए भी कभी-कभी विचित्र रूप से वास्तविक तथा सच सिद्ध होते हैं। इस प्रकार सपनों की इस रहस्यात्मक प्रकृति के कारण प्रत्येक व्यक्ति के मन में इस प्रकार के अनेकानेक प्रश्नों का आना-जाना स्वाभाविक है कि- ये संदेश कहाँ से प्राप्त होते हैं? अपने मस्तिष्क से? किसी दैवी शक्ति से? अदृश्य जगत से? आदि-आदि।

बहुधा अपने रचनात्मक होते हैं। इसके प्रमाण आधुनिक युग में भी मिलते हैं। कितने ही कवियों ने काव्य पंक्तियां सपनों में देखीं। लेखकों को कथानक मिले। संगीतकारों को संगीत की लय सुनाई दी। वैज्ञानिकों को अपनी समस्याओं की सच्चाइयाँ उजागर होती दिखीं। शायद यह विचारों के विश्लेषण तथा अचेतन रूप से दिवा स्वप्न का परिणाम हो। ये परिणाम कभी-कभी अनोखी रचनात्मकता दिखाते ही हैं।

अंग्रेजी साहित्य के प्रख्यात महान कवि सैमुअल टेलर कॉलरिज ने उप-शामक के रूप में तीसरे पहर अफीम खाली। सोने के पूर्व उसने ये अंतिम शब्द कहे थे- “यहाँ कुबला खान ने एक महल बनवाने का आदेश दिया था।” जब वह तीन घण्टे की नींद के बाद जागा, उसके मस्तिष्क में कविता की तीन सौ पंक्तियाँ अंकित थीं। कविता की सारी कल्पना उसे स्वप्न में दिखाई दी थी। उसे न तो उनके लिए कोई प्रयास करना पड़ा और न उसमें कोई उत्तेजना थी। जागते ही उसने “कुबला खान” शीर्षक अपनी यह प्रसिद्ध कविता लिखनी शुरू की। उसने 54 पंक्तियाँ ही लिखी थीं कि इसी बीच एक आगन्तुक उससे मिलने आ गया। एक घण्टे बाद ही वह पुनः लिखने बैठ गया। पर तब तक उसकी स्वप्नकालीन मौलिक कल्पना लुप्त हो चुकी थी। अतः लाख बार याद करने पर भी सपनों की शेष पंक्तियाँ वह न लिख सका।

18 वीं सदी में इटली में संगीतकार तारतिनी ने भी सपने की रचनात्मकता का अनुभव किया था। उसने लिखा था कि “कुबला खान’ कविता लिखने का श्रेय कॉलरिज का नहीं सपने को देना चाहिए। स्वयं उनने भी एक सपना देखा था। सपने में उनने अपनी वायलिन शैतान को दे दी थी। उस शैतान ने उससे अनोखी धुन निकाली थी। वे उससे अत्यन्त प्रभावित हुए थे। जागने पर उनने धुन के शब्दों को वायलिन से निकालने का प्रयास किया। उस ध्वनि का नाम उन्होंने ‘दि डेविल्स सोनाटा’ रखा था। उसे उनने अपना श्रेष्ठ कृति माना था।

प्रसिद्ध लेखक राबर्ट लूई स्टीवेन्सन को अनेक रचनाओं की उत्कृष्टता का श्रेय दिया जाता है। उनने अपनी अधिकाँश श्रेष्ठतम कवितायें सपने के बाद जागकर लिखी थीं। उनने दावा किया था कि वे रचनाओं के सपने क्रम से देख सकते हैं। कल की रात जहाँ से सपना छोड़ा था, आज की रात वह कहानी वहीं से जुड़ जायेगी। यही नहीं, वे आवश्यकता के अनुसार भी सपने देखने का दावा करते थे। जैसे कि, उन्हें किसी समस्या विशेष या विचार विशेष को लेकर कहानी लिखनी है, तो उसके सपने उस माँग को भी पूरी करते थे। उनकी महान रोमाँचक रचना ‘दि स्ट्रेन्जर केस ऑफ डाक्टर जैंकिल एण्ड हाइड” ऐसे ही सपने की उपज थी। उनने एक जगह स्वयं लिखा था कि वे अरसे से मानव के दोहरे रूप के सम्बन्ध में विचार कर रहे थे।

