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May 1985

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खलील जिब्रान की एक अभिव्यक्ति है- “जब मैं चलने लगता हूँ तब मेरा घर मुझे रोककर कहता है- मुझे छोड़ मत जाओ। मुझ में तुम्हारा अतीत अन्तर्हित है, तुम्हारे शैशव की असंख्यों क्रीड़ाऐं मेरे कण-कण में अंकित हैं, तुम्हारे पूर्वजों की मधुर स्मृतियाँ मुझ में भरी पड़ी हैं।”

“किन्तु जब में रुक जाता हूँ तो मार्ग पुकारता है, “पथिक आओ मेरा अनुसरण करो मैं तुम्हारा भविष्य हूँ। मेरा अनुसरण करने से तुम्हें नये-नये अनुभव और नये-नये ज्ञान प्राप्त होंगे। मैं तुम्हें बड़े से बड़े पद पर ऊँचे से ऊँचे स्थान पर पहुँचा दूँगा।”

बहुत समय से यह असमंजस चला आ रहा है। न मैं चल पा रहा हूँ और न रुक पा रहा हूँ। इस असमंजस के बीच कभी-कभी सोच उठता हूँ न मेरा कोई अतीत है और न कोई भविष्य। मैं रुककर भी गति मात्र नहीं हो सकता और गतिशील होकर स्थिर?”


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