हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गतिविधियाँ

May 1985

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आत्मा अमर है उसे पुराने कपड़े की तरह बार-बार नये शरीर बदलने पड़ते हैं। इस परिवर्तन काल में भी एक मध्यावधि होती है। जिसमें सामान्य जनों की और असामान्यजनों की विधि व्यवस्था भिन्न-भिन्न होती है।

सूक्ष्म शरीर जीवित और मृतक स्थिति में यथावत् बना रहता है। सामान्यजनों का सूक्ष्म शरीर भी प्रेरणाऐं ग्रहण करता और प्रभाव छोड़ता है। असामान्य लोगों के सूक्ष्म शरीर में यह ग्रहण और विसर्जन की क्षमता विशेष रूप से बढ़ी-चढ़ी होती है।

मरणोपरान्त नया जन्म मिलने से पूर्व वाले मध्यान्तर में अपने कर्मानुसार स्वर्ग-नरक भोगते हैं और प्रेत पितर के रूप में अपने पूर्व संपर्क वालों को हानि-लाभ पहुँचाते रहते हैं। असामान्य आत्माओं का सूक्ष्म शरीर अपेक्षाकृत अधिक सशक्त होता है। वह जीवित रहते ऐसे पुण्य परमार्थ में लगे रहते हैं। जो सर्वसाधारण को विदित भी नहीं हो पाता। मरने के उपरान्त वे अन्यान्य संस्कारवान प्रतिभाओं के साथ हो लेते हैं और उनके माध्यम से अति महत्वपूर्ण काम कराते रहते हैं। एक ही शरीर में दो आत्माओं की भूमिका चल पड़े तो एक और एक ग्यारह होने की उक्ति चरितार्थ होती है और इतना काम बन पड़ता है जिसे चमत्कारी ही कह सकते हैं।

स्थूल जगत में- स्थूल शरीर से जो कार्य बन पड़ते हैं वे दृश्यमान होते हैं और घटनाक्रम कहलाते हैं। इन्हें सभी देखते और समझते हैं, किन्तु सूक्ष्म शरीर द्वारा दूसरों के अन्तराल में प्रेरणाऐं भरी जाती हैं। आकाँक्षा जगाई जाती है। उमँगें उठाई जाती हैं। दिशा बताई जाती है और आदर्शों को क्रियान्वित करके छोड़ा जाता है।

उच्च आत्माऐं ऐसे अदृश्य कार्य अपने जीवन काल में भी सूक्ष्म शरीर द्वारा करती रहती हैं और मरणोत्तर जीवन में- नये जन्म से पूर्व तो उन्हें इसके लिए और भी अधिक अवसर मिल जाता है। कारण कि उन्हें कर्मबन्धन न रहने से न तो स्वर्ग-नरक में जाना पड़ता है न प्रेत पितर बनकर किसी को नैतिक हानि लाभ पहुँचाने में रुचि होती हैं। उनके अन्तराल में आदर्शवादी उत्कृष्टता ही जमीं रहती है और सामयिक आवश्यकता को देखते हुए अपने कार्यक्रम बदलते रहते हैं। परिष्कृत आत्माओं की अदृश्य और दृश्य जीवन की क्रिया-कलाप की यही रीति-नीति होती है।

जीवात्माओं को कर्मबन्धन से अथवा ईश्वरीय प्रेरणा से कार्यरत रहना पड़ता है। भव-बन्धनों से मुक्त आत्माऐं भी दैवी प्रयोजन की पूर्ति के लिए सृष्टि का संतुलन बनाये रखने के लिए काम करती रहती हैं। गंदगी फैलाने वाले अनेकों होते हैं पर उसे समेटने स्वच्छ करने का काम बिरले ही सम्भालते हैं। भगवान उच्च आत्माओं के माध्यम से अपना ही प्रयोजन पूरा कराते रहते हैं। निराकार भगवान सर्वव्यापी होने के कारण शरीर धरने की स्थिति में नहीं होते। अपना कार्य देवात्माओं के माध्यम से कराते हैं और उनके लिए अदृश्य सहयोग एवं दृश्य साधन जुटाते रहते हैं।

पिछले जन्मों को मनुष्य भूल जाता है। न भूले तो उसका झुकाव वर्तमान जीवन से न जुड़ पायें और भूत कालीन स्मृतियों के सहारे अन्य ऊहापोहों में मुड़ पड़े। पुरातन जन्मों को आमतौर से सभी भूल जाते हैं। किन्तु परिष्कृत आत्माए पिछले महान कार्यों की स्मृति में उठे संकेतों से अपनी स्थिति के स्तर का मूल्याँकन कर लेते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलते हैं। जिस पर पहले चल चुके हैं।

हमारे जीवन की महान घटना यह है कि मार्गदर्शक देवात्मा ने पिछले 600 वर्षों में हुए तीन जन्म दिखाये और उसी मार्ग पर सामयिक आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य में जुटा दिया। भूतकाल में भी हमें कार्य[म बदलते रहने पड़े हैं पर लक्ष्य एक ही रहा है- स्वयं पार होना और अनेकों को कन्धे पर बिठा कर पार करना।


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