इसी प्रकार दार्शनिक विलियम जेम्स एक बार रात में एक समस्या पर विचार कर रहे थे। प्रातः एक सपना देखकर अचानक वे उछल पड़े। उन्हें लगा, कविता की एक पंक्ति में उनने संसार की समस्या का हल जान लिया हो। पंक्ति का अभिप्राय था, “नारियाँ एक पुरुष से शादी करती हैं, पुरुष बहु विवाही होते हैं।”

क्या इस प्रकार के संदेश संकेत स्वप्न दृष्टा के द्वारा स्वयं भेजे गए होते हैं? क्या अचेतन मस्तिष्क ही ऐसे संदेशा भेजता है। अब तक सभी मनोवैज्ञानिकों एवं मनः वैश्लेषिकों ने यह तथ्य समवेत स्वर से स्वीकार कर लिया है कि मनुष्य का अचेतन मस्तिष्क ही ऐसे प्रश्नों के उत्तर प्रत्यक्ष या संकेत रूप में देता है किंतु पुनः एक प्रश्न उभरकर सामने आ खड़ा होता कि कथा कहानियों के कथानक तथा वैज्ञानिक समस्याओं के हल कैसे सपनों में मिल जाते हैं? ये सभी तो मस्तिष्क की परिधि के बाहर होते हैं।

सपनों को समझने की समस्या भविष्य सूचक सपनों से अधिक संयुक्त है। यदि ऐसे सपनों की सच्चाई पर विश्वास करें तो यह भी स्वीकार किया ही जाना चाहिये कि मस्तिष्क पर कोई बाहरी शक्ति प्रभाव डालती है। अनेकानेक प्रकार के भविष्य सूचक सपने देखने का दावा करने वाले अति शिक्षित व्यक्ति कुशल ब्रिटिश यान चालक तथा इंजीनियर जे. डब्ल्यू. डुने थे। वे बोकार युद्ध के समय दक्षिण अफ्रीका में नियुक्त थे। उस समय उनने एक नाटकीय सपना देखा था। उसका उनने दूसरे से उल्लेख ही नहीं, अपितु अपनी एक पुस्तक में भी जिक्र किया है। सपने में उनने देखा था कि वे एक पहाड़ी के ऊपर खड़े हैं। वे आतंक से एक ऐसे ज्वालामुखी को देख रहे हैं जो भभकने ही वाला है धरती से भाप की तरंगें उनके चारों ओर उठ रही हैं। फिर उनने अपने को पास के एक द्वीप पर देखा। वहाँ वे निराशाजनक स्थित में करुणा एवं दयार्द्र हो मुसीबत में फंसे लोगों को बचाने के लिए फ्राँसीसी अफसरों से सहायता हेतु जहाज भेजने का अनुरोध कर रहे थे। ऐसे संकटग्रस्त लोगों की संख्या 4 हजार दिख रही थी। वे अनुरोध ही कर रहे थे कि इसी बीच उनकी आँख खुल गयी।

जब जहाज से उनके पास तक अखबार आया तो उसमें चौंका देने वाले विपत्ति के समाचार थे। वे खबरें उनके सपनों से मिल रही थी “डेली टेलीग्राम” नामक समाचार पत्र ने मार्तिनीक द्वीप में ज्वालामुखी के विस्फोट की खबर सुर्खियों में छापी थी। समाचार पत्र के अनुसार वहाँ 40000 मौतें फ्राँस अधिकृत क्षेत्र में ही हुई थीं। जबकि डुने ने अपने सपने में मृतकों की संख्या 4000 देखी थी। वास्तविक जगत में अंकों के आगे एक शून्य और जुड़ गया था। जो बचे उन्हें जहाज से ही अन्यत्र पहुँचाया गया था।

