नया द्वार खोला और नई राह दिखाई (kahani)

February 1984

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तुकनेव का एक गद्य काव्य है- मैं जा रहा था सुनसान सड़क पर। देखा एक विमुक्षित भिखारी को बहुत ही दुर्बल था- वह। याचना थी उसकी आँखों में। देना चाहा पर मेरी जेब में कुछ भी नहीं था, एक पैसा भी नहीं, रूमाल तक नहीं। क्या करूँ? क्या है?

अन्त में मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। उठाया और सिर पर हाथ फिराया। आशा दिलाई। मैं न सही कोई दूसरा मदद करेगा। आप हताश न हों।

भिक्षुक के होठ हिले। बोला- मेरे ठण्डे हाथों को अपने गर्म हाथों से पकड़कर जो गर्मी दी, उससे भी बहुत राहत मिली। आपका अहसान भूलने वाला नहीं हूँ।

मैं धीमे पैरों आगे बढ़ा। सोचता था उस भिक्षुक ने मुझे नया प्रकाश दिया। नया द्वार खोला और नई राह दिखाई।


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