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May 1985

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान रिपुः। नास्तुद्यम समो बन्धुः कुर्बाणो नावसीदति॥

मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही एक महान शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई हितकारी मित्र या बन्धु नहीं है। उद्यमशील व्यक्ति कभी दुःखित नहीं रहता।


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