डुने ने ऐसी अनेक घटनाओं का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है। एक बार उसने देखा कि वह खारतूस के पास ही खारतूस सूडान में है। वहाँ उनने देखा-तीन भद्दे कपड़े पहने अँग्रेज उसके पास आकर बोले कि वे सभी अफ्रीका के छोर से आये हैं। अगले दूसरे ही दिन उसने- अखबार में पढ़ा कि कुछ अँग्रेज खारतूस में विशेष खोज के लिए भेजे गए हैं। इसके पूर्व वे इस खोज या अभियान के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। एक और अन्य दूसरे स्वप्न में देखा कि स्काटलैण्ड में चौथे पुल से एक ट्रेन नीचे गिर गयी है। कुछ महीनों के बाद यह घटना भी सच हुई निकली। “फ्लाइंग स्काट्समैंन” नामक प्रसिद्ध ट्रेन चौथे पुल से 15 मील की दूरी पर एक बाँध से नीचे गिर गयी थी।

स्वप्न टेलीपैथी के रूप में संवाद वाहक का भी काम करते हैं। ड्युने को कभी-कभी यह आशंका होती कि संभवतया ‘डेली टेलीग्राम’ के संवाददाता ने अनजाने में टेलीपैथी के रूप में वह संवाद उनके मस्तिष्क में प्रसारित कर दिया हो। उनका कहना है कि सपने भविष्य सूचक होते हैं। प्रत्येक मनुष्य को अपने सपने स्मरण रखने चाहिये तथा कहीं लिख लेना चाहिये।

कभी-कभी कुछ सपने मनुष्य को अपनी भविष्यवाणी से घबरा भी देते हैं। प्रायः मौत सम्बन्धी सपने ऐसे ही होते हैं। ऐसे सपने स्मृति में लम्बे समय तक बने रहते हैं। 17 वीं सदी में फ्राँस का अभिनेता चैंपमेस्ले था। वह एक सपना देखकर घबरा गया। उस सपने में उनने देखा था कि उनकी मृत माँ उनको संकेत से बुला रही है। इस सपने को उनने अपनी मृत्यु की पूर्व सूचना समझा। इसका उल्लेख उनने अपने निकट सम्बन्धी इष्ट मित्रों, नातेदारों से भी किया। उनने अपना मृतक अन्त्येष्टि संस्कार का आयोजन किया। उसका पैसा भरपाई पहले ही चुका दिया। जैसे ही वह संस्कार समारोह पूर्ण हुआ, वे चर्च से बाहर आये और तत्काल गिरकर मर गये।

मातायें अपने बीमार या मरते बच्चों के स्वप्न प्रायः देखती हैं उत्तरी वेल्स के बंगोर नामक स्थान की श्रीमती मोरिस ग्रिफिथ ने 1884 में एक इसी प्रकार का सपना देखा। उसमें उनने दक्षिणी अफ्रीका स्थित अपने बेटे को बहुत बीमार पाया। उनने कई बार उसे पुकारते सुना। वे दूसरे दिन बहुत परेशान हो गई। परन्तु उन्होंने अपने पति से यह बात न कही। वे बीमार थे तथा यह कहना उनका और अधिक परेशान करना था उनको भी दिन-भर कुछ वैसी ही परेशानी रही। दोनों खाना भी न खा सकें थे। मुख में ग्रास दिया ही न जाता था। अन्त में पति ने ही मन की बात कही। बोले- ‘‘मैं किसी भी मूल्य पर उसे ले आऊँगा।”

अगले ही दिन उनको पुत्र का पत्र मिला। उसमें लिखा था- बुखार से काफी अस्वस्थ होने के बाद अब वह कुछ स्वास्थ्य लाभ कर रहा है। ठीक उसके भी दो माह बाद उनको एक पत्र मिला। उसमें लिखा था कि “उसकी उसी रात मौत हो गई थी, जिस रात उसने माँ को पुकारा था।”

कभी-कभी सन्देश देने वाले सपनों ने युद्धों का रुख आश्चर्यजनक रीति से मोड़ दिया है। हैनीवाल ने एक सैनिक विजय का पूर्वाभास एक स्वप्न में ही जाना था। इंग्लैण्ड के राजा रिचार्ड तृतीय ने बोसवर्थ के युद्ध में हार और मृत्यु की सूचना भयंकर आकृतियों के द्वारा स्वप्न में पायी थी। वाटर लू के युद्ध के ठीक पहले नेपोलियन ने एक सपना देखा था कि एक काली बिल्ली उसकी सेना के प्रमाण के पूर्व एक-एक कर सभी दस्तों के बीच घुस रही है।

