सत्य का अवलम्बन

May 1985

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ऐ अँधियारे के दीप, जो छोड़ना चाहे साथ छोड़ दे। बिना साथियों के भी लोगों ने जिन्दगी जीकर दिखाई है। किसी का प्यार, सहयोग और सहानुभूति न मिले तो भी काम चल जायेगा, क्योंकि ऐसे लोग भी दुनिया में बहुत हैं जिन्हें इनमें से एक भी चीज न मिली और उनके बिना भी किसी प्रकार जिन्दगी पार कर लेने में समर्थ हुए।

सम्पदा के बिना कितनों का ही काम चल जाता है। तब ढकने और पेट भरने में जिन्हें कमी पड़ती रही, ऐसे लोग भी इस दुनिया में कम नहीं हैं।

मेरी चाह है कि हाथ से सत्य न जाने पाये। जिस सत्य को तलाशने में पाने के लिए मैंने कंकरीले, रेतीले मार्ग पर चलना स्वीकार किया है वह आत्म स्वीकृति किसी भी मूल्य पर, किसी भी संकट के समय डगमगाने न पाये।

सत्य का अवलम्बन बना रहे क्योंकि उसकी शक्ति असीम है, मैं उसी के सहारे अपनी हिम्मत सँजोये रहूँगा।


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