संसार एक छाया ही तो है (kahani)

February 1984

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किसी आदमी ने घर को शीशमहल बनाया। दीवारों और छतों पर काँच जड़ दिए। जिधर भी चेहरा मोड़कर देखता अपना ही चेहरा नजर आता। इस पर उसे प्रसन्नता होती। दीपक जलाता तो चारों ओर दीवाली जगमगाती दीखतीं।

एक दिन बाहर गया तो पालतू कुत्ता कमरे में घुस आया। उसे चारों ओर दूसरा कुत्ता दीखा और वह उससे लड़ने-मरने पर उतारू हो गया। यहाँ तक कि काँचों से टकरा-टकरा कर स्वयं घायल हो गया और कमरे का सामान तोड़-फोड़कर छितरा दिया।

मालिक लौटा तो बोला अपनी छाया कितनी भली और कितनी बुरी लगती है। संसार एक छाया ही तो है।


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