एकता कहाँ है? (kahani)

February 1984

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इस बहेलिये ने जंगल में जाल बिछाया। संयोगवश उसके छोटे जाल में ही बहुत से पक्षी फँस गये। पक्षी एक साथ फड़फड़ाये तो जाल उखड़ गया। उसे लेकर वे ऊँचे उड़ने लगे। बहेलिया पीछे-पीछे विश्वासपूर्वक चलने लगा। एक राहगीर ने इस कौतुक को देखा तो पूछा- इस उड़ते झुण्ड को भला किस प्रकार पकड़ पाओगे? बहेलिया हँसने लगा। इनमें एकता कहाँ है? एक निर्णय थोड़े ही करेंगे। अपनी-अपनी ओर खींच-तान करेंगे और थककर कुछ ही देर में नीचे गिर पड़ेंगे।

वैसा ही हुआ था। जो किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच सकते थे और मिल-जुलकर जाल काटने और मुक्त हो सकने में सफल हो सकते थे। वे ही आपाधापी के शिकार बने और बेमौत मरे।


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