सपने दैवी संदेश के रूप में भी देखे जाते रहे हैं। एक प्राचीन मित्र की सपनों पर लिखी गई पुस्तक ईसा से 1350 पूर्व की है। उसमें सपनों को दैवीय सन्देश कहा गया है। उसके अनुसार- लकड़ी कटने का घोतक प्रतीक अर्थ शत्रु की मौत है। यदि किसी के दाँत सपने में गिरते नजर आयें तो उस पुस्तक के मतानुसार- उसके सम्बन्धी उसकी हत्या का षड़यन्त्र कर रहे हैं। आश्चर्य तो यह है कि ड्यूटी की हत्या उसके शिक्षक द्वारा स्वप्न देखने के एक घण्टे के भीतर ही हुई थी।

दूसरी सदी में एक विख्यात भविष्य वक्ता आर्टेमिडोरस था। इस यूनानी भविष्य दृष्टा ने सपनों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उनने लिखा है कि मैं रात-दिन बस सपने ही देखता और उनका विश्लेषण करता रहा। वह सचमुच कुशल भविष्य वक्ता था। उनके अनुसार अधिकाँश स्वप्न व्यक्तिगत होते हैं। हमारी आत्मा सृजन में कुशल है इसलिए अनेक तरह के सपने दिखते हैं। किसी स्वप्न की व्याख्या देने के पूर्व वे देखने वाले की (स्वप्नदर्शी) दशा, व्यवसाय और पृष्ठभूमि अवश्य पूछ लेते थे।

आर्टेमिडोरस ने सपनों को दो वर्गों में बाँटा है। प्रथम वर्ग के सपने वे हैं जो रोजमर्रा की जिन्दगी और कामों की उपज हैं। दूसरी तरह के सपने भविष्य या दैवीय संदेशों से सम्बन्ध रखने वाले होते हैं। जैसे मुण्डित सिर दिखाई देना भविष्य का कुमार्ग का संकेत है। बीमार के लिए अत्यन्त अमांगलिक व अपशकुन नाविक देखे तो इसका अर्थ है जहाज नष्ट होगा।

मलेशिया के पहाड़ी जंगलों में सेनाय लोग चारों ओर से लड़ाकू जातियों से घिरे हैं। कोई भी शत्रु उन शान्ति प्रिय लोगों से इसलिए नहीं बोलता है क्योंकि वे समझते हैं कि ये लोग जादू से अपनी रक्षा कर सकते हैं किन्तु वास्तविकता तो यह है सेनाय लोग अपने सपनों और उनकी व्याख्या पर अपना जीवन बिताते हैं। उनके मत से, उस जाति के जीवन की हर महत्वपूर्ण घटना का समय तक सपने में नजर आ जाता है। वहाँ बच्चे तक अपनी रिपोर्ट बताते हैं। वहाँ सपना देखने वाले के लिए पहला सिद्धान्त है भय कम करना। अगर कोई बच्चा कहता है कि वह सपने में चीता देखकर भागा था, तो उसे फिर वह उसी सपने को देखने के लिए विवश किया जाता है। इस बार वह भागे नहीं, अपनी जगह जमा रहें और चीते पर उल्टे हमला करे। कठिनाई लगे तो अपने कुछ मित्रों को अपने पास बुला रखे। इस प्रकार वह सपना उसके लिए हौवा नहीं, बल्कि आत्म रक्षा का प्रशिक्षण बन जायेगा। ये सेनाय व्यक्ति वासना की उन्मुक्तता को वे आवश्यक समझते थे। इसलिए स्वप्न के किस भी दृश्य को अनैतिक नहीं मानते हैं। एक सिद्धान्त उन्हें और बल देता है। यदि कोई सेनाय युवक स्वप्न में देखे कि वह घायल हो गया है, तो वे लोग इसकी व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि उसने अपने शत्रु की भी तो शक्ति क्षीण की होगी।

