निद्रा आवश्यक तो है पर अनिवार्य नहीं

February 1984

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नींद की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता है। पोषण जुटाने के लिए जिस प्रकार आहार की आवश्यकता रहती है, ठीक उसी प्रकार थकान मिटाने के लिए निद्रा की गोद में विश्राम लेना होता है। नींद न आने पर भारी थकान बढ़ती है और न केवल मानसिक तंत्र गड़बड़ाने लगता है वरन् शरीर के लिए भी सामान्य श्रम तक करना कठिन हो जाता है। अनिद्रा ग्रसित रोगी कुछ ही समय में अर्ध विक्षिप्त अथवा उन्मादग्रस्त होते देखे गये हैं। नींद की आवश्यकता वे लोग भी समझते हैं जिनके श्रम-समय का मूल्य अत्यधिक है। वे लोग भी सोने के घण्टों को अनुत्पादक कहकर कटौती करने की बात नहीं सोचते वरन् गहरी नींद आने को सौभाग्य सूचक मानते और अर्थ उपार्जन से भी बढ़कर सुखद अनुभव करते हैं।

इतने पर भी नींद के स्वरूप के सम्बन्ध में लोग बहुत कम जानते हैं। आहार के सम्बन्ध में जितनी जानकारी आम लोगों की होती है आश्चर्य है कि उतनी भी उन्हें नींद के सम्बन्ध में नहीं होती जबकि आहार की तुलना में निद्रा का महत्व कुछ कम नहीं वरन् बढ़कर ही है।

गहरी नींद के लिए पेट का हलका होना- वातावरण में कोलाहल का न होना- मक्खी मच्छरों खटमलों से बचना- सर्दी-गर्मी का बचाव रहना जैसी आवश्यकताएँ सभी अनुभव करते हैं। पर यह बात कम ही लोग सोचते हैं कि मानसिक उद्विग्नताओं- चिन्ता, निराशा, भय आक्रोश जैसे मनोविकार किस प्रकार नींद आने में बाधक होते हैं। यदि निश्चित और सन्तुलित रहने की कला सीखी जा सके तो समझना चाहिए कि निद्रा अवरोध के मार्ग की एक बड़ी चट्टान हट गयी, मानसिक क्षमताओं के अभिवर्धन का मार्ग खुल गया।

निद्रा के समय मस्तिष्क सर्वथा शान्त, निस्तब्ध या निष्क्रिय होता हो, सो बात नहीं। पाचन तंत्र, रक्त संचार तंत्र की तरह मस्तिष्क भी अपना काम निरन्तर करता रहता है। सोते समय में यही स्थिति बनी रहती है। ऐसी दशा में इस रहस्य को भी समझा जाना चाहिए कि निद्रा की आवश्यकता बाह्य मस्तिष्क पर चिन्तन का दबाव कम करके भी बहुत हद तक पूरी की जा सकती है। कारण कि नींद का प्रभाव क्षेत्र मात्र सचेतन मस्तिष्क ही है। अचेतन तो जन्म के दिन से लेकर मरण पर्यन्त अनवरत रूप से कार्यरत रहता है। उसे विश्राम देने के लिए तो मरण या समाधि के दो ही रूप अभी तक जाने जा सके हैं। यदि मात्र सचेतन को विश्राम देने का नाम ही नींद है तो ऐसे अन्यान्य उपाय भी हो सकते हैं जो निद्रा का विकल्प बन सकें और अनिद्रा ग्रसितों को राहत दे सकें। इसी प्रकार यह भी हो सकता है कि किन्हीं आपत्तिकालीन क्षणों में बिना सोये भी उन कार्यों में संलग्न रह सके जिन्हें एक प्रकार से अपरिहार्य स्तर का ही समझा गया है।

स्वप्नावस्था में श्वसन प्रक्रिया अनियमित हो जाती है, और यहाँ तक कि कुछ सेकेण्ड के लिए वह रुक भी सकती है, ब्रेन का तापमान घटता-बढ़ता रहता है, मस्तिष्क के सेरिब्रम भाग में जहाँ सभी केन्द्र अवस्थित हैं, रक्त-प्रवाह कम-ज्यादा होता रहता है। यह सभी प्रक्रियाएँ कुछ घण्टे तक रुक-रुककर लगातार जारी रहती हैं। इस प्रकार नींद कोई शारीरिक अथवा मानसिक विश्राम की स्थिति नहीं होती, वरन् उस वक्त भी ये दोनों अवयव उसी प्रकार क्रियाशील होते हैं, जैसे जागरण की स्थिति में। इस तरह 6-7 घण्टे के इस लम्बे निद्राकाल में लोग देश-देशांतर की लम्बी यात्रा कर लेते हैं। अधिकाँश लोगों के लिए यात्रा काल अर्थात् निद्राकाल 7-7 घण्टे का होता होता है, किन्तु कुछ लोगों की निद्रावधि अत्यन्त छोटी होती है। एशिया के फ्रेडरिक महान, टामस एडीसन तथा महात्मा ये सभी 3-4 घण्टे की अल्प किन्तु आरामदेह निद्रा लेते थे। स्कॉटलैंड के निद्रा विषयक शोध विज्ञानी डॉ इयोन ओस्वाल्ड ने दो स्वस्थ व्यक्तियों का अध्ययन किया तो अत्यन्त नींद के बावजूद भी उनका स्वास्थ्य सन्तोषजनक पाया। एक सप्ताह के इन प्रयोग में उसने देखा कि 54 वर्षीय उक्त व्यक्ति जिस पर प्रयोग किया जा रहा था प्रति रात औसतन 2 घण्टा 47 मिनट तक सोया, जबकि दूसरे 30 वर्षीय प्रयोगार्थी का औसत निद्राकाल पहले वाले व्यक्ति से कुछ ही मिनट कम रहा।

