संगीत उपचार की संभावनाएं

May 1985

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वेद चार हैं। ऋग्वेद ज्ञान परक। यजुर्वेद कर्मकाण्ड परक। अथर्ववेद विज्ञान परक। सामवेद संगीत परक। वैसे वेदत्रयी भी कही जाती है। अर्थात् ऋगु, यजु, अथर्व, सामवेद में इन्हीं तीनों के मंत्र हैं और वे हैं संगीत परक। एक-एक मंत्र को अनेक प्रयोजनों के लिए अनेक प्रकार से गाया जाता है। इनका गायन मनोरंजन के निमित्त नहीं है वरन् उनका उद्देश्य विशेष है। पुरातन काल में सामवेद की ऋचाओं को अनेक प्रकार गाया जाता था। वे ध्वनियां अब लुप्तप्राय हो गईं। उपलब्ध सामवेद में एक ही प्रकार का गायन क्रम है।

संगीत मात्र पद्य रचना नहीं है। उसमें अनेकानेक ध्वनियों का समावेश है। यह ध्वनियाँ कानों को मिठास देने मात्र के लिए नहीं वरन् उनके द्वारा विस्तृत होने वाली तरंगों के प्रभावों को देखते हुए बनाई गई हैं। इनके आध्यात्मिक भावना परक उद्देश्य भी हैं। साथ ही उनमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन के गुण भी हैं। उन्हें चिकित्सा प्रयोजन के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। यज्ञ क्रम के कार्यकर्ताओं में एक उद्गाता की नियुक्ति भी होती थी वह उस ध्वनि में मंत्रों का गायन करता था जिसके निमित्त कि वह यज्ञ कृत्य किया जा रहा है।

इस विद्या के जानकार अब बहुत कम बचे हैं। वह लुप्तप्राय हो चली है। उसका वैज्ञानिक परिशोधन नये सिरे से हो रहा है और देखा जा रहा है कि किस ध्वनि लहरी का मनुष्य पर, पशुओं पर, वनस्पति पर और वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है। पिछली शताब्दी में बुझे हुए दीपक को जला देने वाला दीपक राग, उठते हुए बादलों को बरसने के लिए बाधित करने वाला मेघ मल्हार, हिरन आदि पशुओं को मंत्र मुग्ध कर देने वाला मृग राग, सर्पों को बिल में से बाहर निकाल कर नर्तन के लिए बाध्य करने में सर्प राग बहु प्रचलित थे। उनसे अब साँपों को नचाने वाला सर्प राग ही सपेरों के पास बचा है।

वैज्ञानिकों ने ऐसे ध्वनि प्रवाह निकाले हैं जिनसे तरंगित होकर दुधारू पशु अपेक्षाकृत अधिक दूध देते हैं। फसलें जल्दी बढ़ती और अधिक फलती फूलती हैं। युद्ध के नगाड़े पहले भी एक खास तरह के होते थे। अभी भी सैनिकों में युद्धोन्माद उत्पन्न करने वाले बैण्ड विशेष ध्वनियों पर बजते हैं।

भक्ति भावना को उमंगाने के लिए देवालयों में विशेष ध्वनियों पर गीत गान गाये जाते हैं। कामुकता भड़काने वाले गीत वाद्यों के आयोजन राजा रईसों के यहाँ होते रहते थे। होटलों में अभी भी ऐसे नृत्य गीतों का प्रचलन है।

अब चिकित्सा प्रयोजन के लिए संगीत का नया उपयोग आरम्भ हुआ है। इन प्रयोगों में जापान सबसे आगे है। अमेरिका में भी उसका अनुकरण किया है। मानसिक रोगों में कुछ ध्वनि तरंगें विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध हुई हैं। मानसिक रोगों तथा रक्तचाप के असन्तुलन को ठीक करने में भी उसका विशेष प्रतिफल देखा गया है।

कुछ डाक्टरों ने मनोवैज्ञानिकों ने तथा संगीत शास्त्रियों ने मिलजुल कर ऐसे पर्यवेक्षण किये हैं कि किस रोग में किस प्रकार का ध्वनि प्रवाह लाभदायक सिद्ध होता है। इस आधार पर संगीत चिकित्सा एक स्वतन्त्र विज्ञान ही बनता जा रहा है।

पाश्चात्य देशों के कई अस्पतालों में औषधियों के साथ संगीत का प्रयोग किया जा रहा है। कई डाक्टर विशुद्ध संगीत के सहारे ही इलाज करते हैं और कहते हैं कि यह प्रणाली इतनी सशक्त है कि वह अकेली ही आश्चर्यजनक प्रतिफल प्रस्तुत कर सकती है। इसके साथ औषधि का समावेश करके उनका श्रेय बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है।

