संगीत विनोद ही नहीं उपचार भी

February 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वैदिक ऋचाओं का उच्चारण स्वरबद्ध और तालबद्ध ही किया जाना चाहिए इसका निर्देशन है। समगान के रूप से उसकी सुनियोजित विधि व्यवस्था भी है। कुरान की आयतों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही अनुशासन है कि उन्हें निर्धारित स्वर प्रवाह में ही पढ़ा जाय। इनमें सन्निहित अर्थ उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि उनका शब्द गुँथन- स्वर सन्धान। इसी माध्यम से वेद पाठ के द्वारा व्यक्ति और वातावरण में उच्चस्तरीय परिवर्तन होने की बात कही गई है।

कांग्रोव कहते थे- “संगीत अन्तराल के मर्मस्थल का निर्झर है। चट्टानों की कठोरता को कोमल बना सकता है।” उसमें मानवी अन्तराल को झंकृत और प्रकृति प्रवाह को दिशा विशेष में तरंगित करने की विशेष क्षमता है।

गाँधीजी ने अपने अनुभवों में लिखा है- “संगीत मुझे शान्ति देता रहा है। मैंने कठिन प्रसंगों में उससे सहारा लिया है। दक्षिण अफ्रीका में हुए आक्रमण से जब मैं घायल कराहता था तब ओलाइव ने मुझे एक मार्मिक भक्ति गीत सुनाया- “लीड काइण्डली लाइट” मेरी व्यथा शान्त हो गई’। शब्दार्थ की दृष्टि से उस गीत का अर्थ सामान्य था, पर जिस स्वर लहरी के साथ उसे गाया गया उसने सुनने वाले को भाव-विभोर कर दिया।

विद्वान वी. फिजीने कहते थे- संगीत हर जीवित वस्तु का उत्साह प्रदान करता है। तालबद्ध ध्वनियाँ स्नायु तन्तुओं की संवेदनशीलता और गतिशीलता बढ़ाती हैं। संगीत मनोरंजन ही नहीं ऐसा कुछ भी है जो व्यक्ति के अन्तराल को तरंगित, प्रभावित और परिवर्तित कर सके।

ग्रीस के प्रख्यात चिकित्सक हिपोक्रेटीज ने अपनी चिकित्सा पद्धति में संगीत को भी सम्मिलित रखा था इस देश के एक और मनीषी एस्कुलोपियस ने भी रोगोपचार में संगीत को उपयोगी पाया और चिकित्सा विधि में सम्मिलित रखा। प्राचीन काल में मिश्र में संगीत से प्रसव वेदना हलकी होने की मान्यता तथा प्रथा थी। उन दिनों विष उतारने और विक्षिप्तों को सही स्थिति में लाने के लिए विभिन्न प्रकार के संगीतों का उपयोग होता था।

डा. ए. हुगेल के उन अनुसन्धानों की लम्बी शृंखला है जिसमें वे आरोग्य लाभ में संगीत को औषधि उपचार से कम लाभदायक नहीं मानते। वे कहते हैं कि संगीत का आरोग्य से सघन सम्बन्ध है।

दक्षिण भारत तिरुपति की प्रसिद्ध वेंकटेश्वर देवालय की गोशाला में प्रातःकाल सुप्रभात में रिकार्ड बजाया जाता है। साथ ही कई अन्य गायन वादन भी चलते रहते हैं। प्रबन्धकों का कहना है कि इस संगीत को सुनकर गायें जो संगीत नहीं सुनती उनकी तुलना में अपेक्षाकृत अधिक दूध देती हैं। जब संगीत बन्द करके देखा गया तो दूध भी घट गया। एक बार सूखा पड़ने से हरा चारा बन्द करना पड़ा। दुधारू गायें भी सूखे चारे पर ही गुजर करती थीं। इसी दशा में स्वभावतः दूध घटना चाहिए पर देखा यह गया कि संगीत सुनने वाली गायें उतना ही दूध देती रहीं जितना कि हरा चारा खाने पर दिया करती थी। संगीत सुनने वाली गायों में से अधिकाँश ने बछड़े जन्मे और वे बड़े होने पर मजबूत फुर्तीले बैल बने।

जापान के अस्पतालों में इन दिनों मानसिक रोगियों को दिये जाने वाले उपचारों में संगीत को प्रमुखता दी गई है। इस उपचार का वहाँ दन्त चिकित्सा तथा प्रसव कक्षों में भी सफलतापूर्वक प्रयोग हो रहा है।

मनोरोगियों पर संगीत इतना प्रभाव डालता है जितना कि अन्य किसी उपचार विधि से सम्भव नहीं हो सका। अनिद्रा, शिर दर्द, सनक, उन्माद के आवेशग्रस्त रोगियों को विशेष विधि से बजाये गये संगीतों द्वारा तुरन्त राहत मिली।

उद्यानों और खेतों में भी एक विशेष प्रकार की स्वर लहरी लाउडस्पीकरों से बजाते रहने का यह प्रभाव देखा गया है कि पौधे जल्दी बढ़े और अधिक मात्रा में अच्छे फल लगे। सचमुच संगीत एक समग्र उपचार है, मात्र मनोरंजन नहीं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118