जैसे ही हम निद्रा की गोद में प्रवेश करते हैं, हमारे शरीर के कुछ विशेष अंग-अवयव के क्रिया-कलाप में परिवर्तित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, यौन-परिपक्वता लाने वाले हारमोनों का प्रवाह, ग्रोथ हारमोन, कैल्शियम, एवं फास्फोरस की मात्रा तथा थाइराइड की क्रियाशीलता में स्पष्ट वृद्धि देखी गई है।

इस अवधि में यद्यपि शरीर के कुछ अवयवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है, किन्तु कुछ अन्य की घट भी जाती है। पाचन और आन्तरिक गतियाँ इस अवस्था में जाग्रतावस्था की तरह रहती है, जबकि नाक, मुँह और गले से स्रवित होने वाले रस आश्चर्यजनक ढंग से कम हो जाते हैं, आँख की पुतली सिकुड़ जाती है, हृदय की गति प्रति मिनट 10 धड़कन घट जाती है, कभी-कभी तो 30 धड़कन तक की घटोत्तरी देखी गई है, रक्तचाप कम हो जाता है तथा बैसल मेटाबोलिज्म (शरीर की विरामावस्था में उत्पन्न चयापचय गति) में दस प्रतिशत की कमी आ जाती है एवं शरीर का तापमान निम्नतम हो जाता है। (ऐसा प्रायः प्रातःकाल में होता देखा गया है।)

इस आधार पर यह विचार किया जा रहा है कि निद्राकाल में उत्पन्न होने वाले शारीरिक मानसिक उतार-चढ़ावों में यदि अन्यान्य उपायों से नींद जैसी स्थिति उत्पन्न की जा सके तो काम चल सकता है। नींद की प्रतिक्रिया शरीरगत अमुक हलचलों को न्यूनाधिक करके यदि थकान मिटाने का प्रयोजन सधता है तो फिर वही कार्य अन्यान्य उपायों से क्यों नहीं हो सकता है?

स्वाभाविक नींद का आना, न आना प्रायः अपने हाथ में नहीं रहता। ऐसी दशा में कई बार अनिच्छित रूप से भी देर तक जगना पड़ता है। यह समय काटे नहीं कटता और खोज उत्पन्न होती है। उपलब्ध उपचारों में नींद की गोलियाँ निगलना ही ऐसा उपाय रह जाता है जिससे कृत्रिम नींद उत्पन्न की जा सके। कुछ हद तक यह कार्य नशे के द्रव्य पीकर भी पूरा किया जाता है, फिर भी इतना तो स्पष्ट ही है कि नींद की गोलियाँ या नशे प्रकारान्तर से और भी अधिक हानि करते देखे गये हैं जो अनिद्रा के त्रास से किसी प्रकार कम कष्टकर नहीं होते हैं। इन परिस्थितियों में शरीर के विभिन्न अवयवों को शिक्षित या उत्तेजित करने वाली मालिश का उपयोग करके निद्रा न आने पर भी थकान मिटाने एवं क्षतिपूर्ति करने की आवश्यकता पूरी हो सकती है।

इससे सरल और अच्छा उपाय शिथिलीकरण मुद्रा का है। इसे योग निद्रा या शवासन भी कहते हैं। शरीर के मृतक जैसी स्थिति में अनुभव करने और निष्क्रियता लाने का अभ्यास करने या थकान मिटाने का कार्य एक सीमा तक पूरा हो जाता है। नैपोलियन के सम्बन्ध में कहा जाता है कि वह पेड़ के सहारे थोड़ा खड़ा करके उस पर चढ़े-चढ़े ही झपकियाँ ले लेता था और कई घण्टे सोने जैसी स्फूर्ति उतने भर से अर्जित कर लेता था। अर्जुन को ‘गुडा केश’ कहा जाता है। इस संस्कृत वाक्य का अर्थ है “नींद जीत लेने वाला” वह कम सोकर भी उत्साहपूर्वक अपना काम मुद्दतों तक करता रहता था।

शरीर का 24 घण्टे का जागरण चक्र हमारा एकमात्र बायोलॉजिकल ब्लॉक है। इसके अतिरिक्त एक 90 मिनट का भी चक्र है। 100 से अधिक प्रकार की हमारी शारीरिक गतिविधियाँ, जिसमें निद्रा से लेकर पेट संकुचन एवं हारमोन-स्राव सम्मिलित हैं, सभी इस चक्र का अनुशासनपूर्वक पालन करते हैं।

इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि निद्रा आवश्यक होने पर भी अनिवार्य नहीं है। उसके अन्य विकल्प भी हो सकते हैं। इनसे मालिश और शिथिलीकरण के अतिरिक्त यह विश्वास भी एक महत्वपूर्ण आधार है कि मनोगत संरचना जिस प्रकार अचेतन हलचलों को बिना विश्राम चलाती रहती हैं उसी प्रकार सचेतन को भी बिना निद्रा लिये भी थकान दूर करने का कोई न कोई आधार अपना सकती है। बिना सोये भी मनुष्य स्वस्थ रह सकता है, इसका प्रमाण कितने ही योगियों ने लम्बी प्रसुप्त एवं जागृत समाधियों के रूप में दिया भी है।


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