म्युनिख के डा. लुडविन न मानसिक रोगियों के लिए विशेषतया किशोर बच्चों के लिए एक संगीत अस्पताल बनाया है जिसमें न केवल रोगों की चिकित्सा होती है वरन् ध्वनि विशेष के आधार पर उनकी कुटेवों को भी दूर किया जाता है।

मनोरोग चिकित्सा पीटर न्यूमेन और माइकेल सेन्डर्ड ने संयुक्त रूप से ऐसे ही अस्पताल का शुभारम्भ किया है जिसमें मनोरोगों के चिकित्सा उपचार में एक संगीतवादन भी सम्मिलित किया गया है। इससे पहले की अपेक्षा अब अधिक सफलता मिलने लगी है।

रूसी वैज्ञानिक प्रो. एस॰ वी. कोदाफ अभी इस परीक्षण में ही लगे हैं। पर अब तक के अनुभव से उन्हें विश्वास हो चला है कि स्नायविक रोगों के लिए संगीत चिकित्सा विशेष रूप से लाभदायक है।

शिकागो के मानसिक चिकित्सालय में डा. बेंकर के संगीत प्रयोग बहुत सफल रहे हैं। डा. वर्डमैन और ब्रुकलिंग ने आपरेशनों के समय संगीत उपचार का अच्छा प्रभाव देखा है।

अमेरिका, फ्राँस, पश्चिमी जर्मनी और जापान में संगीत चिकित्सा एक सामान्य हो गई है। उसे न केवल चिकित्सा के लिए वरन् शारीरिक और मानसिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्तियों के लिए शक्ति संचार की तरह संगीत का प्रयोग किया जा रहा है। अभी यह शोध प्रारम्भिक स्तर पर है, पर आशा की जाती है वह एक स्वतन्त्र विज्ञान की तरह विकसित होगी और न केवल रोगियों का वरन् कृषि की अभिवृद्धि और दुधारू पशुओं के लिए भी विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होगी।

सामान्यजनों के लिए मनोरंजन तथा तनाव, रक्त चाप दूर करने की दृष्टि से संगीत उपचार से बड़ी-बड़ी आशाएँ की जा रही हैं।

चिकित्सा और अभिवर्धन दो अलग-अलग प्रसंग होते हुए भी दोनों में परस्पर सघन सम्बन्ध है। संगीत को व्यायाम की श्रेणी में गिना जा रहा है और उसके ऐसे तौर तरीके निकाले जा रहे हैं जो स्वस्थता को ही नहीं प्रसन्नता को भी बढ़ायें। प्रसन्नता एक मानसोपचार है जिससे कल्पना शक्ति, बुद्धिमत्ता और प्रतिभा के तीनों ही पक्ष विकसित होते हैं। इस धारणा को अनेक कसौटियों पर सही पाने के उपरान्त जापान में व्यायाम की तरह संगीत को भी शिक्षा का आवश्यक अंग घोषित किया गया है। पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में राजनैतिक मतभेद होते हुए भी इस विषय में दोनों एक मत हैं कि संगीत विलासिता एवं मनोरंजन नहीं है वरन् वह मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाने एवं प्रतिभा निखारने का अच्छा तरीका है।

कहने में संगीत एक विषय प्रतीत होता है, पर उसके अनेकों भेद उपभेद हैं। उनके प्रभाव भी पृथक-पृथक हैं। जिस प्रकार रोगों के निदान के अनुरूप चिकित्सा का निर्धारण किया जाता है वैसे ही शारीरिक एवं मानसिक आवश्यकताओं को देखते हुए अलग-अलग ध्वनियों का व्यक्ति विशेष के लिए निर्धारण किया जाता है। इस प्रसंग को अधिक बल इसलिए मिला है कि आधुनिक खोजों के मानसिक कारणों से शारीरिक रोगों का उत्पन्न होना माना है और मात्र दवा दारु पर निर्भर रहने के विचार परिशोधन को हर रोग के लिए आवश्यक माना है। इस हेतु प्रशिक्षण परामर्श की अपेक्षा संगीत को अधिक प्रभावी माना गया है। दूसरी बात यह है कि इन दिनों मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। उसमें संगीत से उत्पन्न विद्युत प्रवाह मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों पर विभिन्न स्तर के उपयोगी प्रभाव डालते देखा गया है। यह सस्ता भी है और बिना जोखिम का भी। इसीलिए शरीर शास्त्रियों और मनोविज्ञान वेत्ताओं का ध्यान इस ओर विशेष रूप से गया है कि मनःक्षेत्र को प्रभावित करने वाली अनेक प्रकार की संगीत तरंगों का अन्वेषण एवं प्रयोग किया जाय। अगले दिनों संगीत विज्ञान का भविष्य अतीव उज्ज्वल दृष्टिगोचर हो रहा है।


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