अन्तर्ग्रही परिस्थितियों का मानवी स्वास्थ्य पर प्रभाव

February 1984

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जिन दिनों सूर्य में धब्बे अधिक बढ़ते हैं। उन दिनों धरती के वातावरण पर असाधारण प्रभाव पड़ता है। यों सूर्य पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है फिर भी उसकी प्रखरता इतनी है कि पृथ्वी को वही सबसे अधिक प्रभावित करता है। ऋतु परिवर्तनों से लेकर प्रकृति प्रकोपों और पदार्थों के उत्पादनों पर उसके कारण ही अनपेक्षित हेर-फेर होते रहते हैं।

मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सूर्य की सक्रियता का सीधा प्रभाव पड़ता है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए उस कारण हृदय रोगों की वृद्धि होती देखी जा सकती है। इन्फुल्ऐंजा जैसी बीमारियाँ फैल सकती हैं। मानसिक सन्तुलन गड़बड़ाने से ट्रैफिक दुर्घटनाओं की संख्या अनायास ही बढ़ जाती है।

पिछले दिनों इंटर नेशनल फिजीकल वर्ष मनाया गया था। उस अवधि में सभी देशों के चिकित्सकों ने सूर्य धब्बों से मानवी स्वास्थ्य का सम्बन्ध जुड़ने की बात स्वीकारी थी। मनोरोगों की घट-बढ़ के साथ इन धब्बों की संगति जुड़ते देखकर इसे शोध प्रसंगों में भी सम्मिलित किया गया है। हैलियो-बायोलॉजी और कासमॉस साइकोलॉजी (ब्रह्माण्डीय मनोविज्ञान) जैसी विज्ञान की नवीन धाराएँ इसी निर्मित विकसित हो चली हैं। क्लीनिकल इकालॉजी भी पिछले दिनों उभर कर आयी हैं जिसमें मौसम के प्रभावों का पर्यवेक्षण किया जाता है।

चन्द्रमा की घट-बढ़ का मानवी स्वास्थ्य में आने वाले उतार-चढ़ावों के साथ सम्बन्ध एक सुविदित तथ्य है। शारीरिक और मानसिक परिस्थितियों में इस कारण आश्चर्यजनक परिवर्तन होते देखे गये हैं। समुद्र में अमावस्या पूर्णिमा को ज्वार-भाटे आते हैं। प्रायः ऐसा ही प्रभाव मस्तिष्क पर भी पड़ते देखा गया है। पागलखानों के कार्यकर्ताओं को सचेत रखा जाता है कि‍ वे इन दिनों विशेष रूप से सतर्कता बरतें, क्योंकि उन दिनों मन स्थिति में असाधारण हेर-फेर होते पाये गये हैं।

अस्पतालों के रिकॉर्ड से विदित है कि मृगी, चर्मरोग, उन्माद, भयाक्रान्त रोगी प्रायः अमावस्या के आसपास ही अधिक भर्ती होता है। सूर्य और चन्द्र जब 280 अंश पर होते हैं तब उनका बड़ा हुआ चुम्बकत्व दबे हुए रोगों को उभारता है।

स्वीडन के विज्ञानी सेन्टीअर होनिस ने आँकड़ों के आधार पर सिद्ध किया है कि अधिकांश स्त्रियों का मासिक धर्म अमावस्या पूर्णिमा के इर्द-गिर्द हो होता है। अमेरिका की “जनरल आफ गायनोकालोजी” पत्रिका में छपे एक लेख में ऐसे तथ्य प्रकाशित किये गये हैं, जिनसे ऋतु स्राव के उतार-चढ़ावों की संगति चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं के साथ जुड़ती है।

प्रसिद्ध सर्जन डा. एडीसन एन्ड्रीज ने अपने ऑपरेशन अनुभवों का वर्णन करते हुए लिखा है कि पूर्णिमा के आसपास हुए ऑपरेशनों में अधिक रक्त प्रवाह हुआ और कठिनाई से रुका। मेयोक्लिनिक एवं अन्य बड़े हास्पिटलों की नर्सों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की।

ईसा से 460 वर्ष पूर्व महामनीषी हेपोक्रेटस ने कहा था- “जिस चिकित्सक को ज्योतिष का ज्ञान नहीं, उसे चिकित्सक कहलाने का अधिकार नहीं।”

सत्रहवीं सदी का प्रसिद्ध डॉक्टर निकोलस क्लेवीयस अपने समय का माना हुआ खगोलविद् भी था। उसने अपने निजी अनुभवों से यह विवरण प्रकाशित किया है कि किस प्रकार के रोग किन तिथियों में घटते-बढ़ते रहते और उपचार में उनका ध्यान रखने से किस प्रकार चिकित्सक को रोग निवारण में सफलताएँ एवं श्रेय मिलता है।

यह समय भी कुछ ऐसा ही विषम है जिसमें अन्तर्ग्रही परिस्थितियाँ मानवी स्वास्थ्य पर अवाँछनीय प्रभाव डाल सकती हैं। ऐसी दशा में हमें सामान्य से अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए और आहार-विहार की उपयुक्तता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।


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