मृत्यु कष्ट में भी स्वर्ग सुख की कल्पना

May 1985

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मध्यकाल में सामन्तों की क्रूरता का जनता प्रतिरोध नहीं कर सकती थी पर कम से कम पीठ पीछे निन्दा तो करती ही थी। इन समाचारों से खिन्नता होने का उपचार उनने ऐसे दरबारियों से किया जो उनकी प्रशंसा ही किया करें। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए एक विशेष वर्ग ही बन गया वे चारण कहे जाते थे और अपने आश्रय दाता की प्रशंसा में कविताऐं बनाया करते थे। उन्हें दरबार में सुनाया जाता था और पुरस्कार मिलता था।

उन्हीं दिनों एक सच्चे कवि गंग भी थे। वे कविता तो करते थे किन्तु मिथ्या प्रशंसा से उन्हें चिढ़ थी।

एकबार बादशाह अकबर ने कवियों का सम्मेलन बुलाया और समस्या पूर्ति रखी ‘अकबर’ की। इस पर अन्य कवियों ने अकबर की प्रशंसा के पुल बाँधने वाली कविताऐं बनाईं और पुरस्कार पाया। कवि गंग निमन्त्रण की अवज्ञा न करके उस सम्मेलन में गये तो पर मिथ्या प्रशंसा करने को तैयार न हुए।

बादशाह ने गंग से कहा- “आपको भी समस्या पूर्ति करनी पड़ेगी। उनने कहा मुझसे मिथ्या प्रशंसा की आशा न करें। जो यथार्थता है वही कहूँगा। भले ही आप रुष्ट हो जांय।”

कवि गंग ने कविता बनाई और सुनाई उसमें अकबर तथा उसके पूर्वजों द्वारा किये गये अत्याचारों का वर्णन था। ऐसी हिम्मत और किसी की नहीं पड़ी थी। भरे दरबार में अपनी निन्दा इस प्रकार सुनकर अकबर आग बबूला हो गया।

उन्हें हाथी के पैर के नीचे कुचलवा देने का प्राण दण्ड दिया गया।

कवि गंग को ऐसी ही सम्भावना का भान भी था। इस मृत्यु दण्ड को कार्यान्वित होते हुए देखने के लिए अनेक लोग एकत्रित हुए। बादशाह स्वयं भी यह देखने आये कि कवि बड़ा निर्भीक बनता था। देखें मृत्यु के समय वह निर्भीकता रहती है या नहीं।

कवि गंग ने मृत्यु से पूर्व एक कविता बनाई और सभी उपस्थित जनों को सुनाई। प्रशिक्षित हाथी अपना काम करने के लिए तैयार खड़ा था।

इस कविता में एक बड़ी सुन्दर कल्पना थी, कहा गया था कि- “स्वर्ग लोक में देवताओं ने एक कवि सम्मेलन बुलाया। सब उपस्थित हुए और अपनी बनाई कविता सुनाते गये, पर कवि गंग उनके दरबार में बिना बुलाये न गये। उन्हें अपने स्वाभिमान का बोध था।”

तब देवताओं ने सोचा स्वाभिमानी गंग को बुलाने और अपनी पीठ पर बिठा कर स्वर्ग लोक लाने के लिए किसी बुद्धिमान देवता को भेजना चाहिए। इसके लिए उपयुक्त गणेश जी ही जो सकते हैं। उन्हें कवि को बुलाने और अपनी पीठ पर बिठाकर लाने के लिए हाथी रूपी गणेश को भेजा। वे ही मेरे सामने सुरपुर ले जाने के लिए खड़े हैं। कविता की अन्तिम पंक्ति थी- “कवि गंग को लेन गणेश पठायो।”

कवि को हाथी ने पैर से कुचल दिया। पर वे मरते समय तक अपनी कल्पना में मस्त थे। मृत्यु को उनने स्वर्ग का निमन्त्रण और उनके स्वाभिमान की रक्षा करने वाला आह्वान ही माना।

बादशाह समेत दर्शक आश्चर्यचकित रह गये कि मृत्यु जैसे दारुण कष्ट को भी भावनाशील मनुष्य किस प्रकार सुख स्वप्न में परिणित कर सकते हैं।


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