इन सिद्धान्तों से प्रेरित होकर कैलीफोर्निया के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एरिक ग्रीन लीफ ने वहाँ “स्वप्न प्रयोगशाला” खोली है। उसमें सेनाय के निवासियों की तरकीबें काम में ली जाती हैं। बुरे सपने देखने पर, देखने वाले से प्रश्न पूछे जाते हैं। उसे भय पर काबू पाने के लिए कहा जाता है।

फ्रायड का विरोध उसके ही शिष्य कार्ल जुंग ने किया था। परन्तु दोनों ही इस तथ्य को पूर्ण रूप से न उड़ा सके कि कुछ सपने ऐसे अवश्य होते हैं, जो अदृश्य सूक्ष्म सत्ता से जुड़े होते हैं।

सोवियत डा. वेसिली निकोलायेविच कसतकिन का कहना है, सपने रोग से सावधान करते हैं। इस प्रकार की भारतीय धारणा भी रही है। डा. वेसिली ने कई मरीजों पर इसे आजमाया है। एक छात्र देखता था कि उसे एक अजगर ने पंगु बना दिया है। एक वर्ष बाद उसे स्पाइनल ट्यूमर हुआ। एक औरत देखती थी कि वह इतनी दब गई कि कठिनाई से साँस ले पा रही है- उसे क्षय हो गया। उपर्युक्त सोवियत डा. के मत से मस्तिष्क बीमारी का अनुमान कर लेता है। अतः वह स्वप्न में उसका पहले से ही संकेत कर देता है। मस्तिष्क की ऊपरी सतह पर कुछ ऐसे “सैल” होते हैं, जो अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। वे सूक्ष्म से सूक्ष्म परिवर्तन को भी ग्रहण करते हैं। उनकी पुस्तक ‘स्वप्न के सिद्धान्त’ रूस में मेडिकल कालेजों में अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ायी जाती है। सन् 1960 से वह पाठ्यक्रम में है। उनको संसार में इसके पहले बहुत कम लोग जाते थे। सन् 1975 में ग्रिस तथा डिक दो पत्रकारों ने जाकर उनसे इण्टरव्यू लिये और उन पर कई लेख लिखे।

उन्होंने लिखा है, अगर कोई नारी अपनी पसलियाँ कुचली जाते देखे, तो उसे कैंसर क्षय आदि फेफड़े का रोग हो सकता है। घाव भीतरी खराबी का संकेत करते हैं। अगर कुशल डाक्टर है, तो सपना सुनकर वह मरीज के रोग को समय रहते सरलता से ठीक कर सकता है। डॉक्टर उलमान तो वर्तमान समय में आजकल टैलीपैथी से प्रभावित करने के प्रयोग कर भी रहे हैं। जुंग ने टैलीपैथी (दूरबोध) का तत्व पहले से ही माना था। अतः टैलीपैथी पर सन् 1882 से ही काम होने लगा था। ब्रिटिश सोसाइटी ने इस पर अनेक प्रमाण भी जुटाये थे। ब्रिटिश सोसाइटी संगठन ने 5000 लोगों पर परीक्षा भी की थी। जब गहन परीक्षण, पर्यवेक्षण के पश्चात उन्होंने यह स्वीकार करना ही पड़ा कि इस विषय में कोई अदृश्य सूक्ष्म शक्ति काम करती है।

राबर्ट नेलसन ने सन् 1968 से सपनों की विशेषकर भविष्यवाणी वाले सपनों की रजिस्ट्री प्रारम्भ की हैं। समाचार पत्रों और टेलीविजन से इसका विज्ञापन किया जाता है। 8000 सपने अब तक पंजीकृत हो चुके हैं। उनको सपनों की भविष्यवाणी पर पूरा विश्वास है।

पूर्वार्त्त दर्शन में वर्णित मान्यताओं के अनुरूप अब स्वप्नों की प्रमाणिकता पाश्चात्य जगत में भी स्वीकारी जाने लगी है। मनोवैज्ञानिकों का दृष्टिकोण इस सम्बन्ध में अब विधेयात्मक बनता जा रहा है। अमेरिका में तो कई विश्व विद्यालयों में स्वप्न विज्ञान को बाकायदा करी कुलम में शामिल कर उन पर शोध कार्य भी किया जा रहा है। यह निश्चित ही एक शुभ चिन्ह है।


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