एक धर्म प्रचारक संघ के अधिष्ठाता से शिकायत कर रहे थे। इतने दिन उपदेश देते हो गये पर लोग न मुझे समझ पाये न मेरे अनुयायी बने। अब मैं क्या करूँ?
अधिष्ठाता ने दूसरे दिन उनके साथ अन्य प्रचारकों को भी बुलाया। दो बर्तन पानी से भरकर रखे। सबके दिखाते हुए एक में तेल डाला और दूसरे में नमक। तेल ऊपर तैर रहा था और नमक पानी में धुल गया था।
तात्पर्य समझाते हुए अधिष्ठाता ने कहा- ‘तेल की तरह जनता के सिर पर छाने की कोशिश मत करो अथवा अलग-अलग ही बने रहोगे। नमक की तरह जन समुदाय के पानी में घुल जाओ तो आत्मसात होकर रहोगे।
प्रचारक मण्डली ने अनुभव किया कि अपनी विशिष्टता की छाप छोड़ने की अपेक्षा जनता के दुःख, दर्द में शामिल होना और उसके साथ घुल जाना अधिक श्रेयस्कर है।